गर्म कढ़ाई, कूकर, गंज उठा रहे और खुद परोसकर अपना पेट भरने को मजबूर आदिवासी बालक
सरकारी कार्यालयों से घिरा धनौरा अंग्रेजी बालक आश्रम की स्थिति से अंजान अधिकारी व जनप्रतिनिधि
झाड़ू लगाने से लेकर साफ-सफाई करने के साथ भोजन की व्यवस्था भी बालक पर निर्भर
धनौरा/सिवनी। गोंडवाना समय।
सत्ता, संगठन और शासन प्रशासन के नुमार्इंदो की मंच, माईक, मीटिंग, कार्यशाला, प्रशिक्षण, कार्यक्रमों में आदिवासी वर्ग के विकास कल्याण के लिये अरबों, खरबों, करोड़ों का रूपये का बजट खर्च किया जा रहा है ऐसे बोले जाने शब्दों को सुनकर लगता है कि वास्तविकता में ये ही आदिवासियों के बड़े व सच्चे हितैषी है।
धरातल में देखने में हकीकत पता चलती है कि सत्ता, संगठन, शासन प्रशासन के नुमार्इंदों के अधिकांश बाते झूठ का पुलिंदा है और अरबों, खरबों, करोड़ों की योजनाएं कागजी घोड़ों से कम नहीं है।
गर्म भोजन के बर्तन उठाना बच्चों के लिये है खतरनाक
शैक्षणिक विकास के लिये आदिवासी वर्ग के लिये चलाये जा रही अंग्रेजी बालक आश्रम शाला जैसी योजनाओं में मासूम बालको जो कि नौनिहाल नाबालिग है जिनकी उम्र पढ़ने की है वे भारी भरकम सामान नहीं उठा सकते है।
वहीं गर्म भोजन के बर्तन को छोटे-छोटे बच्चों के हाथ उठवाना कितना खतरनाक है यह घटना घटने के बाद ही प्रशासनिक अधिकारियों को समझ आती है, निलंबन करके अपना कर्तव्य पूरा कर लिया जाता है।
अपने वजन से ज्यादा की बोरी उठाना कहां तक उचित है।
अधिकारी, नेता, सरपंच को नहीं है कोई सरोकार
आदिवासी विकासखंड धनौरा के मुख्यालय और आसपास जनपद, तहसील सहित अन्य उच्चाधिकारियों का आना-जाना रहता है, उनकी निगाहे रहती है।
जबकि कलेक्टर ने उच्चाधिकारियों को आश्रम, छात्रावासों का विजिट करने के निर्देश भी दिये है।
वहीं धनौरा मुख्यालय के सरपंच भी सांसद, विधायक, मंत्री के करीबी बताने वाले सरपंच भी मुख्यालय में ही निवास करते है लेकिन अपने ही समाज के बच्चों के प्रति होने वाली लापरवाही पर संज्ञान नहीं लेते है क्योंकि उनका ध्यान काम्पलेक्स और पंचायत के कमीशन लेने पर ज्यादा है।
इसके साथ ही अन्य दलों के राजनेता भी अंग्रेजी बालक आश्रम शाला की दयनीय स्थिति को सुधार नहीं कर पा रहे है।
बजट के साथ कर्मचारियों की सुविधायें देने के बाद भी नहीं सुधर रहे हालात
धनौरा मुख्यालय में स्थित अंग्र्रेजी बालक आश्रम में नाबालिग बच्चों के द्वारा भोेजन के गर्म कढ़ाई, गर्म गंज व गर्म कूकर के साथ अन्य बर्तनों को स्वयं उठाना पड़ता है। इतना ही नहीं स्वयं बच्चों को अपनी थाली परोसना भी पड़ता है क्योंकि उनकी मजबूरी है कि वे भूखे नहीं रह सकते है। अपना पेट भरने के लिये स्वयं अपनी थाली परोसकर भोजन करते है।
इसके साथ ही अंग्रेजी बालक आश्रम की साफ सफाई और झाड़Þु लगाने का कार्य भी बच्चे ही करते है। अपने वजन से अधिक की बोरी को उठाने का कार्य भी बच्चों को करना पड़ता है। सरकार, शासन इतना बजट आश्रम और छात्रावासों के लिये दे रही है इसके साथ ही कार्यों के लिये अन्य सुविधायें भी दे रही है। इसके बाद भी इस तरह की लापरवाही की जा रही है।
बीते दिनों सहायक आयुक्त एस एस मरकाम ने छात्रावासों व आश्रमों के अधीक्षकों की बैठक लेकर स्पष्ट निर्देश दिये थे इसके बाद भी जिस तरह के वीडियों गोंडवाना समय के पास पहुुंचाये गये है, उसे देखकर लगता है कि शिक्षा प्राप्त करने के लिये बच्चों को मजबूर होकर इसी तरह रहना और पढ़ना ही होगा।