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पॉक्सो अधिनियम-कानून के अंतर्गत सुविधाएँ

पॉक्सो अधिनियम-कानून के अंतर्गत सुविधाएँ


भोपाल। गोंडवाना समय। 

भारत में बच्चों के यौन उत्पीड़न से संबंधित जटिल और संवेदनशील मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2012 में पॉक्सो अधिनियम लागू किया गया था। इसी अधिनियम का मुख्य उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षित रखना तथा ऐसे मामलों में अपराधी को कठोर सजा दिलाना है।

पॉक्सो कानून के अंतर्गत सुविधाएँ 


24 घंटों के अंदर बच्चे को संरक्षण व जरूरत कें अनुसार चिकित्सा सुविधा, किसी व्यक्ति पुलिस द्वारा रिपोर्ट न करने पर 6 माह का कारावास या जुमार्ना या दोनों, विधि सहायता एवं व्यय वहन करने में असमर्थ होने की स्थिति में विधिक सेवा प्राधिकरण द्वरा मुफ्त वकील की व्यवस्था, प्रत्येक प्रकरण की सुनवाई विशेष न्यायालय में होना अनिवार्य है, 
                चालान/रिपोर्ट की मुफ्त प्रति बच्चे के माता-पिता को उपलब्ध कराना, केस की सुनवाई बंद कमरे में होना एवं इस दौरान बच्चे की गरिमा सुनिश्चित रखना, संचालन के लिए एक विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति करना, अपराध की जानकारी मिलने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर बच्चे को न्याय दिलवाना अनिवार्य है,
            केस के दौरान हिंसा होने पर पुन: रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं, क्योकि इसमें आरोपी की सजा बढ़ा दी जाती है, इस अधिनियम में बच्चे को संरक्षण देने का भी प्रावधान है, यदि फैसला होने के बाद न्याय न मिले तो पीड़ित पक्ष एक महीने के भीतर हाई कोर्ट में अपील (फैसले के विरूद्ध) कर सकते हैं।

रिपोर्ट की प्रक्रिया क्या है ?


विशेष किशोर पुलिस इकाई में रिपोर्ट कर सकते हैं, स्थानीय पुलिस थाने में रिपोर्ट कर सकते हैं। पुलिस 24 घंटे के भीतर न्यायालय एवं बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत करते हैं या रिपोर्ट करेंगी ताकि बच्चे का पुनर्वास सुनिश्चित हो सके। रिपोर्ट सरल भाषा में लिखी जाएगी ताकि बच्चा समझ सके। रिपोर्ट झूठी होने पर बच्चे को सजा नहीं मिलेगी लेकिन व्यक्ति को एक वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
                केन्द्रिय बाल अधिकार संरक्षण आयोग। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग। महिला व बाल विकास विभाग। चाइल्डलाइन 1098, विशेष किशोर पुलिस इकाई। बाल कल्याण समिति। पुलिस। पंचायत। गैर सरकारी संगठन/सामाजिक कार्यकर्ता व समाज पीड़ित बच्चों के लिये विशेष सुविधा- इन कानून में पीड़ित बच्चों को विशेष सुविधा दी गई है।
                न्यायालय में बच्चे के लिए मित्रतापूर्वक वातावरण बनाना। बच्चे का बार-बार न्यायालय में नहीं आना सुनिश्चित करना। कार्यवाही के दौरान बच्चे की गरिमा सुनिश्चित करना। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा गोपनीयता सुनिश्चित करना। समुचित प्रकरणों में बच्चे की परिस्थिति व पुनर्वास की जरूरतों के आधार पर मुआवजा देने का आदेश पारित कर सकता है। 

बच्चे का कथन लेने की प्रक्रिया 


महिला पुलिस/मजिस्ट्रेट द्वारा कथन लिखना। कथन के समय पुलिस अधिकारी वर्दी में नहीं होना अनिवार्य है। कथन लिखते समय बच्चा आरोपी के संपर्क में न आये ये सुनिश्चित करना। रात में बच्चे को थाने में किसी भी कारण से रोका नहीं जा सकता है।
                पुलिस द्वारा बच्चे की पहचान गोपनीय रखी जाएगी। बच्चे के माता-पिता या कोई बच्चे के भरोसे वाले व्यक्ति की उपस्थिति अनिवार्य है। जरूरत के अनुसार अनुवाद या नि:शुल्क बच्चे के लिये विशेषज्ञ उपलब्ध कराना।

मेडिकल/चिकित्सा परीक्षा 

यदि पॉक्सो के अंतर्गत प्रकरण दर्ज नहीं हो पाया है, तब तक चिकित्सा परीक्षा दंड प्रक्रिया संहित 1973 की धारा 164 के अनुसार अर्थात सीधे मजिस्ट्रेट के सामने बयान भी हो सकता है। बालिका के प्रकरण में चिकित्सा परीक्षण महिला डॉक्टर द्वारा किया जाएगा।
            चिकित्सा परीक्षा के समय माता-पिता या बच्चे का कोई विश्वास पात्र उपस्थित रहेगा। यदि चिकित्सा परीक्षा के समय बच्चे की ओर से कोई नहीं है तब चिकित्सा प्रमुख द्वारा निर्देशित कोई महिला उपस्थित रहेगी।

महत्वपूर्ण भूमिकाएँ 

सामाजिक कार्यकर्ता, रिपोर्ट करने में मदद। अधिनियम की जानकारी देना/ जागरूक करना। बाल विशेषज्ञ/काउंसलर की मदद से बालक को मदद करना। न्यायिक प्रक्रिया को त्वरित करने के लिए बजट रखना और फॉलोअप करना। बच्चे के संरक्षण, पुनर्वास या चिकित्सा सुविधा में अहम भूमिका निभाना।

पंचायत

केस के खिलाफ ग्राम सभा में भी आवेदन दे सकते हैं ताकि इस मु्द्दे पर अलग से ग्राम सभा बुलाकर न्याय प्रक्रिया को तीव्र कर सके। पंचायत को बच्चों से संबंधित मुद्दे पर आवश्यकता के अनुसार ग्राम सभा बुलाने का प्रावधान है ताकि उन्हें संरक्षित माहौल प्रदान किया जा सके।

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