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आदिवासियत की पहचान नहीं कर पाना, अमरवाड़ा विधानसभा में कांग्रेस को ले डूबेगी

आदिवासियत की पहचान नहीं कर पाना, अमरवाड़ा विधानसभा में कांग्रेस को ले डूबेगी 

राहूल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे कितना भी आदिवासियत का राग अलाप ले लेकिन जमीनी हकीकत विपरीत ही है 

भाजपा के जैसे आदिवासियों को मौका देने में कांग्रेस क्यों रहती है पीछे ? 

अमरवाड़ा विधानसभा उप चुनाव में स्टार प्रचारकों की सूची में आदिवासियत को मिला स्थान 


विशेष खबर,
विवेक डेहरिया, संपादक
अमरवाड़ा/छिंदवाड़ा। गोंडवाना समय। 

कांग्रेस के नेता राहूल गांधी पूरे देश में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में भ्रमण व चुनाव प्रचार प्रसार के दौरान आदिवासियत का राग अलापते हुये नजर आते है। इनकी देखा देखी प्रियंका गांधी भी वही राग अलापती है, वहीं राहूल गांधी की हु बहु अंदाज में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकाअर्जुन खरगे भी आदिवासियत का राग अलापते हुये नजर आते है।
                


वहीं राहूल गांधी की कॉपी पेस्ट भाषणों में आदिवासी अंचल क्षेत्रों में मध्यप्रदेश के कांग्रेस के नेतागण भी आदिवासियत का राग अलापने में अपनी भूमिका निभाते है। मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी आदिवासियत का राग अलाप रहे है लेकिन लोकसभा चुनाव में पूरी 29 सीट भाजपा की झोली में डाल दिया है, यहां तक आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा सीट को भी कमल नाथ 40 सालों की विरासत को वर्ष 2024 के चुनाव में नहीं बचा पाये।
                 

लोकसभा चुनाव में ही आदिवासी आरक्षित सीट अमरवाड़ा से कांग्रेस के विधायक राजा कमलेश शाह ने कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थाम लिया था। वहीं अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में दलबदलने के कारण अब उप चुनाव हो रहा है।
                अमरवाड़ा आदिवासी आरक्षित विधानसभा क्षेत्र होने के कारण यहां पर आदिवासियत की पहचान करना बेहद जरूरी है। अमरवाड़ा विधानसभा में आदिवासियत की पहचान करने में कांग्रेस सबसे पीछे है और भूल करने के साथ साथ गलती कर रही है और यही गलती अमरवाड़ा में कांग्रेस को ले डूबेगी। 

स्टार प्रचारकों की सूची में आदिवासियत की पहचान करना भूल गई कांग्रेस 


राहूल गांधी को भाजपा के साथ साथ आरएसएस को घेरकर उन पर तीखे शब्द प्रहार करते हुये आदिवासी को देश का असली मालिक बताते है लेकिन कांगे्रस कितना आदिवासियों को सम्मान देती है, आदिवासियत की पहचान कांगे्रस कितनी करती है।
                इस पर कांग्रेस नेता राहूल गांधी को चिंतन-मंथन करने की अनिवार्य आवश्यकता है। आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में कांग्रेस आदिवासियों का उपयोग तो करती रही है लेकिन आदिवासियत की पहचान करने में सदैव भूल करती आई है।
                    

कांग्रेस की आदिवासियों को सम्मान नहीं देना और आदिवासियत की पहचान को मिटाने का प्रयास करने के कारण ही मध्यप्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का उदय हुआ, जिसने मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता से दूर कर दिया।
                    यदि हम बात करें फिलहाल आदिवासी आरक्षित सीट अमरवाड़ा की तो वहां पर मध्यप्रदेश कांग्रेस द्वारा उप चुनाव प्रचार-प्रसार के लिये स्टार प्रचारकों की सूची तैयार किया है उसमें आदिवासियत की पहचान को समाप्त कर दिया है। या यह कहें कि आदिवासियत की पहचान करने में बहुत बड़ी गलती करते हुये भूल किया है।                     

स्टार प्रचारकों की सूची में आदिवासी आरक्षित विधानसभा सीट अमरवाड़ा में जिन्हें शामिल किया गया है उसमें अमरवाड़ा विधानसभा की भौगोलिग, तासिर, राजनीतिक, सांस्कृतिक स्थति को भी नजरअंदाज किया गया है, स्टार प्रचारकों में किन्हें शामिल करने से कांग्रेस को कितना फायदा हो सकता था, इसका ध्यान प्रदेश कांग्रेस कमेटी कहें या राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के द्वारा ध्यान नहीं दिया गया है।
                    कांग्रेस नेता राहूल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे स्टार प्रचारकों की सूची से ही यह समझ लेना चाहिये कि अमरवाड़ा विधानसभा में आदिवासियत की पहचान नहीं करने की भूल व गलती कांग्रेस को ले डूबेगी। 

गोंडवाना बाहुल्य क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं को स्टार प्रचारको की सूची में नहीं दिया स्थान 


गोंडवाना बाहुल्य क्षेत्र के छिंदवाड़ा जिले के आदिवासी आरक्षित सीट अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव हो रहा है। गोंडवाना आंदोलन का अच्छा खासा प्रभाव अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में माना जाता है क्योंकि वर्ष 2003 में लिंगोवासी मनमोहन शाह बट्टी गोंडवाना के दबंग लीडर के रूप में अपनी पहचान बनाकर विधायक चुने गये है।                 इसके बाद से लगातार अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में गोंडवाना आंदोलन का प्रभाव बना रहा, उनके लिंगोवासी हो जाने के बाद भी अमरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने सेंधमारी करते हुये उनकी विरासत को समाप्त करने का प्रयास किया जिसमें भाजपा सफल भी हो गई है लेकिन इसके बाद भी गोंडवाना आंदोलन का प्रभाव आज भी बरकरार है।
                    कांग्रेस के विधायक को भाजपा ने अपने पाले में लाकर विधायक बनाने का रास्ता तो आसान कर लिया है लेकिन राह में कठिनाई भी है। अमरवाड़ा विधानसभा में उप चुनाव समझकर चलिये कि सरकार बनाम, कांग्रेस और गोंगपा के साथ हो रहा है। कांगे्रस ने राजा के खिलाफ संत को खड़ा किया है तो वहीं गोंगपा ने युवा को मैदान में उतारा है।
                कांग्रेस के लिये सबसे बड़ी मुसीबत गोंडवाना आंदोलन का प्रभाव है जो कांग्रेस का वोट बैंक को ही सर्वाधिक प्रभावित करेगा। ऐसी स्थिति के बाद भी कांग्रेस के द्वारा बनाई गई स्टार प्रचारकों की सूची में गोंडवाना बाहुल्य क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं को तव्वजों नहीं दिया गया है उन्हें कोई स्थान नहीं दिया गया है।
                कांग्रेस की स्टार प्रचारकों की सूची को देखकर ही यह लगता है कि कांग्रेस ने अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा को बाकोवर दे दिया है। जबकि अमरवाड़ा विधानसभा में गोंडवाना आंदोलन का प्रभाव है तो वहां पर सिवनी, मण्डला, डिंडौरी, बालाघाट, जबलपुर, बैतुल, सहित अन्य गोंडवाना बाहुल्य क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं को स्थान ही नहीं दिया गया है या जानबूझकर मध्यप्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने नकार दिया है।  

यही कारण है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों से कांग्रेस की नैया डूबती जा रही है 


भाजपा ने आदिवासियत को पहचान देने या आदिवासियों को सम्मान देने के लिये आदिवासी राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश देने का प्रयास तो किया है कि वह आदिवासी हितेषी है भले ही विपक्ष कांग्रेस उसे दिखावा मानती है। वहीं दूसरी ओर आजादी के बाद से ही कांग्रेस जिन आदिवासियों को परंपरागत वोट मानता आ रहा था।
             उन्हीं आदिवासियों को कांग्रेस पार्टी राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, राज्यसभा की सीट देने में या बनाने में हमेशा दूरी बनाती हुई नजर आती है। कांग्रेस भाषण में आदिवासियों का सम्मान करती है लेकिन कांग्रेस असल में आदिवासियत की पहचान करने में तो भूल व गलती करती आ ही रही है लेकिन उन्हें सम्मान व स्थान देने में भी अपनी भूमिका निभा रही है।
            यही कारण है कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों से कांग्रेस की नैया डूबती जा रही है। इस तरह की गंभीर मामलों में कांग्रेस के क्षत्रप नेताओं में राहूल गांधी सहित वरिष्ठ नेताआें को गंभीर चिंतन-मंथन करने की आवश्यकता है। 

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