750 शिव सूत्र हड़प्पा सभ्यता की सील पर अंकित है
हड़प्पा सभ्यता में लिपि दायें से बायें पढ़ी जाती है
शिव सूत्र 750 (जय सेवा)
750 शिव सूत्र हड़प्पा सभ्यता की सील पर अंकित है, हड़प्पा सभ्यता में लिपि दायें से बायें पढ़ी जाती है। इसे “ Dextrosinistral “ ह्ल डेक्सट्रोसिनिस्टर स्क्रिप्ट कहा जाता है। गोंड गोथुल परंपरा में सबसे पहले पढ़ाया अथवा सिखाया जाने वाला शिव सूत्र सांख्यिक है, इसीलिए लिए गोंड समाज योग व दर्शन की सांख्य गुरु परंपरा को मानने वाले हैं। सांख्य दर्शन, निराकार वादी है व हर सिद्धांत को तर्क से से सिद्ध करने की चेष्टा करता है।
शिव सूत्र 750 के माध्यम से, गोत्र और देव व्यवस्था को स्थापित किया
पारी कुपार लिंगो, ने गोंड गोथूल परंपरा के सिद्धांतों को एक रूपता प्रदान की व सभी गोंड समुदाय को सांख्य दर्शन के वैज्ञानिक सिद्धांतों से जोड़ा। सगोत्र व सदेव विवाह, पंच तत्व व वंशानुगत असंतुलन को बढ़ावा देता है, इसीलिए उन्होंने शिव सूत्र 750 के माध्यम से, गोत्र और देव व्यवस्था को स्थापित किया।
पारी कुपार लिंगों गुरु परंपरा में ऋषि कश्यप के शिष्य थे इसीलिए आज भी गोंड गोथूल परंपरा में कश्यप ऋषि (सूर्य वंश) को गुरु माना जाता है। शिव सूत्र 750-को 057 पढ़ा जाता है, जिसमें 0 आदि पेन/आदि शक्ति/शंभु शेक को इंगित करता है।
पंच भूत तत्वों-भूमि आकाश जल वायु अग्नि तत्वों का निर्माण होता है
आदि शक्ति और आदि तत्व के मेल से पंच भूत तत्वों-भूमि आकाश जल वायु अग्नि तत्वों का निर्माण होता है। इन पाँच तत्वों को ही गोंड समाज प्रकृति शक्ति पेन, अथवा पाँच पेन/पाँच देव कहता है।
गोंड परंपरा में मूल देव केवल सात हैं-आदि शिव (शंभु बड़ादेव), आदि शक्ति (गौरा) आदि पेन व पाँच पेन/पाँच तत्व देवता। विवाह टोटम (गोत्र) और सात देव मिलान से तय होते हैं। सात देव, छ देव, पाँच देव, चार देव, तीन देव अधिकांश टोटम इन देव व्यवस्था से हैं।
गोंड ग्राम में सात देव के साथ, पाँच ग्राम देवता का भी वास होता है
एक गोंड ग्राम में सात देव के साथ, पाँच ग्राम देवता का भी वास होता है, जिसमें ठाकुर देव, भीमाल पेन, बाघ देव, नाग देव, डोंगर देव आदि स्थानीय देवता होते हैं। 12 देव आधार पर, आकाश को 27 नक्षत्र में बाँटा गया है, देवता फसल वृष्टि अकाल के लिए इन 27 नक्षत्र से गोंड समाज अपने जीवन चक्र की गड़ना करते हैं।
भूमि, आकाश और अग्नि नक्षत्र से प्रभावित नहीं होते इसीलिए 9 देवता हर तीन नक्षत्र के स्वामी हैं, पाँच तत्वों को संतुलित रखने के लिए जिस भी तत्व का नक्षत्र होता है, उसकी संतुष्टि से बीमारियों को ठीक किया जाता है।
बिना देव नक्षत्र के मिलान के उस जड़ी का कोई प्रभाव नहीं होता था
हर नक्षत्र में उस नक्षत्र की जड़ी बूटी से देव पंडा व बैगा जड़ी बूटी से उस तत्व की बीमारी के इलाज में लाई जाने वाली जड़ी बूटी को देव आह्वान से उपचार के लिए देते थे। जिस देव का नक्षत्र होता है उसकी जड़ी उसी नक्षत्र में जंगल से लाई जा सकती थी, बिना देव नक्षत्र के मिलान के उस जड़ी का कोई प्रभाव नहीं होता था।
पारी कुपार लिंगों द्वारा उनको ये विधा स्वयं सात देवताओं के जागरण अर्थात शरीर के सात चक्रों (कुंडलिनी) जागृत होने व गुरु परंपरा से प्राप्त हुई, जिसे उन्होंने गुरुकुल (गोथूल) व्यवस्था में प्रस्थापित किया।
गोंडी दर्शन सांख्य दर्शन है
हर गोत्र के मूल देव स्थान पर इन परंपराओं को आज तक जीवित रखा गया है। कालांतर में धर्मांतरण के कारण, गोंड समाज को उसके मूल देव और गोत्र परंपरा से दूर किया जा रहा है। उन्हें अवैज्ञानिक टोन टोटके में बांधकर उनकी, योगिक वैज्ञानिक जीवन शैली का उपहास उड़ाया जा रहा है, जो चिंतित करने वाला है।
आज शिव सूत्र 750 की गलत व्याख्या की जा रही है, इसे यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है गोंड समाज में 750 गोत्र हैं, जबकि यह तथ्यात्मक नहीं है। गोंड समाज के व्यक्ति का जीवन चक्र-दो आदि शक्ति पेन, पंच पेन देव से निर्मित सात देवताओं को व्यवस्थित रखकर, प्रकृति शक्ति में साथ संतुलन की है।
साथ ही जिस स्थान पर उनका निवास है उस स्थान के ग्राम देवता, डोंगर देवताओं से पूर्वज (बूढ़ा) देवताओं की सेवा के साथ जीवन बिताने की है। गोंडी दर्शन सांख्य दर्शन है, जिसे सीधे शिव ने प्रदान किया है। गोंडी (सांख्य) दर्शन में देवताओं की सेवा ही परम धर्म है, गुरुओं की सेवा ही परम धर्म है, पुरखों की सेवा ही परम धर्म है, प्रकृति की सेवा ही परम धर्म है। इसीलिए पारी कुपार लिंगों ने सेवा सुमिरनी में सेवा सेवा और जय सेवा गोंडी दर्शन का सार बताया है। आइये हम सब कोयतूर (पर्वत वासी) गोंडवाना दर्शन को स्वीकार करें। -जय सेवा, जय बड़ा देव