शशिकांत सिंह प्राचार्य ने जनजाति कार्य विकास विभाग को बनाया कमाई का अड्डा
स्कूल के प्राचार्य है लेकिन सहायक संचालक का जुगाड़ से पाया पद
6 वर्षों से अधिक समय से जनजाति कार्य विभाग में नियम विरूद्ध डटे है शशिकांत सिंह
सिवनी। गोंडवाना समय।
जनजाति समुदाय के विद्यार्थी से लेकर प्रत्येक आदिवासी समाज के लिये समस्त क्षेत्रों में विकास, कल्याण, उत्थान के लिये जनजाति कार्य विकास विभाग केंद्रीय व राज्य स्तर पर संचालित है। आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में भी आदिवासी विकास खंडों में जनजाति कार्य विकास विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है।
इसके साथ साथ अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग की बाहुल्य बस्ती बसाहट वाले क्षेत्र जो कि सामान्य ब्लॉक में आते है वहां पर भी महत्वपूर्ण भूमिका है। जनजाति कार्य विभाग सिवनी कार्यालय में अधिकांश पद या शाखा में कमाऊपूतों ने अपना सिक्का जमा रखा है। इन्होंने प्रशासनिक व राजनैतिक पकड़ भी बनाकर रखा हुआ है।
नियम विरूद्ध तरीके से जनजाति कार्य विकास विभाग कार्यालय सिवनी में अपनी पोस्टिंग कराकर मलाईदार शाखा की कुर्सी में बैठकर में दौलत कमाने के साथ साथ कमाऊपूत भी बन रहे है। इनमें से एक नाम शशिकांत सिंह का भी प्रमुख रूप से आता है। सहायक संचालक बनकर शशिकांत सिंह जनजाति कार्य विकास विभाग में बड़ा खेला कर रहे है।
7 वर्षों से शशिकांत सिंह ने कब्जा जमाकर रखा हुआ है
हम आपको बता दे कि जनजाति कार्य विकास विभाग में सहायक संचालक की पोस्ट शासन द्वारा भरी जाती है। वहीं यदि शासन द्वारा उक्त पद पर भर्ती नहीं की जाती है तो इसके लिये योग्य व पात्रता रखने वाले को सहायक संचालक के पद पर लगभग 2 या 3 वर्ष के लिये प्रभार दिया जाता है।
इसका फायदा कुछ शातिर दिमाग और दौलत कमाने की भूख रखने वाले जुगाड़ु और सेटिंगबाज उठाने में सबसे आगे रहते है अब चाहे वे योग्य हो या पात्रता भी नहीं रखते है तो उन्हें सहायक संचालक की कुर्सी पर बैठा दिया जाता है। जनजाति कार्य विकास विभाग सिवनी कार्यालय में भी सहायक संचालक के पद लगभग 7 वर्षों से शशिकांत सिंह ने कब्जा जमाकर रखा हुआ है।
सीनियर होने के बाद भी शशिकांत सिंह कैसे बन गये सहायक संचालक
सूत्र बताते है कि जनजाति कार्य विकास विभाग में सहायक संचालक के पद पर कब्जा जमाने वाले शशिकांत सिंह जो कि हाईस्कूल धोबीसर्रा में प्राचार्य के पद पर पदस्थ है लेकिन जुगाड़ और सेंटिंग के दम पर वह सहायक संचालक की कुर्सी में बैठ गये है।
जबकि शशिकांत सिंह से सीनियर और भी कर्मचारी है जिन्हें सहायक संचालक बनाया जा सकता है और वे पात्रता भी रखते है। इसके बाद भी सिर्फ शशिकांत सिंह जो कि जूनियर भी है उन्हीं को ही सहायक संचालक का प्रभार दिया गया है। हाईस्कूल के प्राचार्य बीते लगभग 7 वर्ष से सहायक संचालक बनकर शशिकांत सिंह जनजाति कार्य विभाग में रौब जमाते हुये दौलत कमाने का सुरक्षित अड्डा भी बना लिया है।
कुर्सी का फायदा कैसे उठा रहे है शशिकांत सिंह
सहायक संचालक शशिकांत सिंह नियम विरूद्ध तरीके से प्रभारी के रूप में जुगाड़ से आये थे लेकिन 7 वर्ष से कब्जा जमाकर बैठ गये है। शशिकांत सिंह सहायक संचालक बनकर किस तरह, कहां-कहां और कैसे किन मामलों में अपनी कमाई को बढ़ाकर बरकरार रख रहे है। इसका खुलासा गोंडवाना समय द्वारा किया जायेगा कि कुर्सी का फायदा कैसे उठा रहे है।