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मोहगांव परियोजना मंडल, मंडला और वन विकास निगम लिमिटेड पूरे जंगल को नष्ट करने में लगे है-हरेन्द्र मसराम

मोहगांव परियोजना मंडल, मंडला और वन विकास निगम लिमिटेड पूरे जंगल को नष्ट करने में लगे है-हरेन्द्र मसराम 

आदिवासी पंचायत जनप्रतिनिधियों के मांग पत्रों को अनसुना कर अपमानित कर रहे प्रशासनिक अधिकारी 

मण्डला। गोंडवाना समय। 

हरेन्द्र मसराम 14 जनपद सदस्य एवं सभापति वन स्थाई समिति, सदस्य-स्वास्थ्य एवं महिला कल्याण स्थाई समिति जनपद पंचायत मंडला जिनके द्वारा बीते लगभग 2 साल 3 महीना पूर्व से ही समय-समय पर पत्र के माध्यम से जिला प्रशासन को अवगत कराने के बाद भी उनके मांग पत्र को अनदेखा किया जा रहा था। इसलिए अनिश्चितकालीन धरना पर बैठने के लिये उन्हें मजबूर होना पड़ा। 

पेसा एक्ट को नहीं मानता वन विभाग 

 


हरेन्द्र मसराम ने कहा कि वन स्थाई समिति जनपद पंचायत मंडला के द्वारा आयोजित बैठकों में अनुपस्थित एजेंडा अनुरूप कार्रवाई नहीं करना एवं पारित प्रस्ताव की अवहेलना किए जाता है। वन विभाग मंडला एक ऐसा विभाग हैं जो मध्य प्रदेश शासन के द्वारा पारित ग्राम सभा के पेसा एक्ट को नहीं मानता हैं बल्कि वन विभाग को पता भी नही है कि जंगल आदिवासी क्षेत्र में आता हैं। 

सागौन के पौधे लगाने के नाम पर करोड़ो रुपये खर्च कर दिये जाते हैं 


वन विभाग से ही जुड़ा एक ऐसा ही विभाग हैं, संभागीय प्रबंधक मोहगांव परियोजना मंडल मंडला, जो मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम लिमिटेड हैं, यह विभाग बिगड़े वन को सुधारने के लिए लीज में लेता हैं। जंगल में लगे सभी प्रकार के प्रजाति के पेड़ पौधे लगे होते हैं, उन सभी प्रजाति को काटकर या नष्ट करके, पेड़ पौधों के जैव विविधता को खत्म करके केवल एक ही प्रजाति का पौधा लगाया जाता हैं।
                सागौन के पौधे लगाने के नाम पर करोड़ो रुपये खर्च कर दिये जाते हैं। कागजो में केवल बिल वाउचर लगा दिये जाते हैं। पूरे सिस्टम में प्रतिशत के हिसाब से पैसा बंट जाता हैं। फिर 10 साल के बाद आप अगर इनके द्वारा बनाए जंगल में जाकर देखेंगे तो आपको गिने-चुने पेड़ और जानवर भी नही मिलेंगे।

जिन-जिन प्रजातियों के पेड़ काटे जाये, उन प्रजातियों के पौधे भी लगाया जाए 


अगर आप शिकायत करोगे तो वन विभाग बोलेगा कि गांव वालो ने ही काट कर ले गये है फिर दोबारा वह जंगल नहीं सुधर सकता हैं। वही अगर किसी आदिवासी भाई के खेत में अगर 50 सागोन के पेड़ लगे हैं तो उनको 10-15 पेड़ काटने का ही परमिशन दिया जाता हैं। यही प्रावधान विभाग में भी लागु होना चाहिए, जिन-जिन प्रजातियों के पेड़ काटे जाये। उन प्रजातियों के पौधे भी लगाया जाए, जिससे जंगल की जैव विविधता बनी रहेगी।

इसके लम्बे समय में बहुत खतरनाक दुष्परिणाम हैं 


अगर किसान के खेत में पेड़ लगे हैं तो वन विभाग के नियम आम आदमी के लिए बहुत सारे होते हैं, जैसे पेड़ काटने के लिए तने की गोलाई 120 या 130 सेंटीमीटर हो तो ही पेड़ काटने का परमिशन देते हैं। यही नियम जंगलों में भी लागू होना चाहिए। जबकि राज्य वन विकास निगम लिमिटेड सभी पेड़-पौधों की कटाई करता हैं। देखने में यह एक बहुत सामान्य गतिविधि लगती हैं, जबकि इसके लम्बे समय में बहुत खतरनाक दुष्परिणाम हैं।

जिन विभागों के नाम में विकास शब्द जुड़ा हैं वो वर्षो से विनाश ही कर रहे हैं 


इसके लिए हम सबको आवाज उठाना पड़ेगा नहीं तो कल के दिन यह राज्य वन विकास निगम लिमिटेड पूरे जंगल को नष्ट कर देगा। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले विभागों में यह केवल एक विभाग का उदाहरण हैं। ना जाने ऐसे कितने विभाग हैं जो सरकार की योजना के नाम पर पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। खनिज विभाग अत्याधिक जमीन का दोहन करके।
                    नर्मदा विकास प्राधिकरण नदियों में बड़े बड़े बांध बनाकर। ज्यादातर जिन विभागों के नाम में विकास शब्द जुड़ा हैं वो वर्षो से विनाश ही कर रहे हैं। हरेन्द्र मसराम सभापति वन समिति, जनपद मंडला अनुसूचित क्षेत्र कहना है कि आदिवासी वित्त विकास विभाग, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण, राज्य वन विकास निगम लिमिटेड, नगरीय विकास एवं आवास, वहीं वैसे तो नाम से कुछ नही होता हैं, सभी विभाग पर सत्ताधारी शासन के निर्देश जारी होते हैं और सत्ताधारियों पर पूंजीपतियों के। आम आदमी केवल आम जीवन जीने के लिए हैं।

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