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आरटीआई आम आदमी का अधिकार है, इसे ब्लैकमेलिंग कहना सही नहीं

आरटीआई आम आदमी का अधिकार है, इसे ब्लैकमेलिंग कहना सही नहीं

पचायतों मे आरटीआई के तहत जानकारी नही दी जाती, उल्टा रोकने का प्रयास


केवलारी। गोंडवाना समय। 

केवलारी विकासखण्ड के सरंपच, सचिव, ग्राम रोजगार सहायक, जनपद सदस्य व जनपद अध्यक्ष ने शुक्रवार को सामूहिक रूप से अनुविभागीय अधिकारी राजस्व केवलारी को उपस्थित होकर एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उन्होने मनरेगा योजना के भुगतान प्रणाली मे हुये बदलाव का विरोध करने के साथ साथ, आरटीआई के तहत आवेदन देने को ब्लैकमेलिंग करना बताया है, जो एक तरह से सूचना को देने से मना करना या सूचना प्राप्त करने वाले लोगो को डराने का प्रयास है। 

राज्य सूचना आयोग भोपाल पहुंची है शिकायते 


हम आपको बता दे कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक ऐसा कानून है। जो देश के प्रत्येक नागरिक को शासकीय कार्यालयों से निजी व्यक्तिगत जानकारी को छोडकर सभी आवश्यक जानकारी को प्रमाणित रूप से प्राप्त करने का अधिकार देता है।
                देश के हर नागरिक को अपने इस अधिकार को उपयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। जानकारी न मिलने पर उच्च स्तर पर अपील करने यहां तक की आयोग मे सुनवाई व कोर्ट मे मुकदमा दायर करने, लोक सूचना अधिकारी पर जुमार्ना लगाने तक की व्यवस्था आरटीआई प्रावधान में है।
                 कुछ वर्षो मे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की बहुत सी शिकायतें आरटीआई के आवेदन के तहत जानकारी न मिलने को लेकर पीड़ितों के माध्यम से राज्य सूचना आयोग भोपाल पहुंची है। आयोग के सूचना आयुक्त ने इतनी बडी संख्या मे अपील व शिकायतों के पहुंचने पर उसको संज्ञान मे लेकर पंचायत सचिवों को आरटीआई एक्ट के तहत प्रशिक्षण देने के आदेश जारी भी किये है। 

अनेको पंचायतों से जानकारी आरटीआई आवेदन पर नही दी जाती है 

केवलारी विकासखण्ड के भ्रष्टाचार की खबर पूरे देश में जनचर्चा का विषय है। रह रहकर यहां बडेÞ-बडेÞ भ्रष्टाचारों का खुलासा होता रहता है।
             खबरों मे भी पंचायत के भ्रष्टाचार सुर्खियां बटोरते रहते है, पंचायतों मे किसी प्रकार के काम का यदि वास्तविक आंकलन व मिलान करना हो, अनियमितता व भ्रष्टाचार को उजागर करना हो तो उसकी जानकारी निकालने के लिए सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6 (1) के तहत संबंधित जन सूचना अधिकारी ग्राम पंचायत पंचायत सचिव के कार्यालय में आवेदन प्रस्तुत करना होता है, ताकि जानकारी को प्रमाणित रूप से प्राप्त किया जा सके।
                वास्तविकता का पता चल सके, जिसके आधार पर पंचायतों के कार्यो की सही व स्पष्ट जांच कराई जा सके। आवेदनों की जानकारी पंजी मे संधारित भी किया जाना अनिवार्य होता है लेकिन अनेको पंचायतों से जानकारी आरटीआई आवेदन पर नही दी जाती है।

निर्माण कार्यो व बिल, भुगतान में भारी भ्रष्टाचार किया गया है 

यहां तक की निर्धारित अवधि के बीत जाने के बाद आवेदक को अपीलों का सहारा लेना पडता है लेकिन अपीलीय अधिकारी भी जानकारी दिलाने मे असमर्थ होते है। यहां तक की व्यक्ति को व्यथित होकर आयोग में शिकायत करने को मजबूर होना पड़ता है।
                केवलारी विकासखण्ड की अनेकों पंचायतों में कपिलधारा कुंआ, अमृत सरोवर, मनरेगा योजना, खेत तालाब योजना, स्टाप डेम व अन्य निर्माण कार्यो व बिल, भुगतान में भारी भ्रष्टाचार किया गया है। काम धरातलीय स्तर मे निम्न गुणवत्‍ता स्तर व निम्न लागत का है, जबकि कागजी कार्यवाही कर रिकार्डो में अधिक राशि को स्वीकृत कर राशि का आहरण कर लिया जाता है और राशि का बंदरवाट कर लिया जाता है। 

आम जनता के संवैधानिक अधिकारों का हनन करना है 

आरटीआई के तहत जानकारी प्राप्त करने के बाद किसी के द्वारा यदि ब्लैकमेलिंग की जाती है, सही को गलत बताया जाता है, तो वह कानून की नजर में दोषी है और विभाग उस पर दोष व तथ्य सिद्ध होने पर कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र है लेकिन अनेको आवेदनों को दबा लेने और जानकारी को नहीं दिया जाना, आवेदक को जानकारी लेने से रोकना है, किसी तरह से अपने आप को बचाना है और भ्रष्टाचार को उजागर करने से भी रोकना है, आम जनता के संवैधानिक अधिकारों का हनन करना है, पंचायतों मे देखा जावे तो अनेको आवेदन ऐसे मिलेगे जिन पर जानकारी ही नही दी गई, आरटीआई एक्ट की खुली धज्जियां उडाई जाती है, कई पंचायतों मे आरटीआई कर्मचारियों की जानकारी का बोर्ड नही लगा है, यदि पंचायतो मे किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नही किया जाता है, सभी कार्य सही होते है, तो कामों को सार्वजनिक करने मे जानकारी क्यो नही दी जाती है। 

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