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नीरज दुबे शिक्षक को प्रशासनिक अधिकारी बना दिये, सही में एमपी अजब और गजब है

नीरज दुबे शिक्षक को प्रशासनिक अधिकारी बना दिये, सही में एमपी अजब और गजब है 

कैसे बनाया, किसने बनाया, क्यों बनाया इन सवालों कोे किसी के पास जवाब नहीं है


सिवनी। गोंडवाना समय। 

जनजातीय कार्य विभाग सिवनी में हरेक असंभव कार्य को संभव किया जाने का कार्य किया जाता है। वहीं एमपी अजब है और गजब है इसको चतीतार्थ करने में जनजाितय कार्य विभाग सिवनी अपना कर्तव्य व फर्ज ईमानदारी से निभा रहा है अर्थात यथार्थ यही है कि जनजाति कार्य विभाग सिवनी में जो हो जाये वह आश्चर्य की बात नही है।

सिवनी में इसके विपरीत स्थिति ही देखने को मिलती है 


केंद्र हो या मध्यप्रदेश चाहे किसी भी दल की सरकार हो लेकिन अधिकांशतय: यही देखने में आता है कि जनजाति कार्य विभाग का मंत्री जनजाति आदिवासी वर्ग का ही होता है वह इसलिए कि जिस वर्ग के लिए सरकार कार्यक्रम और योजना चलाती है उनके लिए वह आत्मीय और संवेदनशील रहे किन्तु जनजाति बाहुल्य जिला सिवनी में इसके विपरीत स्थिति ही देखने को मिलती है। 

5 आदिवासी विकास खण्ड है 


जनजाति बाहुल्य जिला सिवनी में 5 आदिवासी विकास खण्ड है, जिसमें कुरई, छपारा, लखनादौन, घंसौर और धनौरा यहां विकास खण्ड स्तर पर जिम्मेदारी विकास खण्ड अधिकारी को दी जाती है जो कि विभाग की योजना के क्रियान्वयन तथा पदस्थ शिक्षक, कर्मचारी के वेतन और स्वत्व के भुगतान का दायित्व निभाते है।
                 हम आपको बता दे कि कुरई में श्री अनुराग रावल, छपारा में श्री राकेश दुबे, घंसौर में श्री प्रसेन दिक्षित मूल पद प्राचार्य (वित्तीय प्रभार), श्री व्ही के बोरकर (संलग्न प्रशासनिक प्रभार) धनौरा में श्री रामविदूर पाराशर डबल दायित्व में है बरघाट के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत बरघाट के अतिरिक्त दायित्व  सौपा गया है। दोनो ब्लाक की दूरी आपस में लगभग 60-65 किमी है कैसे दोनो का उतरदायित्व निभाते होंगे यह अपने आप में ही प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।

नीरज दुबे कोे राजनीतिक दबाव में तो नहीं दिया गया विकासखंड अधिकारी का प्रभार 

अब महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि लखनादौन में तो गंभीर और विस्मयकारी बात सामने आयी है कि वैकल्पिक व्यवस्था का परीक्षण किये और बिना चैनल/वरिष्ठ  अधिकारी को यह प्रभार न देकर एक उच्च माध्यमिक शिक्षक श्री नीरज दुबे को विकासखण्ड अधिकारी लखनादौन का प्रभार प्रशासन ने राजनीतिक और संगठन के दबाव मेंदे दिया है।
                कन्या शिक्षा परिसर लखनादौन में जिस विषय के यह शिक्षक है वहां की आदिवासी बालिकाओं की विषय शिक्षा प्रभावित होना अवश्यंभावी है। शिक्षक को अन्य दायित्व से मुक्त रखने के भी शासन के निर्देश है जबकि मप्र शासन जनजातीय कार्य विभाग के जारी परिपत्र के आधार पर किसी भी रिक्त पद का प्रभार देने में वरियता और उपयुक्तता का ध्यान रखा जाना चाहिए। इस मामले में किसकी सहमति से, किसके द्वारा यह कराया गया है यह तो विभाग, शासन व राजनैतिक सत्ताधारी के नेतागण ही जानते है। 

नुकसान तो आदिवासी वर्ग का होना तय है

इस समाचार से यह कहावत चरितार्थ होती है कि छूरी खरबूजा पर गिरे या खरबूजा छूरी पर कटेगा खरबूजा ही उसी प्रकार बदहाल और अतिक्रमित सिस्टम और मानसिकता चाहे इधर से या उधर से हो नुकसान तो आदिवासी वर्ग का होना तय है।



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