आदिवासियों के आराध्य देव इंदल की परंपरा को बदलने का आरोप, आदिवासी समाज ने इंदल बचाने के लिए सौंपा ज्ञापन
आदिवासी संस्कृति का सरेआम मजाक बनाने का कृत्य कर रहा संस्कृति विभाग
संस्कृति विभाग के द्वारा आयोजित कार्यक्रम को बंद करने की मांग
पलसूद/बड़वानी। गोंडवाना समय।
बड़वानी जिला मुख्यालय से 45 कि. मि. दूर ग्राम मटली में आदिवासियों के आराध्य पुरखा देव इंदल की सांस्कृतिक परंपरा को बदलने का आरोप संस्कृति विभाग पर लगाया गया है। आदिवासी समाज के नेतृत्व में राज्यपाल के नाम थाना प्रभारी द्वारा ज्ञापन सौंपा गया है।
कहा कि हर वर्ष 23, 24 और 25 दिसंबर को कथित इंदल उत्सव (आदिवासी परंपरा विपरत) के नाम पर मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा आदिवासी संस्कृति और परंपरा का सरेआम कुठाराघात करना उचित नहीं है। आदिवासी संस्कृति का सरेआम मजाक बनाने का कृत्य करना आदिवासी विरोधी मानसिकता को दरसाता है, एक नई परंपरा को आदिवासियों पर थोपना निंदनीय व शर्मनाक है।
हम आदिवासी विरोधी परंपरा के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे, लड़ेंगे जीतेंगे
आदिवासियों का पवित्र आराध्य देव इंदल का प्राकृतिक पूजन पद्धति अनुसार 5 वर्ष, 7 वर्ष या अत्यधिक समय के अंतराल में किया जाना सुनिश्चित होता है किंतु आदिवासियों की संस्कृति की सुरक्षा के बजाय मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष गैर-आदिवासी गतिविधि करके इंदल उत्सव के नाम पर तीन दिन का आयोजन करके आदिवासियों पर थोपना गलत है।
वास्तविक इंदल: आदिवासियों की प्राकृतिक पूजन पद्धति इंदल देव का पूजन करते हुए
आदिवासी संस्कृति के संरक्षण करने के लिए हमारे पुरखों ने शहादत दी थी, हम भी डंके की चोट पर कड़े शब्दों में विरोध करते है। आदिवासी प्रकृति पूजक समाज है इसलिए आदिवासियों का विश्व मे कही भी पवित्र इंदल देव की मूर्ति नही है लेकिन मध्यप्रदेश के जिला बड़वानी, तहसील राजपुर की ग्राम मटली में मूर्ति स्थापित करके आदिवासी संस्कृति और पारंपरिक पूजन पद्धति को डायवर्ट करके बदलना आदिवासी देवो और पुरखों की पारम्परिक विरासत को खत्म करने का षड्यंत्र है। हम आदिवासी विरोधी परंपरा के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे, लड़ेंगे जीतेंगे।
आदिवासी समाज की पहचान को खत्म करने का रचा जा रहा षड्यंत्र
मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा कथित इंद्र देव की मूर्ति और पूजन
अनुसूचित क्षेत्र ग्राम मटली, तहसील राजपुर जिला बड़वानी मध्य प्रदेश में फर्जी इंदल उत्सव के नाम पर आदिवासी समाज के सांस्कृतिक पूजा स्थल पर तथाकथित लोगों के द्वारा धार्मिक अतिक्रमण करके आदिवासी सांस्कृतिक समाज की महान पुरखा परंपराओं को नष्ट करने एवं समाज की पहचान को खत्म करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।
आदिवासी समाज को अपनी पुरखा परंपराओं और मान्यताओं के साथ जीने का संवैधानिक बुनियादी हक अधिकार है, इंदल देव की पूजा पाठ, विधि-विधान बाकी अन्य धर्म के लोगों की पूजा पद्धति से बिल्कुल भिन्न है। इंदल देव आदिवासी समाज के आस्था का प्रतीक है, इंदल देव के सांस्कृतिक आयोजन में गीतों का गायन अलग होता है, नाचने का तरीका अलग होता है, वाद्य यंत्र भी अलग होते हैं, इंदल देव का आयोजन कब होना चाहिए ? कब नही होना चाहिए ? ये तारीख हमारे गांव के लोग पटेल, गांव डाहला, वारती, कोटवार तथा सामाजिक जानकार आपस में लोकतांत्रिक तरीके से सामूहिक रूप से निर्णय लेते हैं।
इंदल देव की जानकारी प्रदेश के सांस्कृतिक मंत्रालय को भी पूर्ण रूप से नहीं है
यह उत्सव न होकर इंदल देव हमारे समाज की मान (मन्नत) है। यह इसलिए मनाया जाता है कि हमारे पुरखाओ मान्यताएं हैं। इंदल देव की मान से घर परिवार, गांव, प्रदेश, आसपास के आम लोग, जानवर पशु पक्षी कीड़े-मकोड़े, पहाड़, पत्थर, नदी, नाले, देश एवं पूरी दुनिया का भला हो इसलिए इंदल देव को मान के रूप से पुरखा विधि विधान के साथ अलग-अलग वर्षों में मनाया जाता है। इंदल देव की जानकारी प्रदेश के सांस्कृतिक मंत्रालय को भी पूर्ण रूप से नहीं है। कथित इंदल देव पेसा एक्ट का भी उलंघन कर रहा है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (3) क में विधि का बल के रूप में मान्यता प्राप्त है
हम भारत देश के मूलवासी आदिवासी अनुसूचित जनजाति धर्म पूर्वी सांस्कृतिक लोग है। जब दुनिया में किसी धर्म का उदय नहीं हुआ था तब से हम अपनी रूढ़ी प्रथाओं के साथ शासित और संस्कारित होते आए हैं और हमारे पुरखादेव स्थल पूजा पद्धति हमारे संस्कार वह संस्कृति किसी भी धर्म से अलग है।
आदिवासियों के परंपराओं रूढ़ियों रीति रिवाज विवाह जन्म मृत्यु दर संस्कार उत्तराधिकार एवं तथागत कानून को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (3) क में विधि का बल के रूप में मान्यता प्राप्त है। आदिवासी समुदाय संविधान के अनुच्छेद 244, पांचवी और छठी अनुसूची के तहत सुरक्षित है। आदिवासियों की रूढ़ी प्रथा गांव की मौखिक परंपराओं, लिखित दस्तावेजों इत्यादि के माध्यम से इन्हें प्रमाणित किया जाता है।
मौलिक पहचान को अक्षुण रखने के लिए आज भी संघर्षरत है आदिवासी समाज
दुनिया के तमाम देशों में भी आदिवासियों की रूढ़ी व्यवस्था विधि को सबसे प्राचीन स्रोत और संस्था के रूप में माना गया है। इसी रूढ़ी व्यवस्था के तहत दुनिया की तमाम सभ्यताएं और धर्म का उदय हुआ है रूढ़ी प्रथा (कस्टम) यह कई देशों की वर्तमान कानून की जननी भी है।
आदिवासियों के संदर्भ में रूढ़ी (कस्टम) प्रथा हमारी विशिष्ट पहचान अस्तित्व एवं अस्मिता को निर्धारित करती है पर विडंबना है कि आज आदिवासी इस रुढ़ीगत आधारित मौलिक पहचान को अक्षुण रखने के लिए आज भी संघर्षरत है।
आदिवासी रीति रिवाज विरोधी कार्यक्रम पर तुरंत रोक लगाने की मांग
ग्राम मटली, तहसील राजपुर, जिला बड़वानी मध्य प्रदेश में आदिवासियों की रूढ़ी एवं परंपराओं के विरोध फर्जी तरीके से इंदल उत्सव पूजा कार्यक्रम होने वाला है। इस इंदल कार्यक्रम से आदिवासियों की परंपराओं को बदलकर तथाकथित परंपराओं से पूजा होने से आदिवासी परंपराए नष्ट होगी।
इस कार्यक्रम पर तुरंत बंदिश लगाने का प्रस्ताव मुख्य कार्य पालन अधिकारी, जनपद पंचायत राजपुर अनुविभागी अधिकारी राजपुर, जिला कलेक्टर बड़वानी एवम मध्यप्रदेश संस्कृति मंत्रालय को भेज कर आदिवासी रीति रिवाज विरोधी कार्यक्रम पर तुरंत रोक लगाने की मांग है किंतु आदिवासी के रक्षक ही भक्षक बनाकर आदिवासी रीति रिवाज परंपराओं को नष्ट करने में लगे हैं।
ज्ञापन सौंपते समय ये रहे मौजूद
इस दौरान जयस के अजय कनोजे, कांगो जमरे, राजेश अछालिया, अनिल नरगांवे, अरविंद कनोजे, किरता जमरे, मुकेश नार्वे, रमेश नरगांवे, पेमा कनास्या, राहुल कनोजे, राजेश नरगांवे, बबल कनोजे, संदीप कनोजे, इतराम डावर, शोभाराम मेहता, लखन अलावे, संजय अलावे,अमलेश जमरे, बबलू नरगावे और रवि सस्ते आदि मौजूद थे।