पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना हैं-प्रो. पंकज गहरवार
कुरई कॉलेज में मनाई गई क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले की 193 वी जयंती
कुरई। गोंडवाना समय।
शासकीय महाविद्यालय कुरई में स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ व राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वाधान में भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की 193 वी जयंती मनाई गई। कार्यक्रम महाविद्यालय प्राचार्य बी.एस.बघेल के सरंक्षण में आयोजित हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत में सावित्रीबाई फुले की छायाचित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।
इस अवसर पर महाविद्यालय के इतिहास विभागप्रमुख पवन सोनिक ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता एवं देश की पहली महिला शिक्षिका और महान समाजसेवी सावित्रीबाई फुले की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। आज ही के दिन 1831 में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, जब समाज में महिलाओं को शिक्षा पाने के अधिकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल की स्थापना की
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता सारंग लाडविकर ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल की स्थापना की। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फुले दंपति ने 18 स्कूल खोले। उन्होंने कहा कि सभी विद्यार्थी स्वयं का विस्तार करें ताकि समाजहित के कार्यों को करने की सोच हमारे अंदर विकसित हो।
अपने अंदर के भाव के निर्माण में ऐसी महान विभूतियों का ध्यान मददगार साबित होगा। जागो, उठो, शिक्षित बनो, परम्पराओं को तोड़ो आजाद करो। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो पंकज गहरवार ने कहा की सावित्री बाई फुले ने कहा था स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना हैं। कॉलेज में अध्ययनरत छात्रा वंदना दर्शनिया ने अपने विचार रखते हुए कहा कि, क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत है और हम सभी छात्राओं के को उनसे प्रेरणा लेकर अपनी क्षमताओं को बढ़ाकर, निरंतर उनके विचारों का आचरण करते हुए, जीवन में अपना मुकाम हासिल करना है।
इनकी उपस्थिति रही
कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय स्टाफ से तीजेश्?वरी पारधी, डॉ राजेंद्र कटरे, संतोष चंचल, सारंग लाडविकर, आकाश देशभरतार, नागेश पंद्रे की उपस्थिति रही। आयोजन की व्यवस्था को बनाने में संदीप नेताम, नीरज करमकर, गौरव परते, जीनत, रानी हरिनखेड़े आदि का योगदान रहा।