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दादा हीरा सिंह मरकाम जी के सिद्धांतों, विचारों, संदेशों के विपरीत क्यों चल रहा है गोंडवाना आंदोलन ?

दादा हीरा सिंह मरकाम जी के सिद्धांतों, विचारों, संदेशों के विपरीत क्यों चल रहा है गोंडवाना आंदोलन ?

गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के 14 जनवरी को जन्म दिवस पर कड़वा सत्य 


विवेक डेहरिया,
संपादक,
दैनिक गोंडवाना समय 

दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने जिन सिद्धांतों, विचारों और संदेशों के साथ गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन कोे अनवरत आजीवन आखिरी सांस तक चलाया और गोंडवाना आंदोलन कोे देश दुनिया में नई पहचान दिया क्या उन विचारों, सिद्धांतों, संदेशों को आज उनके अनुयायी जीवित रखें हुये है, उनके विचारों, सिद्धांतों कोे सुरक्षित या संरक्षित करने में अपनी भूमिका निभा रहे है या उन विचारों, सिद्धांतों पर चलकर गोंडवाना आंदोलन कोे आगे बढ़ा रहे है।
              


 दादा हीरा सिंह मरकाम जी के विचार पर वास्तविकता में चलकर गोंडवाना आंदोलन कोे आगे की ओर ले जा रहे है इस पर अनेकों सवाल, प्रश्न खड़े हो रहे है। एक मुठ्ठी चावल से कैसे गांव का महाकल्याण किया जा सकता है, नशा मुक्ति अभियान, जो व्यापार करेगा वो राज करेगा, वन टू टेन फार्मूला कृषि के क्षेत्र में फसल के अलावा सब्जी भट्टा, मिर्ची, टमाटर में ही लाखों कमाने को हमेशा प्रोत्साहित किया जैसी अनेकों विचारयुक्त बाते तो अब सुनाई भी नहीं देती है।

ऐसे कृत्य दादा हीरा सिंह मरकाम जी के सिद्धांत, विचार, संदेश के विपरीत है 


जहां तक मेरा अनुभव या मैंने दादा हीरा सिंह मरकाम जी कोे देखा है तो उन्हें धन्नासेठ, पूंजीपतियों ने काजू, बादाम, मिठाई और पकवान की थाली सजाकर अपने आलीशान महल कहें, बाखर कहें, या हवेजी कहें या बड़ी बड़ी हॉटल या घर पर रूकवाने, ठहराने के लिये बहुत प्रयास करते रहे लेकिन यही सत्य है कि दादा हीरा सिंह मरकाम ने उनके यहां पर लघुशंका तक करना पसंद नहीं किया रूकना, ठहरना तो दूर की बात है।
                हां लेकिन गरीब, निर्धन गोंडवाना आंदोलन के सिपाही की झोपड़ी भी रही है और वहां पर रूखा-सूखा भोजन भी मिला हो तो वहां पर दादा हीरा सिंह मरकाम ने पूरा दिन तो क्या हर परिस्थिति में रात भी गुजारा है। ऐसे अनेक प्रमाण के साक्षी आज भी गोंडवाना आंदोलन के वे सिपाही मौजूद है जो गर्व से कहते है कि मेरे यहां पर दादा हीरा सिंह मरकाम जी रूके थे। यही दादा हीरा सिंह मरकाम जी की गोंडवाना आंदोलन के सिपाही व कार्यकर्ताओं के प्रति विश्वास व सम्मान था। जिसकी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के पेनवासी हो जाने के बाद वर्तमान में कहीं न कहीं न कमी नजर आ रही है, जिसे भले ही नजरअंदाज किया जा रहा है। लेकिन ऐसे कृत्य दादा हीरा सिंह मरकाम जी के सिद्धांत, विचार, संदेश के विपरीत है। 

विपरीत विचारधारा के गीतों को गुनगुनाने का भी मिला मौका 

गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के द्वारा बनाये गये और लिखे गये कहों नहीं करके दिखालाओं जैसे कई गीतों के माध्यम से ही गोंडवाना आंदोलन की बैठक, मीटिंग, कार्यक्रम प्रारंभ होते थे। उनमें भी परिवर्तन देखने को मिला है जो चिंतनीय है, विपरीत विचारधारा वाले गीत को मीटिंग, कार्यक्रमों के पहले गुनगुनाया जा रहा है।                         गोंडवाना आंदोलन के विपरीत विचारधारा के गीत को क्यों गुनगुनाने दिया गया हालांकि इसकी शिकवा शिकायत दबे पांव हुई तो सुधार करने का प्रयास किया गया लेकिन ऐसे गीतों को गुनगुनाने की इजाजत किसने दिया यह बड़ा सवाल है। दादा हीरा सिंह मरकाम जी के गीतों को सुरक्षित, संरक्षित रखने के साथ उस पर चलने की जिम्मेदारी व जवाबदारी कौन उठायेगा ?

सीधे माईक छुड़ाने वाले दादा के आंदोलन के मंचों पर भी उठ रहे सवाल 

पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के साथ मंच साझा करने वाले यदि विपरीत विचारधारा के साथ यदि गोंडवाना आंदोलन के विपरीत भाषणबाजी करने वालो से दादा हीरा सिंह मरकाम माईक छीन लेते थे, इसे जिन्होंने उन्हें देखा है वे जानते है।
             दादा हीरा सिंह मरकाम जी के गोंडवाना आंदोलन के दौरान आयोजित कार्यक्रमों में मंचों में स्थान भी उन्हें ही मिलता था जो गोंडवाना आंदोलन के विचारधारा को जानते व मानते थे, इसे भी उन्हें जानने वाले अच्छे जानते है।
            देखा जा रहा है कि पेनवासी दादा हीरा सिंह मरकाम जी के बाद गोंडवाना आंदोलन में कार्यक्रमों, मंचों, मीटिंगों में सबको बेरोकटोक प्रवेश मिल रहा है, यानि मौका देखकर विपरीत विचारधारा वाले को भी चौका मारने का मौका मिल रहा है जो कि दादा हीरा सिंह मरकाम जी के जीवित रहते अच्छे अच्छों को नहीं मिल पाया। 

दादा हीरा सिंह मरकाम जी के सिद्धांतों, विचारों, संदेशों पर आगे बढ़ाना होगा

गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन के महानायक, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने गोंडवाना आंदोलन को पूरे देश में पहुंचाने के लिये पैदल चलकर, साधन सुविधा का त्याग करते हुये आजीवन कार्य किया।
            त्याग, तपस्या और बलिदान यह है गोंडवाना की पहचान का नारा देते हुये गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने पद के स्वार्थ को दरकिनार कर सबसे पहले शोषित, पीड़ित, वंचित समाज की मजबूत व सशक्त आवाज बनने में अपनी जिम्मेदारी निभाया।
        आदिवासी समाज के वोट सहारे सत्ता शासन तक पहुंचकर लाभ कमाने वाले राजनैतिक दलों ने अनेकों बार दादा हीरा सिंह मरकाम जी को लालबत्ती और संवैधानिक पदों पर विराजमान करने के लिये प्रयास किया लेकिन उन्होंने शोषणकारी राजनैतिक दलों के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया।
                    यदि दादा हीरा सिंह मरकाम भी चाहते तो शोषणकारी राजनैतिक दलों के हाथ मिलाकर संवैधानिक पदों व लालबत्ती जैसी अनेक सुविधायें का सुख भोग सकते थे लेकिन दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने ऐसा कभी नहीं किया वरन वे हमेशा शोषित, पीड़ित, वंचित समाज के साथ किसान-श्रमवीरों की आवाज को मजबूती के साथ शोषणकारी सत्ताधारियों के खिलाफ उठाते रहे। देश के विकास के लिये वे गांव को स्मार्ट बनाने की सोच रखते थे, गांव समृद्धशाली होगा तो देश का उन्नति व प्रगतिशील होगा यह वे हमेशा कहते थे।
                            इसलिये दादा हीरा सिंह मरकाम का नाम विरोधी दल भी उनके आजीवन काल तक सम्मान से लेते रहे है। दादा हीरा सिंह मरकाम जी का कहना था कि कहों नहीं करके दिखलाओं, इसका मतलब यही था जो कि मिशन व सिद्धांत को जमीन पर सच करके दिखाये। इसके लिये दादा हीरा सिंह मरकाम जी आजीवन संघर्ष करते रहे।
                दादा हीरा सिंह मरकाम जी की जयंति पर यदि वास्तविकता में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते है तो दादा हीरा सिंह मरकाम जी के सिद्धांतों, विचारों, संदेशों को जीवित रखने के साथ साथ उन्हें सुरक्षित व संरक्षित रखना होगा और उसी पर गोंडवाना आंदोलन को आगे बढ़ाना व चलाना होगा। 



विवेक डेहरिया,
संपादक,
दैनिक गोंडवाना समय 

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