केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों को मिटाना चाहती है
मणिपुर हिंसा के दोषियों को सजा देने सहित संवैधानिक अधिकारों को लेकर किया आवाज बुलंद
दुर्गूर्कोंदल ब्लाक लोहत्तर गांव में धूम धाम से मनाया गया विश्व आदिवासी दिवस
हाईस्कूल मैदान में विश्व आदिवासी दिवस कार्यक्रम आयोजित
दुर्गाप्रसाद ठाकुर, राज्य ब्यूरो प्रमुख।
कांकेर/छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय।
सर्व आदिवासी समाज ने ग्राम लोहत्तर में विकासखंड स्तरीय विश्व आदिवासी दिवस पर्व को उत्साह के साथ मनाया। विकासखंड स्तरीय कार्यक्रम में समाज महिला पुरूष युवक युवतियों ने अपने संस्कृति अनुसार कपड़े, गहने व अन्य श्रृंगार कर पहुंचे।
कार्यक्रम की शुरूआत लोहत्तर की जिमीदारीन, बूढ़ादेव, दंतेश्वरी देवी की पूजा कर किया गया। युवाओं में विश्व आदिवासी दिवस पर अलग जोश दिखाई दी। कार्यक्रम के दौरान समाज के लोगों ने रैली निकाली और संवैधानिक अधिकार पेशा कानून, पेशा ग्राम सभा को प्रभावी रूप से पालन करने, जल जंगल जमीन बचाने, खनिज संपदा बचाने, आदिवासियों के संविधान अधिकार को बचाने, संविधान में आदिवासियों के हित उल्लेखित लिखित अधिकारों से छेड़ नहीं करने, मणिपुर हिंसा के दोषियों को सजा देने सहित अन्य मुद्दों को लेकर नारेबाजी किया। सर्व आदिवासी समाज ने लोहत्तर से सिलपट गांव तक रैली निकालकर महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा।
हमें बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान में सर्वोच्च स्थान दिया है
मुख्य अतिथि ढालसिंह पात्र थे, अध्यक्षता जगतराम दुग्गा ने किया। विशेष अतिथि झाड़ूराम उयका, रामचंद्र कल्लो, पूर्व विधायक देवलाल दुग्गा, कमलसिंह कोर्राम, प्रोफेसर रितेश नाग, रमेश दुग्गा, बाबूलाल कोमरा, शकुन्तला नरेटी, अमिता उइके, संतो दुग्गा, धनीराम ध्रुव, मुकेश्वरी नरेटी थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि ढालसिंह पात्र ने कहा कि हम आदिवासी परंपरावादी हैं, हमारी संस्कृति और जीवन शैली सबसे अलग है, हमें बाबा साहब अंबेडकर ने संविधान में सर्वोच्च स्थान दिया है लेकिन बीते कुछ वर्षों से हमारी संवैधानिक अधिकार से तेजी से छेड़छाड़ किया जा रहा है। कार्यक्रम के अध्यक्ष जगतराम ने कहा कि हम आदिवासी, मूलनिवासी जंगल और जमीन के मालिक हैं, यहां के जल, जंगल जमीन और यहां की संपदा पर हमारा हक है। हमारी अनुमति और सहमति के बिना यहां शासन प्रशासन भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।
जगह जगह बिना ग्राम सभा के कैंप स्थापित कर रही है
राज्य सरकार ने आदिवासियों और मूलनिवासियों के पेशा नियम बनाई है कि यहां जो भी काम होगी मूलनिवासियों के सहमति और ग्रामसभा की अनुमति प्रस्ताव से होगी। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार भी खुद के बनाए हुए कानून का पालन नहीं कर रही है, केंद्र सरकार खनिज संपदा के दोहन के लिए जगह जगह बिना ग्राम सभा के कैंप स्थापित कर रही है। आदिवासियों को लड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है, बस्तर में आदिवासियों के साथ अत्याचार हो रही है, लोग अपने अधिकार के लिए आंदोलन पर डटे हुए हैं, शासन प्रशासन आदिवासियों की आवाज को नहीं सुन रही है, कांकेर जिले के बेचाघाट, मेंड्रा, हेतले, भेजर में आदिवासी मूलनिवासी लोग आंदोलन कर रहे हैं, संवैधानिक अधिकार के तहत मांग कर रहे हैं। सरकार नहीं सुन रही है।
संविधान जो शक्ति आदिवासियों को दी गई है, उसे सिर्फ खत्म करने में लगे हैं
केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों को मिटाना चाहती है। इसलिए बच्चे, बूढ़े, नौजवान, जनप्रतिनिधि, बुद्धिजीवी, छात्र, सामाजिक नेता सतर्क रहें। अपने अपने स्तर पर आदिवासी समाज के हित को लेकर लड़ाई लड़ें। सामूहिक रूप से लड़ें। अन्यथा हमसब अपने अधिकार से कोसों दूर है जायेंगे। इन्होंने कहा कि बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने संविधान में अधिकार दिया है। लेकिन वर्तमान जो सरकार हैं, वे कुछ दिये नहीं लेकिन बाबा साहब के द्वारा संविधान जो शक्ति आदिवासियों को दी गई है, उसे सिर्फ खत्म करने में लगे हैं। सब सचेत हो जाएं।
कार्यक्रम का मच संचालन आदिवासी समुदाय के प्रखर संचालक नीरज कोसमा ने की
विश्व आदिवासी दिवस पर कुबेर दर्रो, महत्तम दुग्गा, बाबूलाल कोला, प्रवीण दुग्गा, भीखम देहारी, दिनेश मरकाम, प्रेम पुड़ो, मानसू आचला, धनसाय हुर्रा, छेरकू तुलावी, बाबूलाल कोमरा, बैजनाथ नरेटी, धरम नरेटी, नेमालाल कोमरा, शंकर नरेटी, दुर्जन उयका, टिकेश नरेटी, भुनेश नरेटी,धानुजू नरेटी विकास राजू मानिक कड़ियाम, बसंती भालेश्वर कुमार टोपा नरेश पोटाई, अजित नायक, नंद गुरूवर,सहित बड़ी संख्या में सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारी, महिला पुरूष, गायता पटेल उपस्थित थे। कार्यक्रम का मच संचालन आदिवासी समुदाय के प्रखर संचालक नीरज कोसमा ने की।