गोंडी धर्म सम्मेलन : आदिवासी समाज के आत्म स्वाभिमान और संरक्षण की दिशा में एक कदम
हमें अपनी भाषा, अपने धर्म, और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा
अबूझमाड़ के चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र में आयोजित हुआ गोंडी धर्म सम्मेलन
नारायणपुर। गोंडवाना समय।
विश्व की प्रथम आदिवासी शक्तिपीठ कोरबा के संरक्षक एवं संस्थापक रघुवीर सिंह मार्को, जो कि अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय सांस्कृतिक सचिव भी हैं, उन्होंने अबूझमाड़ के चुनौतीपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र में आयोजित वार्षिक गोंडी धर्म सम्मेलन में भाग लेकर आदिवासी समाज के उत्थान के लिए एक प्रेरणादायक पहल की।
84 परगना के छोटे डोंगर जैसे दुर्गम क्षेत्र में गोंडी धर्म सम्मेलन का आयोजन
अबूझमाड़ क्षेत्र, जो एक ओर नक्सलवाद और दूसरी ओर पुलिस कार्रवाई के कारण दशकों से तनावग्रस्त है। वहाँ आदिवासी समाज सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव के बीच पिसता रहा है। इन कठिन परिस्थितियों में, गोंडवाना समाज ने 84 परगना के छोटे डोंगर जैसे दुर्गम और जोखिमपूर्ण इलाके में जाकर गोंडी धर्म सम्मेलन का आयोजन किया।
एकजुट होने का समय है
इस सम्मेलन में रघुवीर सिंह मार्को ने गोंडी भाषा में अपनी बात रखी और समाज को शिक्षा, संस्कृति, और संविधान के प्रति जागरूक करते हुए आत्म-सम्मान और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने का संदेश दिया। उन्होंने गोंडी पखवाड़े की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समय गोंडवाना समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहर और अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट होने का है।
शिक्षा और संस्कृति हमारी पहचान और अस्तित्व की नींव हैं
रघुवीर सिंह मार्को ने अपने संबोधन में कहा कि आज गोंडवाना समाज के हर व्यक्ति को यह समझने की जरूरत है कि शिक्षा और संस्कृति हमारी पहचान और अस्तित्व की नींव हैं। हमें अपनी भाषा, अपने धर्म, और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा। यह सम्मेलन हमारे आत्म स्वाभिमान को बढ़ाने और समाज के हर वर्ग को एकजुट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
आत्मनिर्भरता और सामाजिक चेतना का संचार हुआ है
यह सम्मेलन न केवल आदिवासी समाज के लिए एकजुटता का प्रतीक बना, बल्कि उनकी भाषा, संस्कृति, और अधिकारों को संरक्षित करने के लिए एक नई दिशा भी प्रदान की। इस प्रयास से आदिवासी समाज में आत्मनिर्भरता और सामाजिक चेतना का संचार हुआ है।
गोंडवाना समाज की ओर से अपील
गोंडवाना समाज ने सभी लोगों से अपील की है कि वे अपने अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए शिक्षा और जागरूकता को प्राथमिकता दें। यह सम्मेलन समाज के लिए नई ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत बना है।