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बुद्ध प्राकृतिक प्रेमी थे, उनका जन्म लुबिनी वन में हुआ और उनको ज्ञान की प्राप्ति वेणुवन में हुई थी

बुद्ध प्राकृतिक प्रेमी थे, उनका जन्म लुबिनी वन में हुआ और उनको ज्ञान की प्राप्ति वेणुवन में हुई थी

अधिकांश समय बुद्ध ने जंगल में ही बिताया उनके विहार जंगलों के बीच में ही होते थे

बरघाट। गोंडवाना समय। 

वन परिक्षेत्र बरघाट के अंतर्गत आने वाले इको टूरिज्म क्षेत्र काचना पहाड़ में विश्व शांति के लिए विकसित करने हेतु बुद्ध स्थल में धमचक्र परिवर्तन दिवस पखवाड़े के अंतर्गत वर्षावास कार्यक्रम का समापन मार्गदर्शिका विश्व विख्यात भिकुनी शाक्य मुनि धमदीना ''अया'' जी द्वारा देशना में बताया गया कि बुद्ध प्राकृतिक प्रेमी थे। 

उनका महापरिनिर्वाण कुशीनारा के पास वन में ही हुआ 


बुद्ध का संघ प्राकृतिक प्रेमी है उन्होंने कहा कि बुद्ध का जन्म लुबिनी वन में हुआ था, उनको ज्ञान की प्राप्ति वेणुवन में हुई थी। उनका महापरिनिर्वाण कुशीनारा के पास वन में ही हुआ था, उन्होंने अधिकांश समय जंगल में ही बिताया उनके विहार जंगलों के बीच में ही होते थे। 

हमें भी अधिक से अधिक पौधे लगाना चाहिए एवं प्रकृतिसे प्रेम करना चाहिए 


विश्व विख्यात भिकुनी शाक्य मुनि धमदीना ''अया'' जी द्वारा देशना में आगे बताया कि हमें भी अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए एवं प्रकृतिसे प्रेम करना चाहिए। प्राणी हिंसा नहीं करनी चाहिए, संघदान, देशना, सामूहिक भोज के पश्चात बुद्ध स्थल पहुंचकर बुद्ध की पाषाण प्रतिमा के त्रिशरण पंचशील वंदना परिक्रमा आदि की गई। 

बोधि वृक्ष का रोपण किया गया 


इसके बाद पुंज अय्या जी द्वारा बोधि वृक्ष का रोपण किया गया। वहीं उपासक उपासिकाओं द्वारा विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए गए।
            कार्यक्रम में पहुंचे लोगों द्वारा के द्वारा जंगल में साफ-सफाई कर पॉलीथिन को इकट्ठा किया गया। इस कार्यक्रम में समस्त धर्म समुदाय के लोग शामिल हुए। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में समस्त उपासक उपासक उपासिकाये एवं वन परिक्षेत्र बरघाट का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 

पुष्पगुच्छ प्रदान कर विनोद वासनिक का किया गया सम्मान 


कार्यक्रम के अंतिम दौर में मार्गदर्शन एवं सामाजिक कार्यकर्ता विनोद वासनिक को राजनीतिक क्षेत्र में उच्चतम पद देने पर अयाजी ने उनके उज्जवल भविष्य के लिए मंगल कामना की एवं उनका उनको पुष्पगुच्छ प्रदान कर कार्यकतार्ओं द्वारा सम्मान किया गया। 

आयोजन को सफल बनाने में इनका रहा योगदान


वहीं आयोजन को सफल बनाने के लिए उपाशिका शीला सोनटके, रामला बागेश्वर, रश्मि वासनिक, सुनीता डोंगरे, कृष्णा उके, सुनीता बागेश्वर, सुषमा लांजेवर, विशाखा मेश्राम, लक्ष्मी गेडाम, ज्योति गजभिए, अनीता वासनिक, अंजू वासनिक, निशा वासनिक सहयोग रहा।
                

वहीं उपासक एच डी गढ़पाल, रामनाथ बागेश्वर, विनोद वासनिक, सुरेंद्र गेड़ाम, दीपक मेश्राम, देवेंद्र बागेश्वर, सुधीर वासनिक, संजीव बारमाटे, वीरेंद्र शेंडे, अरविंद भालेकर, शैलेंद्र चौहान, रमेश रामटेके, डा सुयोग मसूरेकर, डा नितेंद्र गजभिए, कैलाश लांजेवार, रवि मसूरेकर, नितेंद्र भालेकर, आजाद शत्रु वासनिक, अश्वनी मसूरेकर, आलोक भालेकर, अरविंद वासनिक का कार्यक्रम सफल बनाने में सहयोग रहा। 

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