धरती का प्रथम मुख वाद्य यंत्र और आदिवासियों की धार्मिक, सांस्कृतिक महत्व का हो रहा अपमान
सिंगी, सुरही, तुर्रा, तुरही जिसका धार्मिक महत्व है उसके ऊपर नृत्य करके चित्र बनाकर किया जा रहा उपयोग
उक्त विषय पर विशेषकर, चिंतन, मंथन, की आवश्यकता के साथ साथ सुधार की आवश्यकता है
सिवनी। गोंडवाना समय।
विश्व आदिवासी दिवस सहित अन्य आदिवासी समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक कार्यक्रमों व अवसरों पर शुभकामना संदेश, पाम्पलेट, पोस्टरों आदि में आदिवासी समाज के लिये धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक महत्व में माने जाने वाले और सबसे अहम बात यह है कि धरती का प्रथम मुख वाद्य यंत्र सिंगी, सुरही, तुर्रा, तुरही के ऊपर नृत्य करते हुये चित्र बनाकर उसका अपमानजनक रूप में उपयोग किया जा रहा है। इस पर सुधार की सख्त जरूरत है।
आदिवासी समुदाय सिंगी, सुरही, तुर्रा, तुरही का धार्मिक आयोजन में करते है प्रयोग
हम आपको बता दे कि धरती का पहला मुख वाद्य यंत्र सिंगी, सुरही, तुर्रा, तुरही व अपने अपने क्षेत्र में अन्य नामों से जाना जाता है। सिंगी, सुरही, तुरही व तर्रा का आदिवासी समाज में इसका बड़ा पवित्र धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक महत्व है।
आदिवासी समाज में इसका उपयोग पूजन पाठ में किया जाता है। इसके साथ साथ इसका अलग अलग क्षेत्रों में भी विशिष्ट महत्व है। इसका उपयोग धरती का पहला मानव मूलवासी, आदिवासी समाज के द्वारा ही किया जाता था और आज भी यह परंपरा जारी है। आदिवासी समाज में इसे धार्मिक आयोजन के दौरान विशेष रूप में उपयोग किया जाता है।
गोंडवाना समय का सुझाव है कि यदि आपको सिंगी, सुरही, तुर्रा, तुरही का आपके शुभकामना संदेश, बैनर, पोस्टर, पाम्पलेट में उपयोग करना ही है तो उसके नीचे नृत्य करने वालों का चित्र आप बनवा सकते है जिससे आदिवासी समाज की और धरती की पहला मुख वाद्य यंत्र सिंगी, सुरही, तुर्रा तुरही का सम्मान बढ़ेगा और आपकी भी शान बढ़ेंगी।
आदिवासी समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक महत्व के प्रतीकों का हो रहा दुरूपयोग
बीते कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि आदिवासी समाज के लिये जो चीजे विशेष महत्व रखती है उनका गलत तरीके से उपयोग किया जा रहा है। जिससे आदिवासी समाज की आस्था, भावना, परंपरा, रीति-रिवाज पर भी नकारत्मक प्रभाव पड़ता है।
राजनैतिक कार्यक्रमों में स्वागत, सत्कार के दौरान नेताओं के सिर पर मुकुट पहनाने का चलन भी बढ़ता जा रहा है। इस दौरान आदिवासी समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक, साामाजिक, प्रथा, परंपरा, रीति रिवाज से जुड़ी हुये विशेष महत्व रखने वाले सामग्री को हर किसी के सिर में सजाया जा रहा है। इससे आदिवासी समाज की संस्कृति के साथ साथ धार्मिक आस्था पर कुठाराघात किया जा रहा है।
इस पर सुधार के साथ साथ रूकावट की जरूरत है। वहीं धरती के प्रथम मुख वाद्य यंत्र सिंगी, सुरही, तुर्रा तुरही जिसका धार्मिक महत्व है उसके ऊपर नृत्य करके चित्र बनाकर उसका शुभकामना संदेश, बैनर, पोस्टर, पाम्पलेट आदि में भी उपयोग किया जा रहा है इस पर भी सुधार की जरूरत है। इस विषय पर आदिवासी समाज के बुद्धिजीवि भी चिंतन-मंथन कर सकते है।