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अमूरकोट गोंडवाना सभ्यता की सबसे प्राचीन धरोहर है

अमूरकोट गोंडवाना सभ्यता की सबसे प्राचीन धरोहर है

राजा कर्णशाह मरावी एवं महारानी मैनावती (1040 से 1071) की कर्मभूमि रही है अमूरकोट

गोंडवाना भू-भाग के अमूरकोट में विशाल अखिल गोंडवाना कोयापुनेम दर्शन, भाषा संस्कृति व साहित्य सम्मेलन का भव्य आयोजन

आलेख-
सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम- जंगलीखेड़ा,
गढ़ी, तहसील-बैहर,
जिला-बालाघाट म प्र

प्राचीन गोंडवाना भू-भाग आज विभिन्न नामों से पुकारा जाने लगा है परंतु आज भी गोंडवाना की संस्कृति अक्षुण्ण व बरकरार है। विश्व भूगोल व इतिहास गवाह है गोंडवाना का अपना विस्तृत भू-भाग रहा है, जिसमे आधा विश्व समाया हुआ है। उसका अपना वैभवशाली इतिहास, दर्शन, रीति-रिवाज, व्यवस्थायें रही हैं।
            


वहीं गोंडवाना भू-भाग की अपनी सामाजिक व्यवस्था, अस्तित्व की प्राचीनता, लिपि, संस्कृति, संगठन, सुरक्षा व शासन व्यवस्था रही है। जब-जब गोंडवाना को शासन का बागडोर मिला उनका शासनकाल स्वर्णिम शासनकाल रहा है। 

अमूरकोट पर्वत का उद्गम 35 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ 


भूगर्भ शास्त्रियों के अनुसार मध्य भारत का अमूरकोट पर्वत का उद्गम 35 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ। अमूरकोट गोंडवाना सभ्यता की सबसे प्राचीन धरोहर है, जहाँ से परावेन सईलांगरा के सल्ला गांगरा से मानव की उत्पत्ति हुई, जिसे प्रतीको मे दशार्या गया और वंश भीड़ी के रूप में जाना जाता है।
                गोंडवाना के वंश वेनो का विस्तार सर्वप्रथम अमूरकोट के पूर्व संभाग में हुआ। यह वेनो का अंचल आज भी वेनांचल के रूप मे जाना जाता है। गोंडी वेनो की दाई का आचेल अर्थात वेन दाई आचेल भी वेन्दियाचल के रूप में साक्षात विराजमान है। 

गोंडवाना सेवा ट्रस्ट अमूरकोट की स्थापना किया 


अमूरकोट की यह पावन माटी-गोंडवाना के प्रतापी राजा कर्णशाह मरावी एवं महारानी मैनावती (1040 से 1071) की कर्मभूमि रही है। आज भी कर्ण मठ साक्षी है, जिसमे गोंडवाना का राज चिन्ह हाथी के ऊपर शेर, गोंडवाना के वैभवशाली इतिहास को गौरवान्वित कर रहा है। सदियों से गोंडवाना के हिस्से मे मौन आया है, अब तो हासिये में किये जा चुके हैं, गोंडवाना भू-भाग के सम्मान मे गोंडवाना के रियासतों के बदले राज्य व गोंडी भाषा को भी संविधान में स्थान नहीं मिला है पर नेतृत्व रूपी दासता के बंधन को तोड़कर बाहरी संसार की ओर छलांग लगाने की चेतना का उदय, गोंडवाना के सामूहिक जीवन-शैली मे अभी हुआ नहीं है।
            यही चिंता के परिणाम स्वरूप गोंडवाना के महानायक महामानव गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी के द्वारा सर्वजीव कल्याण और गोंडवाना के उत्थान हेतु सतपुड़ा पर्वत श्रेणी अर्थात सत्ता के पुड़ा अर्थात सत्ता के केंद्र बिंदु ( द गोंडी लीजेंड्स आॅफ सेंट्रल इंडिया 2019) ठाना-अमूरकोट में गोंडवाना सेवा ट्रस्ट अमूरकोट (अमरकंटक) की स्थापना व शासन से पंजीयन प्राप्त कर आज गोंडवाना गणतंत्र गोटुल व गोंडी भाषा साहित्य के शिक्षा/ सृजन के माध्यम से विभिन्न गढ़ किला महल व गणजीवों की सेवा निरंतर जारी है। निश्चित है गोंडवाना के सत्ता के केंद्र बिंदु से यह अभियान शुरू की गयी है तो परिणाम पुन: गोंडवाना के स्वर्णिम शासनकाल का दर्शन करायेगी। 

विचार-गोष्ठी के साथ आन-बान-शान की रक्षार्थ शपथ लेते हैं 

गोंडवाना सेवा ट्रस्ट अमूरकोट (अमरकंटक) के सौजन्य से प्रतिवर्ष अखिल गोंडवाना गोंडी धर्म संस्कृति व साहित्य सम्मेलन के माध्यम से समस्त गोंडवाना भू-भाग के लाखों सगाजनों की उपस्थिति के बीच प्रकृतिसम्मत कोयापुनेम दर्शन, गोंडवाना इतिहास व स्वर्णिम दर्शन की व्याख्यान माला निरंतर तीन दिवस से चल रही है। जिसमें 12 जनवरी, गोंडवाना के युवा शक्तियों और उनके विचारों की बेला धारा प्रवाह चलती है।
            आज युवा शक्ति के रूप मे गोंडवाना का युवा सैलाब गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन अपनी वैचारिक एकीकरण व संगठन की निष्ठा के साथ अपना सर्वस्व गोंडवाना सेवा ट्रस्ट अमूरकोट को प्रदान कर स्वयंसेवक की भूमिका निर्वहन करती है। वहीं 13 जनवरी के दिन-गोंडवाना की राजनीतिक इकाई गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के स्थापना दिवस मनाया जाता है जिसमे राजनीतिक इकाई के लाखों कार्यकर्ता विचार-गोष्ठी के साथ आन-बान-शान की रक्षार्थ शपथ लेते हैं।

द्वितीय सत्र  मातृशक्तियों को समर्पित होता है      

वहीं द्वितीय सत्र गोंडवाना भू-भाग के व्यवस्थाओं को संभाले रखने वाले मातृशक्तियों को समर्पित होता है क्योंकि कोयापुनेम के मूल में मातृशक्ति होती हैं। कोयापुनेम व वंश बेला का विस्तार में अहम योगदान होने के कारण उनके विचारों की व्याख्यान माला का आयोजन होता है।
                वहीं वैचारिक व्याख्यान क्रम में गोंडवाना आंदोलन से ओतप्रोत सामाजिक दायित्व निभाने वाले गोंडवाना कर्मचारी अधिकारी संघ (सभी राज्यों के) भी अपने अपने पदाधिकारियों के साथ इस विशाल जत्रा में मंच के माध्यम से समाज के रीढ़ होने के महत्व को चरितार्थ करते हैं। 

गोंडवाना रत्न पुनसाय दादा हीरा सिंह मरकाम जी के जन्म-जयंती पर संस्कृति साहित्य सम्मेलन का आयोजन 

14 जनवरी, गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन के प्रणेता गोंडवाना रत्न पुनसाय दादा हीरा सिंह मरकाम जी के जन्म-जयंती पर तिरूमाल- बी एल कोर्राम (गोंडवाना इतिहासविद् छत्तीसगढ) के मुख्य आतिथ्य व उद्बोधन में प्रथम पाली के रूप में अखिल गोंडवाना कोयापुनेम संस्कृति साहित्य सम्मेलन आयोजित है।
        विशिष्ट अतिथि के रूप में तिरूमाल फतेह बहादुर सिंह मरकाम (गोंडी गाथा साहित्य के रचियता), ितरूमाल डॉ सी पी सिंह, तिरूमाल-प्रमोद कुमार सिंह (लेखक, अ ज जा शोध संस्थान व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता) हैं इस सत्र की अध्यक्षता तिरूमाल-हुकुम सिंह कुशरे (प्रांतीय अध्यक्ष- गोंडवाना महासभा मप्र, वरिष्ठ  समाज सेवी व उच्चाधिकारी दूरसंचार विभाग ) करेंगे।  

द्वितीय सत्र में ये होंगे प्रमुख वक्तागण

द्वितीय सत्र- गोंडवाना के एतिहासिक महत्व पर व्याख्यान माला होगी, सत्र के मुख्य अतिथि-माननीय तिरूमाल  नागेश घोडाम जी (पूर्व सांसद तेलंगाना ), विशिष्ट अतिथि क्रमश: तिरूमाल मान सिंह इनवाती जी साजवा दरबार, साधक छिंदवाड़ा एवं माननीय तिरूमाल- कंकर मुंजारे जी (पूर्व सांसद बालाघाट) होंगे एवं इस गोंडवाना के ऐतिहासिक महत्व पर व्याख्यान माला सत्र की अध्यक्षता माननीय तिरूमाल- तुलेश्वर सिंह मरकाम जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष- गोंगपा एवं विधायक, पाली-तानाखार छत्तीसगढ) करेंगे।  

अपने साथ हुए भेदभाव व अन्याय का बोध भी होने लगा है 

आज गोंडवाना में चेतना जगी है वह नये-नये क्रांतिकारी विचारधाराओं से परिचित हुआ है जिनके परिप्रेक्ष्य में वह अपनी नयी-पुरानी परिस्थितियों को अपने नजरिये से तोलने लगा है। उसे अपने हको के अस्तित्व की वर्तमान स्थिति अपने साथ हुए भेदभाव व अन्याय का बोध भी होने लगा है। यही बोध आज के इस अखिल गोंडवाना कोयापुनेम दर्शन, भाषा, संस्कृति व साहित्य सम्मेलन मे झलक रहा है।
             गोंडवाना के गण जीव अब देश और भाषाओं की सीमाओ और कबीलों के दायरे को लांघकर अपने समूचे समाज को रोशन करने के लिए संकल्प बद्ध हो गये हैं। परिणामत: हमारी लिपि और भाषाओं ने कलम थाम ली है तो अपने अस्मिता के पहचान के लिए गोंडवाना के युवाओं ने भी कमर कस ली है। 

गोंडवाना रत्न पुनसाय दादा हीरासिंह मरकाम जी का त्याग व्यर्थ नही जायेगा 

आज हम हुंकार भरते हैं कि हम गोंडवाना भू-भाग के सम्मान मे मूल कोयतुर हैं हमे गुमराह न करो-हम प्रकृति के संग संग पैदा होने उसके सहयोग और सहभागिता से जीने मे विश्वास करते हैं। प्रकृति के दुख में साथ और सुख में संरक्षण करते हैं।
         हम प्रकृति से जरूरत भर लेते है और उसे उतना वापस करते हैं। हमने सभ्यता के बढ़ते कदमों के साथ चलने की तुम्हारी चुनौती स्वीकार कर ली है। गोंडवाना मे परिवर्तन की आग व समझ जरूर बनेगी, गोंडवाना रत्न पुनसाय दादा हीरासिंह मरकाम जी का त्याग व्यर्थ नही जायेगा।  

गोंडवाना के प्रति हमारे कर्तव्य और अधिकार क्या है ? 

विषमता के व्यवस्था को नष्ट करने के लिए दादा मरकाम के सात एस फामूर्ला निरंतर धार की तरह संपूर्ण गोंडवाना मे चल चुकी है। 21 वीं सदी के दहलीज में भी विद्वानों द्वारा गोंडवाना के गण जीव व भू-भाग का अस्तित्व दयनीय व दीनहीन विकृत छांयाकन कर गुमराह पूर्ण प्रवृत्ति हम युवाओं को ललकार रहा है कि वस्तुस्थिति को देखकर गोंडवाना के रक्षार्थ गोंडवाना के सभी युवा अब वायु बन जायें।
            आज इस अमूरकोट की पावन-माटी से मंथन का समय है- कि मानवता के मूल्य के लिए गोंडवाना भव्य संस्कृति के वारिस हैं। के बावजूद वर्तमान स्थिति चिंतनीय क्यो है ? सोचने की आवश्यकता है-यह गोंडवाना क्या है ? गोंडवाना का वैभवशाली इतिहास क्या है ? हमारा गोंडवाना से संबंध क्या है ? हमारे प्रकृतिसम्मत रीति-रिवाज क्या है ? गोंडवाना के प्रति हमारे कर्तव्य और अधिकार क्या है ?
             गोंडवाना की भाषा लिपि संस्कृति प्रकृति के हूबहू क्यों है ? हमारी कोया पल्लो लेंग-पाना पारसी (गोंडी) प्रकृति के समस्त जीव-जंतुओं की भी भाषा है क्यों ? आज गोंडवाना के इतिहास को विकृत और तोड़मरोड़कर प्रस्तुत क्यों किया जा रहा है ? वे कौन लोग है जो समाज के लोगो को गुमराह कर दलाली कर गोंडवाना के विरोध मे काम करते है ? हमारे अस्तित्व व विकास मे गोंडवाना का क्या योगदान है ? 

गोंडवाना भू-भाग की धर्म भाषा संस्कृति साहित्य, गढ़ किला महल व इतिहास, यह हमारी जीवंत धरोहर हैं 

समस्त चिंतनो व प्रश्न के बाद समाधान की ओर भी अग्रेषण आवश्यक है। अब हम मातृभाषा गोंडी भाषा मे पढ़ाई भी करेंगे ताकि सभी कोयतुरियन समुदाय आपस मे जुड़ सके। आज गोंडवाना आंदोलन का प्रत्येक युवा विभिन्न कलमकारों व प्रायोजकों द्वारा विकृत की गयी छवि व षड्यंत्र को उजागर कर साबित करने के होड़ मे हैं कि हम रक्षक व दानवीर हैं हमारे पूर्वजों ने आज तक किसी को कभी छला नही, फिर हमे क्यों छला जा रहा है ?
                इस चेतना के साथ युवा क्रांति गोंडवाना रत्न पुनसाय तिरुमाल दादा हीरासिंह मरकाम जी के स्वप्नों को यथार्थ मे बदलने की माद्दा रखते हैं। गोंडवाना भू-भाग की धर्म भाषा संस्कृित साहित्य, गढ़ किला महल व इतिहास, यह हमारी जीवंत धरोहर हैं।
            यह कोई एक दिन में बनने वाली वस्तु नही है । इन्हे बनने मे हजारो वर्ष लग जाते हैं। और यह हमारे प्रतापी राजाओं और पूर्वजो के अच्छे गुणो व कर्मों का संचय है जो हमारे पूर्वजों से हमे प्राप्त हुए हैं, इन्हे संजोकर रखना हम सब गोंडवाना वासियों का कर्तव्य है।

गोंडवाना कोयापुनेम दर्शन भाषा संस्कृति व साहित्य का विशाल भव्य आयोजन नियमित जारी है 

अमूरकोट ठाना के संपूर्ण पेन पट्टाओं व जमना दादर पेनठाना में प्रज्ज्वलित अखण्ड ज्योति गोंगो राष्ट्रीय पुनेम मुठवा-तिरूमाल इंद्रपाल सिंह मरकाम जी (डूमर कछार छत्तीसगढ) द्वारा किया गया। गोंडवाना सेवा ट्रस्ट अमूरकोट (अमरकंटक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष-तिरूमाल जनकराम ध्रुव (बिलासपुर छत्तीसगढ़) के कुशल नेतृत्व, सामंजस्य व कुशल प्रबंधन के कारण एवं गोंडी धमार्चार्य डॉ मोतीरावेन कंगाली की साहित्य रचना, पुनसाय दादा तिरूमाल सुन्हेर सिंह ताराम की गोडवाना दर्शन शोध रचनाओ के कारण ही यह अखिल गोंडवाना कोयापुनेम दर्शन भाषा संस्कृति व साहित्य का विशाल भव्य आयोजन नियमित जारी है।



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