बालाघाट सिवनी लोकसभा से आदिवासी समाज के सम्मान में मजबूत योग्य प्रत्याशी उतारेंगे
रानी दुर्गावती सामुदायिक भवन बालाघाट में आदिवासी महापंचायत की बैठक में लिया गया निर्णय
बालाघाट। गोंडवाना समय।
रानी दुर्गावती सामुदायिक भवन बालाघाट में आदिवासी महापंचायत की बैठक जिले के सभी ब्लाकों के विभिन्न सामाजिक संगठनों कार्यकतार्ओं की उपस्थिति में निर्णायक सफल बैठक रही।
जिसमें गोंडवाना गोंड महासभा बालाघाट, संयुक्त आदिवासी समाज संगठन वारासिवनी, ग्राम गणराज बिरसा, आदिवासी विकास परिषद लालबर्रा, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद कटंगी, सर्व आदिवासी समाज संघठन बालाघाट, सर्व आदिवासी समाज संगठन किरणापुर, माना समाज लांजी, बिंझवार समाज बालाघाट, बड़ादेव समिति उकवा, हलबा समाज बालाघाट, कंडरा समाज वारासिवनी, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद सर्कल कुमादेही परसवाड़ा, सर्व आदिवासी समाज संगठन खैरलांजी के पदाधिकारियों कार्यकतार्ओं की उपस्थिति में बैठक सफलतापूर्वक संपन्न हुई।
प्रमुख रूप से इनकी उपस्थिति में लिया संकल्प
नरोत्तम चौधरी, एस आर धुर्वे, श्रीमती मीना उइके, श्रीमती दुर्गा कोराम, सुश्री शकुन प्रधान, अंजू परते, सरस्वती, राजेश टेकाम, सीताराम उइके, जय राम वरकडेÞ, हमींलाल मरावी, मनीराम टेकाम, संपत सिंह सैयाम, धन सिंह टेकाम, रविंद्र अड़मे, मंगल सिंह चिचाम, फूल सिंह परते, प्रीतम मर्सकोले, दिलीप सिंह उईके, छंनू लाल वल्के, पूरनलाल कावरे, भारत लाल मड़ावी, प्रीतम सिंह उइके, हेमलाल धुर्वे, तिलक चंद खंडवाहे, मदनलाल अड़मे, सखाराम इनवाते, अनूर सिंह उईके, जे पी भलावी, बारेलाल उइके, के बाबा नाथेश्वरी, ऋषिकेश घोरमारे, जेठू सिंह टेकाम, मानसिंह परते, हरिश्चंद्र पंद्रे, फागूलाल डोंगरे, वैभव मर्सकोले, चंद्र सिंह धुर्वे, भुवन सिंह कोराम की उपस्थिति में आदिवासी समाज के सामाजिक राजनीतिक मान सम्मान आस्तित्व वर्चस्व के लिए एकजूटता का परिचय देते हुए अपने मान सम्मान आस्तित्व वर्चस्व स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्प लिया गया।
आदिवासियों का राजनैतिक नेतृत्व का अस्तित्व गूंगा, बहरा, लंगड़ा, लूला, कमजोर गुलाम है
बालाघाट सिवनी लोकसभा क्षेत्र में आदिवासी मतदाता जो कि चुनाव जीतने के आंकड़े 3.5 लाख से 6.00 लाख के बीच से भी अधिक लगभग 7,50,000 लाख मतदाता है। आदिवासी मतदाताओं की ताकत की समीक्षा कर आजादी के 75 वर्षो तक सभी राजनैतिक पार्टियों ने आदिवासी मतदाताओं का सिर्फ इस्तेमाल कर डिस्पोजल समझ का बार बार फेंकने का कार्य किया जा रहा है।
वहीं आदिवासियों को बहला फुसला कर हमेशा लालीपोप थमा कर कभी भी आदिवासी मतदाताओं के स्वामित्व को सामाजिक राजनैतिक नेतृत्व का मान सम्मान नहीं दिया। यही कारण है कि हम आदिवासियों का राजनैतिक नेतृत्व का अस्तित्व गूंगा, बहरा, लंगड़ा, लूला, कमजोर गुलाम है।
हम अपने समाज के उज्जवल भविष्य की दशा और दिशा बदलने में कामयाब होंगे
अब हम आदिवासी समाज ने अपने आदिवासी समाज के मान, सम्मान, वर्चस्व, आस्तित्व स्थापित करने आगामी लोकसभा चुनावों में आदिवासी समाज के सभी जाति समूह एवं कमजोर वर्ग समाज (एसटी, एससी, ओबीसी, माइनॉरिटी) से तालमेल करके इस लोकतांत्रिक व्यव्स्था में सभी पाटीर्यों (बीजेपी, कांग्रेस अन्य) को नकारते हुए स्वतंत्र रूप से मजबूत योग्य प्रत्याशी को उतारेगी।
इसके साथ ही आदिवासी समाज के वे लोग जो किसी अन्य पार्टियों में शामिल हैं, उन्हें अपनी समाज के राजनैतिक अस्तित्व वर्चस्व को स्थापित करने के लिए जिम्मेदार भूमिका निभाने सामाजिक और सार्वजनिक अपील कर अपने समाज के प्रति जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
आदिवासी सामाजिक राजनैतिक मान सम्मान आस्तित्व की इस मुहिम में संघठनवाद, पाटीर्वाद, वर्चस्ववाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद को छोड़ समाजवाद को सर्वोपरी तवज्जो देने का संकल्प हर आदिवासी को अपनी अपनी आने वाली भावी पीढ़ी और समाज के भावी भविष्य को सुरक्षित बनाने में मजबूत इच्छाशक्ति और साफ इरादों के साथ जिम्मेदारी लेनी होगी तब ही हम अपने समाज के उज्जवल भविष्य की दशा और दिशा बदलने में कामयाब होंगे।