डीजे, दारू, अन्य चीजों पर प्रतिबंध लगाया : बोले पुरखों की संस्कृति बचाएंगे
गोंड आदिवासियों ने कहा चलो चले पुरखा गली
शादियों की महंगी प्लानिंग पर रोक लगाई गई
उकवा में 52 गांव टीपागढ़ आदिवासी महापंचायत की महत्वपूर्ण निर्णायक बैठक सम्पन्न
सुनेश शाह उइके, संवाददाता
बालाघाट । गोंडवाना समय
गौरतलब है कि बालाघाट जिले की जनपद पंचायत परसवाड़ा में बीते दिवस गोंडवाना भवन में 88 गांव के आदिवासी समुदाय की महापंचायत रखी गई थी।
जिसमें महापंचायत में बारसा, शादी, मृत्यु एवं अन्य कार्यक्रम में डीजे एवं शराब बंद, व समाज में अन्य खर्चों पर आपसी चर्चा कर पारम्परिक रूढ़ि प्रथा के तहत सभी लोगों की सहमति से कठोर नियम बनाए गये। धीरे-धीरे से क्षेत्र में बदलाव आएगा।
आदिवासियों के वाद्ययंत्रों एवं गोंडी भाषा गीतों का होगा प्रयोग
कार्यक्रम मुख्य अतिथि तिरूमाल राजेन्द्र मंडावी समन्वयक अधिकारी कर्मचारी ने बताया कि गोंड आदिवासी समाज की परम्परा, गोंडी भाषा, धर्म संस्कृति, और सभ्यता को जीवित रखने के लिए डीजे साउंड और बैंड को पूर्ण रूप से प्रतिबंध कर दिया है।
निर्णय का उद्देश्य यह है कि आदिवासियों की मूल संस्कृति देवनैतिक से उत्पन्न वाद्ययंत्रों एवं गोंडी भाषा गीतों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। यही नहीं इन डीजे साउंड और बैंड के कारण कई बार समाज में लड़ाई जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इन सबसे आने वाली पीढ़ियों पर बुरा असर पड़ रहा है। इसी को देखते हुए पारंपरिक रुढ़ि ग्राम सभा ने फैसला किया कि बारसा, शादी, मृत्यु से लेकर अन्य सामाजिक कार्यों में डीजे साउंड, शराब बंद पर प्रतिबंधित रहेंगे।
सामाजिक स्तर को सुधारने के लिए एक बेहतरीन पहल है
भजन वल्के वरिष्ठ समाजसेवी ने बताया कि सामाजिक बैठक का मुख्य उद्देश्य समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति व समाज में विभिन्न प्रकार की विभिन्नता व एकजुटता की कमी समानता का आभाव, नैतिक जिम्मेदारीयो का निर्वहन न होना, कई संगठनों में बंटकर काम करना।
समाज की दिशा और दशा पर फोकस करते हुए नशा मुक्त, आडंबर मुक्त, भय मुक्त व स्वालंबन समाज की स्थापना कैसे किया जाए ताकि समाज आपसी भाईचारा में मनभेद-मतभेद को दूर कर व्यक्तिवाद, वर्चस्ववाद, पाटीर्वाद से हटकर संप्रभुता, अखंडता व पुरखों की जुन्ना संस्कृति पुटसीना मडमीना सायना नेंग दस्तूर में फिजूल खर्च से समाज को गर्त में जाने से कैसे बचाया जा सकें।
इसके लिए क्षेत्र के समस्त सामाजिक बुद्धजीवी, जनप्रतिनिधि व अधिकारी कर्मचारियों ने बीड़ा उठाया है। ऐसे 20 बिंदुओं पर आपसी चर्चा कर नियम को क्षेत्र में सेक्टर बनाकर लागू किया जा रहा है। जो कि यह समाज के सामाजिक स्तर को सुधारने के लिए एक बेहतरीन पहल है।
डीजे, बारसा, दहेज, शराब और डिनर का खर्च खत्म कर दिया गया है
अगर हम वर्तमान समय में देखें तो गोंड आदिवासियों की शादियों में होने वाले अत्यधिक खर्च, बड़ी मात्रा में दहेज, डीजे, शराब बड़ी में हो रहा है। क्षेत्र में अलग अलग शादी, बारसा एवं सामाजिक संस्कार हो रहें हैं। जिससे समाज के युवाओं व गोंड आदिवासी समाज में बहुत गलत प्रभाव पड़ रहा है। समाज की पारम्परिक रूढ़ि प्रथा, भाषा संस्कृति, नेंग सेंग, मिजान दिन-ब-दिन विलुप्त होते जा रहे है। इसके संरक्षण के उचित नियम बनाना अति आवश्यक है।
इसके रोक थाम को लेकर हालही में गोंड आदिवासी समाज के द्वारा एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। गोंड आदिवासी समाज सुधार के तहत विचार-विमर्श के बाद शादियों की महंगी प्लानिंग पर रोक लगाई गई है. जिसमें डीजे, बारसा, दहेज, शराब और डिनर का खर्च खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा आदिवासी समाज में चलो चली पुरखा गली अभियान को बैठक के रूप में लगातार संचालित की जा रही है। इस बैठक में लोग बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं।
समाज सुधार के लिए नियम बनाए गए
बडा़देव एकता समिति उकवा के द्वारा 11 मार्च 2025 दिन मंगलवार को गोंडवाना सामुदायिक भवन में आदिवासी समाज की महापंचायत आयोजित की गई। जिसमें 52 गांवों के आदिवासी अधिकारी कर्मचारी, जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, मातृशक्ति पितृशक्ती बड़ी संख्या में मौजूद थे। 88 गांव आदिवासी महापंचायत परसवाड़ा में जो समाज सुधार के लिए नियम बनाए गए हैं उन सभी नियमों को 52 गांव टीपागढ़ आदिवासी महापंचायत की सामाजिक बैठक में मौजूदा सभी लोगों को पढ़कर सुनाया गया वहीं सभी ने स्वागत किया।
गोंड आदिवासी परिवारों पर फिजुल खर्च से बढ़ रहा साहूकारों का कर्ज
कार्यक्रम अध्यक्षता तिरुमाल जीयालाल वल्के सेवा निवृत्त शिक्षक रुपझर ने कहा कि गोंड आदिवासी समाज में विवाह के समय में बड़ी मात्रा में दहेज दिया जाता है। यह एक दुष्चक्र है, जिससे आदिवासी परिवार कभी बाहर नहीं निकल पाता है।
दहेज देने वाले गोंड आदिवासी परिवार साहूकारों से पैसा उधार लेने और ब्याज लेने के कारण कर्ज में डूब जाते हैं। आदिवासी कर्ज के पहाड़ के नीचे दबते जा रहे हैं। इस वजह से पूरे परिवार को शादी के खर्चों को पूरा करने और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए रोजगार पाने के लिए ग्रामीण इलाकों में काम करने जाना पड़ता है। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। गोंड समाज के पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह गोंडी ढोल, शरनाई, नगाड़ा के साथ शादी होनी चाहिए।