किडनी कांड में आदिवासी सामाजिक संगठनों व जनप्रतिनिधियों की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल
शबीना बेगम, अब्दुल कलाम, साहिद मंडल, अता उल्लाह खान, मोहसीन खान व अन्य साथी है शामिल
बरघाट क्षेत्र का है पीड़ित आदिवासी परिवार
बरघाट/सिवनी। गोंडवाना समय।
भारत सहित मध्यप्रदेश में आदिवासियों के साथ बढ़ रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने या विरोध दर्ज कराने के मामले में आदिवासी जनप्रतिनिधियों और आदिवासी सामाजिक संगठनों की भूमिका को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैे।
आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों को लेकर मंच पर भाषण, सोशल मीडिया में उंगलियां चलाकर न्याय दिलाने की लंबे लंबे भाषण, बड़ी बड़ी कहानी देखने-पढ़ने व सुनने को मिलती है। बीते दिनों बरघाट मुख्यालय के आदिवासी युवक के साथ अमानवीय अत्याचार के मामले में यदि कहा जाये तो पेंचीस से गुप्तांग और शरीर की चमड़ी खींचकर अत्याचार किया गया था।
सड़कों पर उतकर विरोध दर्ज कराना तो छोड़ों कागज में ज्ञापन तक नहीं सौंप पा रहे है
वहीं उसी बरघाट ब्लॉक की आदिवासी महिला का पेट फाड़कर किडनी निकालकर उसकी जिंदगी की आयु कम करने का षड़यंत्र किया गया है। आदिवासी महिला अपने पति के साथ जान बचाकर भागकर लगभग 9 माह बाद अपने घर वापस आ पाई है। हिम्मत जुटाकर पुलिस अधीक्षक से शिकायत की है। इसकी जानकारी आदिवासी सामाजिक संगठनों के मुखियाओं व पदाधिकारियों को भी मालूम है।
यहां तक जनप्रतिनिधियों को भी मालूम है लेकिन आदिवासी महिला की किडनी निकाल लिये जाने के मामले में सबने अपना मुंह बंद करना ही मुनासिब समझ लिया है। आखिर क्या कारण है यह तो आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधि और सिवनी जिले में संचालित आदिवासी सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी ही जानते है।
आदिवासी महिला की किडनी निकालने वालों के खिलाफ जांच कार्यवाही के लिये कम से कम ज्ञापन सौंपकर अपनी सामाजिक जवाबदारी का फर्ज तो निभा सकते है लेकिन उसमें भी वे फेल साबित हो रहे है। सड़कों पर उतकर विरोध दर्ज कराना तो छोड़ों कागज में ज्ञापन तक नहीं सौंपा पा रहे है।
जिम्मेदारी से भाग रहे सामाजिक संगठन आखिर क्यों ?
गोंड जनजाति वर्ग की पीड़ित महिला जिसकी किडनी कल्कता में निकाला गया है उसे न्याय दिलाने के लिये सिवनी जिले में गोंड समाज महासभा, सर्व आदिवासी समाज, कोयतोड़ गोंडवाना महासभा, गोंडवाना महासभा, आदिवासी जनकल्याण परिषद, बिरसा बिग्रेड, गढ़ा गोंडवाना संरक्षण संघ, जनजाति सुरक्षा मंच सहित अनेक आदिवासी समाज के सामाजिक संगठन है जो आदिवासी पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने में मैदान छोड़कर भागते हुये नजर आ रहे है।
गोंगपा, बसपा, भीम आर्मी, बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा मैदान से बाहर
वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी तो अमानवीय अत्याचार के मामले में भी मौन थी, वहीं किडनी कांड में भी चुपचाप बैठी है। गोंगपा के नेता आदिवासियों के नाम सोशल मीडिया तक सीमित रह गये है। वहीं आदिवासी पीड़ित परिवार के मामले में बहुजन समाज पार्टी का अता पता नहीं है।
भीम आर्मी सिमरिया कांड, भाजपा नेता विजय सूर्यवंशी के मामले में दहाड़ने वाली चूहे के बिल में जाकर समा गई है। बामसेफ जैसे संगठन आदिवासी को संवैधानिक पाठ पढ़ाने का ढिंढौरा पीटती है। भारत मुक्ति मोर्चा संगठन भी किडनी कांड में पीड़ित आदिवासी परिवार के मामले में चुपचाप बैठे हुये है। कम से कम कागज में ज्ञापन सौंपने का काम आवक जावक में जाकर देकर पूरा कर सकते है।
कमल मर्सकोले ने फोन पर जानकारी लेकर कर लिया इतिश्री
बरघाट विधायक कमल मर्सकोले ने फोन पर जानकारी लेकर इति श्री कर लिया है। बरघाट मुख्यायल से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले पीड़ित परिवार के घर जाकर उन्हें अपने यहां पर बुलाकर घटनाक्रम की जानकारी लेना तक मुनासिब नहीं समझ रहे है बरघाट विधानसभा क्षेत्र के विधायक कमल मर्सकोले आखिर उनकी क्या मजबूरी है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बरघाट विधायक कमल मर्सकोले ने शनिवार के दिन पीड़ित परिवारजनों को फोन करके घटनाक्रम की जानकारी लेना चाहा। अब सवाल यह उठता है कि किडनी निकालने का मामला फोन में कितना पीड़ित परिवार दे सकता है। बरघाट विधायक कमल मर्सकोले या तो पीड़ित परिवार के घर जाकर घटनाक्रम की जानकारी ले सकते है या फिर उन्हें अपने घर बुलाकर जानकारी ले सकते है।