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मृतक आदिवासी के नाम की अनुमति पर सिस्टम के साथ मिलकर कर रहे अवैध उत्खन

मृतक आदिवासी के नाम की अनुमति पर सिस्टम के साथ मिलकर कर रहे अवैध उत्खन

खनिज, राजस्व विभाग की सांठगांठ से खनिज माफिया, सड़क ठेकेदार का उत्खनन का खेल जारी

सड़क निर्माण के लिए पहाड़ी को कर रहे खोखला, संरक्षित प्रजाति के पेड़ों को कर रहे बर्बाद

आदिवासी प्रशांत मर्सकोले की आत्महत्या के पीछे क्या उत्खनन कर रूपये कमाने वालों का तो नहीं था हाथ ?

रायसिंग एण्ड कंपनी, लांजी बालाघाट भी कर रही मुरम का परिवहन 


सिवनी। गोंडवाना समय। 

जिला मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर खनिज विभाग, राजस्व विभाग की सांठगांठ से खनिज माफिया, सड़क ठेकेदार शासन को चूना लगाने के साथ साथ पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे है वहीं दूसरी ओर आदिवासी परिवार के हक अधिकार पर खुलेआम लूटकर डाका डालकर करोड़ों मिल बांटकर खा रहे है। 

परिवहन की अनुमति की आड़ में उत्खनन का कार्य धड़ल्ले से जारी 


सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर व जांच का विषय यह है कि बीते लगभग 2-3 माह पूर्व मृतक हुये आदिवासी के नाम पर खनिज विभाग से परिवहन की जो अनुमति पूर्व में ली गई थी उसी के तहत आज भी परिवहन की अनुमति की आड़ में उत्खनन का कार्य बड़ी बड़ी पोकलेंड, जेसीबी मशीन से खुदाई किया जा रहा है।
        

इसकी जानकारी राजस्व विभाग से लेकर खनिज विभाग को भी है लेकिन खनिज माफिया, सड़क ठेकेदार और आदिवासियों के हक अधिकार पर डाका डालकर करोड़पति बनने वाले डकैत खुलेआम बेखौफ होकर डाका डालकर अपनी अपनी तिजोरी भर रहे है। यह सब भारतीय जनता पार्टी की सरकार में अंजाम दिया जा रहा है। 

आदिवासी प्रशांत मर्सकोले की आत्महत्या भी जांच का विषय है 


इतना ही नहीं मृतक आदिवासी प्रशांत मर्सकोले के नाम पर जो अनुमति का खेल किया गया है उसके साथ-साथ प्रशांत मर्सकोले की मृत्यू का मामला ही संदेहस्पद लग रही है हालांकि प्रशांत मर्सकोले ने अपने गांव में ही फांसी लगाकर आत्महत्या किया था, यह पुलिस का भी कहना है लेकिन उसने आत्महत्या क्यों किया था यह आज भी सस्पेंस बना हुआ है। प्रशांत मर्सकोले की आत्महत्या के पीछे कहीं यही जमीन में उत्खनन करने वाले खनिज माफियाओं का तो हाथ नहीं है यह जांच का विषय है। 

शामिलाती जमीन में सिर्फ प्रशांत मर्सकोले के नाम से मिल गई थी अनुमति 


खनिज माफियाआें ने आदिवासी की जमीन की आड़ में लाखों करोड़ों रूपये कमाने के लिये शामिलाती जमीन पर जिसमें समेन्द्र सिंह, उर्मिला, मंजूलता, निर्मला, उमा देवी, प्रशांत, गीतांजलि, उपासना, भूपेन्द्र के नाम से खसरा नंबर 355 में 3.83 हेक्टेयर में सिर्फ प्रशांत मर्सकोले के नाम से ही परिवहन की अनुमति लेकर वहां पर अवैध उत्खनन करते हुये हजारों डंफर मुरम का उत्खनन किया गया है।

ऐसा सवाल यह उठता है कि शामिलाती जमीन पर सिर्फ प्रशांत मर्सकोले के नाम पर कैसे अनुमति दी गई थी, क्या बाकी हिस्सेदारों ने सहमति दिया था या नहीं यह सब जांच का विषय है।  

मेडिकल कॉलेज के निर्माण के समय से ही अवैध उत्खनन का चल रहा खेल 


क्योंकि प्रशांत मर्सकोले के नाम पर मुरम परिवहन की अनुमति लिये जाने का खेल खनिज माफिया जब से मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ है तब से ही कर रहे है।
        

मृतक आदिवासी प्रशांत मर्सकोले के नाम पर परिवहन की अनुमति लेकर करोड़ों रूपये की मुरम का उत्खनन किया नियम विरूद्ध किया गया है, यहां कि मुरम मेडिकल कॉलेज व अन्य स्थानों पर ठेकेदारों ने विक्रय कर लाखों करोड़ों रूपया कमाया है।
            प्रशांत मर्सकोले की मृत्यू लगभग 2 से 3 माह पूर्व हो चुकी है लेकिन आज भी मुरम का उत्खनन परिवहन के नाम पर सड़क ठेकेदार के द्वारा किया जा रहा है। यह खेल राजस्व विभाग व खनिज विभाग की सांठगांठ से चल रहा है। 



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