शहीद वीरनारायण सिंह को अंग्रेजों ने तोफ से उड़ा दिया था
छ.ग. के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह सोनाखान ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये
शहीद वीरनारायण सिंह को सबके सामने भरी चौराहे जय स्तम्भ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1857 को अंग्रेजों ने तोप से उड़ाया
आपके विचार, दैनिक गोंडवाना समय अखबार,
लेखक, विचारक, प्रेषक
आर एन धु्रव
धमतरी, छत्तीसगढ़
मो.नं.- 9826667518
सच्चे देशभक्त व गरीबों के मसीहा छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शहीद बलौदाबाजार जिला में सोनाखान रियासत के जमींदार शहीद वीरनारायण सिंह का जन्म 1795 में हुआ था। उन्होंने सन 1856 में अंग्रेजो के खिलाफ जनता, जल, जंगल, जमीन की रक्षा हेतु क्रांन्ति का बिगुल फुक दिया था।
लगभग 167 साल पहले सोनाखान रियासत में घोर अकाल पड़ गया। वहां की प्रजा दाने-दाने को मोहताज हो गई। शहीद वीरनारायण सिंह अपने रियासत में जमा सभी गोदामों से अनाज को निकलवाकर आम जनता में बांट दिये। इसके बावजुद वहां अनाज की कमी से लोग भुख से बेहाल हो गए। छोटे-छोटे बच्चे भुख के कारण तड़फने लगे ।
शहीद वीरनारायण सिंह जी जनता की यह दुर्दशा देखकर अत्यन्त दुखी हो गए। उन्होने आदेश दिया की जिन-जिन लोगो ने अनाज जमा करके रखे हैं वे जरूरतमंद जनता में उधार स्वरूप दे दीजिए और जब नई फसल आयेगी तो ब्याज सहित उसे वापस कर दिया जावेगा।
सभी ने शहीद वीरनारायण सिंह के आदेश का पालन करते हुये जिनसे जितना बन पड़ा वहां की जनता की मदद किये लेकिन इतने अनाज से भी कुछ नही हुआ। उस समय कसडोल में अंग्रेज का पिट्ठु एक बड़ा व्यापारी जो मुनाफा कमाने के लिये सबसे ज्यादा अनाज जमा करके रखा था उन्होने अनाज देने से साफ इंकार कर दिया।
अंग्रेजों के हरेक आाक्रमण का शहीद वीरनारायण सिंह मुंहतोड़ जवाब देते रहे
शहीद वीरनारायण सिंह जी को जब पता चला कि इस व्यापारी के पास भारी तादाद में अनाज है तो उन्होने प्रजा के भुख मिटाने के लिये उनसे निवेदन करने गया और कहा कि आप इस अनाज को हमारी जनता को दे दीजिए जब भी नई फसल आयेगी उसे आप को ब्याज सहित वापस कर देंगे।
व्यापारी ने अनाज देने से स्पष्ट इंकार कर दिया। बार-बार निवेदन का भी कोई असर उस व्यापारी पर नही पड़ा और इधर भूख से जनता त्राहि-त्राहि होने लगे तो मजबुर होकर जनता की जान बचाने के लिये उस व्यापारी के अनाज को प्रजा में बांट दिए।
व्यापारी इसकी शिकायत रायपुर में अंग्रेजो को भेज दिया । अंग्रेज पहले से ही नाराज तो थे ही क्योंकि लगातार अंग्रेजों के खिलाफ शहीद वीरनारायण सिंह छापेमार शैली में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फुकते रहते थे। इस घटना के बाद आर-पार की लड़ाई शुरू हो गई। लगातार सोनाखान क्षेत्र में अंग्रेज कई आक्रमण किये लेकिन हरेक आाक्रमण का शहीद वीरनारायण सिंह मुंहतोड़ जवाब देते रहे।
तोप से उड़ाकर उनके अंग-भंग शरीर को चौक में लटका दिये
शहीद वीरनारायण सिंह को हराना असंभव ही था। क्योंकि उनके साथ उनकी जनता और मुट्ठी भर उनके सैनिक जी-जान से उनका साथ दे रहे थे। अंग्रेजों को छ.ग. से अपना जमीन खिसकता दिख रहा था और जनता में स्वतंत्रता की आस दिख रहा था।
स्मिथ के नेतृत्व में एक शक्तिशाली ब्रिटिश सेना ने बाजी हाथ से निकलता देख कुटनीति का सहारा लिये और शहीद वीरनारायण सिंह के करीबी आदमी को प्रलोभन देकर अपने जाल में फंसा लिया। अंग्रेजों द्वारा सोनाखान क्षेत्र की जनता को भयंकर प्रताड़ना दिया जाने लगा।
वहां के घरों में आग लगा दिया गया। परिणाम यह हुआ की सोनाखान के पहाड़ में चोरी-छिपे जाकर अंग्रेजो ने भीषण संघर्ष के बाद शहीद वीरनारायण सिंह को गिरफतार कर लिये और उन्हे सेन्ट्रल जेल रायपुर में लाकर बन्द कर दिये। अंग्रेजो के लिये यह बहुत बड़ी कामयाबी थी।
शहीद वीरनारायण सिंह को सबके सामने भरी चौराहे जय स्तम्भ चौक रायपुर में 10 दिसम्बर 1857 को तोप से उड़ाकर उनके अंग-भंग शरीर को चौक में लटका दिये और 19 दिसम्बर 1857 को उसे उतारकर उनके परिजनों को सौंपा गया।
रायपुर के भरे चौराहे में 10 दिनों तक उसे सिर्फ इसलिये लटकाकर रखा गया ताकि कोई और देशभक्त इस तरह अंग्रेजों के खिलाफ सर ऊंचा न कर सके लेकिन उसका परिणाम यह हुआ कि इसे देखकर देश की जनता का अंग्रेजों के प्रति आक्रोश और उग्र हो गये और भारतीयों में आजादी की ललक और अधिक बलवती हुई और पुरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रान्ति की शुरूआत हुई और लगभग 100 साल बाद 1947 में भारत को इन्ही देशभक्तों के बलिदान के बदौलत आजादी मिली।
शिक्षा को हर हाल में अपनाना होगा
अब समय के साथ लड़ाई की परिभाषा बदल गई है। आज समाज को यदि विकास की मुख्य धारा से जुड़ना है तो कुछ महत्वपूर्ण बातों को अपनाना ही होगा। शिक्षा के क्षेत्र में हम सब बहुत पीछे हैं। भारत सरकार द्वारा 2011 को जो जनगणना कराये गये उसके अनुसार आदिवासी समाज का यदि 100 बच्चा पहली कक्षा में भर्ती होते हैं तो पांचवी कक्षा तक 65.8 प्रतिशत ही पहुंचते हैं।
आठवी तक पहुंचते-पहुचते आधा से भी अधिक बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं अर्थात केवल 42.8 प्रतिशत बच्चे ही यहां तक पहुचते हैं, दसवी तक यह संख्या एक तिहाई अर्थात केवल 28.2 प्रतिशत ही रह जाते हैं। वहीं 12 वी तक मात्र 15.3 प्रतिशत बच्चे ही पढ़ाई कर पाते हैं।
अर्थात 84.7 प्रतिशत बच्चे बारहवी से आगे की पढ़ाई ही नही कर पाते हैं। ये बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित रहते हैं। छ.ग. में 78,22,902 की कुल आबादी में केवल 5747 डिप्लोमा वाले एवं 1,09,384 डिग्री व उच्च शिक्षाधारी हैं।
वही गोंड़ समाज की कुल आबादी 42,98,404 केवल 2494 डिप्लोमा धारी हैं। जिसमें 2166 पुरूष एवं 328 महिला है वहीं 44 583 डिग्री होल्डर में 32892 पुरूष एवं 11691 महिला है। इसलिए शिक्षा को हर हाल में अपनाना होगा।
1903 के सर्वे अनुसार देश की कुल भुमि का 65 प्रतिशत जमीन आदिवासियों के पास थी
वर्ष 1901 के जनगणना अनुसार देश की जनसंख्या 23.84 करोड़ थी, उस समय 1903 के सर्वे अनुसार देश की कुल भुमि का 65 प्रतिशत जमीन आदिवासियों के पास थी।
आज 2011 के अनुसार देश की आबादी 121.09 करोड़ हो गई है और आदिवासियों के पास मात्र 23 प्रतिशत जमीन है। उसमें से भी आदिवासियों की 19 प्रतिशत जमीन सरकारी प्रयोजन हेतु सरकार अपने पास रखी है और केवल मात्र 4 प्रितशत जमीन ही आदिवासीयों के पास बचे हैं।
आज कई बहुराष्ट्रीय कम्पनी आपके जल-जंगल-जमीन पर गिध्द दृष्टि लगाए हैं
देश में आजादी के लिये जितने भी लड़ाईयां लड़ी गई उसमें से अधिकांश लड़ाई आदिवासी समाज एवं अंग्रेजो के बीच लड़ी गई। देश को आजादी तो मिल गई गोरे अंग्रेज भी देश छोड़कर चले गए लेकिन जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा अभी भी समाज के लिये बड़ी चुनौति के रूप में विद्यमान है।
उस समय तो केवल एक ईस्ट इंडिया कम्पनी आई थी आज कई बहुराष्ट्रीय कम्पनी आपके जल-जंगल-जमीन पर गिध्द दृष्टि लगाए हैं। उस समय तो केवल एक व्यापारी और अंग्रेजोे के कारण इतना हाहाकार मचा था। आज कई बड़े-बडेÞ उद्योगपति आपको आपके जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने का षड़यंत्र कर रही है। लगातार कृषि योग्य भुमि कम हो रहे हैं।
यह बात सत्य है कि जहां-जहां मुलनिवासी हैं वहां-वहां जंगल है। जंगल में इमारती लकड़ी की अवैध कटाई शहरी लोग ही करते हैं लेकिन सबसे ज्यादा प्रकरण मुलनिवासियों पर ही लगते हैं। हमें अपनी धरती मां को बचाकर रहना होगा।
जमीन है तो आदिवासी हैं जिस दिन आपके हाथ से जमीन निकल जायेगा उस दिन आपका अस्तित्व समाप्त हो जावेगा। इसलिये आप अपनी जमीन को किसी भी कीमत पर दुसरों को मत बेंचे। और वैसे भी मां की बिक्री नही होती मां है तो हम हैं। वरना माता के बिना हम अनाथ हो जायेंगे।
छग. में आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है
छग. में आदिवासी समाज की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है। छ.ग. में 47 प्रतिशत आदिवासी समाज गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है। वही अनुसूचित जाति समाज 36.8 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग 26.7 प्रतिशत एवं सामान्य वर्ग में केवल 16.1 प्रतिशत ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। अर्थात 100 में से 84 सामान्य वर्ग के लोग सर्व साधन सम्पन्न लोग हैं और आदिवासी समाज की लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे का जीवन यापन कर रहा है।
आजादी के बाद जनजातीय धर्म-संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं
आप सभी जानते हैं की इस देश में गोंड़वाना का वैभवशाली साम्राज्य था। दुनिया में आपसी भाईचारा, सामाजिक सौहार्द, भय-भ्रष्ट्राचार मुक्त राष्ट्र, जहां एक ही घाट में हिरण और शेर पानी पिया करते थे, ऐसी शासन व्यवस्था के वाहक रहे हैं आप। आपने ही दुनिया में सोने का सिक्का चलाया।
इस देश में लगातार मुस्लिम-मुगल-मंगोल-हुण अंग्रेज आदि द्वारा आक्रमण किया गया। हमारे पुर्वजों द्वारा हरेक युद्ध का मुंह-तोड़ जवाब दिया गया। इन आक्रमणकारियो द्वारा कभी भी गोंड़वाना के रोटी-बेटी और संस्कृति को छेड़ने का प्रयास नहीं किये। आजादी के बाद जनजातीय धर्म-संस्कृति पर लगातार हमले हो रहे हैं। आज हमारी संस्कृति चौराहे पर खड़ी है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो समाज संगठित है वही समाज सबसे ताकतवर है
सबसे ज्यादा धर्मान्तरण आजादी के बाद हो रहे हैं। सबसे ज्यादा विस्थापन आज हो रहे हैं। सबसे ज्यादा अन्याय-शोषण अत्याचार आज हो रहे हैं। इन सबसे निपटने का मुल मंत्र है वह है शिक्षा, स्वाथ्य, संगठन, स्वाभिमान और सत्ता लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो समाज संगठित है वही समाज सबसे ताकतवर है। इसलिये आपलोग भी संगठित होईए। आप इस देश के सबसे विराट समाज समाज का एक हिस्सा हैं। इसलिए मेरा मानना है कि आप इस देश के सबसे शक्तिशाली लोग हैं।
अपने कर्तव्यों और अधिकारों के लिये एक-जुट होकर अन्याय के खिलाफ संगठित हों
पहले हमारा समाज अपने बाजुओं की ताकत, अपने देव बल, अपने संगठन शक्ति के बदौलत देश में कई वर्षो तक शासन किये। अब लड़ाई की परिभाषा बदल गई है आज लोकतन्त्र का जमाना है और इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में जिसकी संख्या ज्यादा होती है, जिसका बहुमत होता है उसका शासन होता है और मैं बताना चाहुंगा आज देश में हमारी संख्या सबसे अधिक है।
इसलिये मैं दावे के साथ कह सकता हुं कि आज हम पुन: हम मजबुत समाजिक संगठन शक्ति, शिक्षित और समृद्धशाली समाज के बुनियाद पर सत्ता में भागीदार हो सकते हैं। अंत में यही निवेदन के साथ की शहीद वीरनारायण सिंह जी ने जनता को एक-जुट कर जिस तरह अन्याय के खिलाफ जनता-जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा हेतु आवाज उठाए उसी तरह आप अपने कर्तव्यों और अधिकारों के लिये एक-जुट होकर अन्याय के खिलाफ संगठित हों 10 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीरनारायण सिंह जी को शत-शत नमन, विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
आर एन धु्रव
धमतरी, छत्तीसगढ़
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