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गोंगपा 128, जयस ए 80, भागोपा 100, जयस बी 80, राष्ट्रीय गोंडवाना 125, गोंडवाना गणराज्य 50 विधानसभा में लड़कर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का है प्लान, भाजपा की सरकार फिर बनने का रास्ता होगा आसान

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बीटीपी, आजाद भारत पार्टी सहित आदिवासी हितेषी बताने वाले अन्य दलों का आखिर क्या गणित 

बिरसा ब्रिगेड राष्ट्रवादी कांग्रेस या कांग्रेस आखिर किसका देगी साथ 

अन्य सामाजिक संगठनों का भी किस राजनीतिक दल की ओर होगा रूख 

कांग्रेस भी सत्ता पुन: के लिये लगा रही जुगाड़ 

ऐसे में कैसे बनेगी मध्यप्रदेश में जनजाति वर्ग के कल्याण व विकास करने वालों की सरकार क्या बुद्धिजीवि करेंगे विचार ?

विवेक डेहरिया, संपादक
सिवनी। गोंडवाना समय। 

भारत देश में सर्वाधिक आदिवासी की जनसंख्या वाला प्रदेश मध्यप्रदेश है। आदिवासी मतदाताओं की संख्या सिर्फ आदिवासी आरक्षित विधानसभा व लोकसभा सीट में तो है ही इसके साथ साथ अन्य सामान्य सीट व एससी की भी ऐसी विधानसभा क्षेत्र की सीट है जहां पर भी मध्यप्रदेश में आदिवासी मतदाताओं की संख्या परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में है।
          


 
सर्वाधिक आदिवासी की जनसंख्या वाला मध्यप्रदेश में आदिवासी वर्ग के विकास, उत्थान, कल्याण, प्रगति, उन्नति की बातें, वायदा, वचन, घोषणा सत्ता तक पहुंचने वाली सरकार हमेशा करती रही है लेकिन आदिवासी समाज का विकास कितना हुआ है यह धरातल आज भी शून्य की स्थिति में दिखाई दे रहा है। 

आदिवासियों के नाम अरबो-खरबो रूपये हो गये खर्च फिर भी मूलभूत सुविधाओं से है वंचित 

आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिये अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने के लिये भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस वर्षों से बड़े-बड़े वायदे करती आ रही है लेकिन संविधान में प्रदत्त हक अधिकारों से आज भी आदिवासी वर्ग वंचित है। आजादी के बाद कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में राजपाठ किया उसके बाद लगभग 2 दशक से भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश में राजपाठ कर रही है।
                कांग्रेस और भाजपा के सत्ता में रहते आदिवासियों के विकास के नाम पर अरबो-खरबों रूपये खर्च किये गये है। विशेष संरक्षित जनजाति बैगा, कोरकू, भारिया सहित अन्य जनजातियों के लिये प्रत्येक परिवार के हिसाब से करोड़ों रूपये व्यय किया गया है। आदिवासी वर्ग के कल्याण व विकास के लिये आदिवासी उप योजना का बजट केंद्र व राज्य सरकार का अरबो-खरबों में खर्च किया गया है।
            इसके बाद भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे है ऐसा क्यों ? हालांकि आदिवासी वर्ग की आरक्षित विधानसभा व संसदीय सीट क्षेत्र से विधायक व सांसद चुनकर आदिवासी समाज के प्रतिनिधि भी विधानसभा व लोकसभा के सदन में पहुंचते है लेकिन आदिवासी समाज के विकास, उनके हक अधिकारों को लेकर कितने विधायक व सांसद आवाज उठाते है यह चुने हुये विधायकों व सांसदों से अच्छा कोई दूसरा नहीं जानता है। 

आदिवासी समाज को भी आपस में टुकड़ों में बांटकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे है 

आगामी कुछ माह पश्चात मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले है। विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज के संवैधानिक हक अधिकार दिलाने व उनके विकास उत्थान कराने का वायदा करके और विशेषकर मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री का प्लान बनाकर या सपना दिखाकर आदिवासी समाज के नाम पर राजनीति करने वाले बड़े-बड़े दावे आपस में ही टुकड़ों में बंटकर आदिवासी समाज को भी आपस में टुकड़ों में बांटकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे है।
                सर्वाधिक आदिवासी की जनसंख्या वाला मध्यप्रदेश में आदिवासी सरकार, आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की सपना आदिवासियों को आदिवासी समाज के बुद्धिजीवि वर्ग ही दिखा रहे है। आदिवासी समाज के नाम पर राजनीति करने वाले इतने टुकड़ों में बंटे हुये है कि एक परिवार में यदि 10 वोट भी होंगे और यदि 1-1 वोट भी प्रत्येक सदस्य देगा तो शायद आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वालों को नहीं दे पायेगा। 

128 विधानसभा सीटों में चुनाव में उम्मीदवार उतारेगी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 


वर्ष 1991 से पहले ही गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन के रूप में कार्य करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में अपना वर्चस्व वर्ष 1991 से बनाने की कवायद कर रही है। वहीं वर्ष 2003 में मध्यप्रदेश में 3 विधायक भी बने थे और अधिकांश विधायक बनते-बनते रह गये थे।
                

वहीं वर्ष 2003 में सत्ता के घसटते घसटते मेहनत करने वाली भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में बैठने का मौका इसलिये मिला था क्योंकि कांग्रेस पार्टी से आदिवासी मतदाताओं दूरी बना लिया था और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ देकर गोंगपा के पक्ष में मतदान किया था।
                वर्ष 2003 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कारण ही कांग्रेस का सफाया हुआ था और भाजपा सत्ता तक पहुंची थी। वर्ष 2003 के बाद गोंगपा का ग्राफ बढ़ते रहा लेकिन आपसी फूट के चलते वर्ष 2008 के चुनाव में गोंडवाना मुक्ति सेना सहित अन्य कुछ आदिवासी राजनैतक दलों वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में मैदान में उतारकर आपस में ही लड़ने बंटने के कारण गोंगपा सहित अन्य दलों को हार का मुंह देखना पड़ा।
                वर्ष 2008 में भाजपा फिर सत्ता पाने में सफल हो गई। इसके बाद तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में नेतृत्व पाने की भूख भी बढ़ती गई इसके लिये स्वार्थ व आपसी फूट कूट कूटकर नेतृत्वकर्ताओं में भरने लगा। वर्ष 2013 के बाद वर्ष 2018 में यही स्थिति रही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को खंड-खंड में बांट दिया गया।
            जहां जहां पर गोंडवाना आंदोलन का प्रभाव था वहां पर आदिवासी समाज के सामाजिक संगठनों को विभाजन करने के लिये लगाया गया। अब गोंगपा के संस्थापक दादा हीरा सिंह मरकाम भी इस दुनिया में जीवित नहीं है लेकिन वर्ष 2023 में मध्यप्रदेश में 128 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा गोंगपा के नेताओं के द्वारा किया जाकर मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का दावा किया जा रहा है, यह बिना एकता के कैसे सफल होगा इस विचार मंथन का विषय है। वैसे भी वर्ष 2003 में गोंगपा से 3 विधायक बनने के बाद गोंडवाना के नाम पर राजनैतिक आंदोलनों की बाढ़ सी आ गई है जो गंभीर विषय है। 

जयस ए टीम का दावा 80 सीट पर लड़ेगी चुनाव बनायेगी आदिवासी की सरकार 


जय आदिवासी युवा शक्ति जयस आदिवासियों को संवैधानिक अधिकारों को दिलाने के लिये जागरूक करने के लिये गठन किया गया था जो आज भी आदिवासी समाज को जागरूक करने का कार्य कर रहे है एवं आदिवासी समाज के हक अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहे है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले संसद का घेराव 1 करोड़ आदिवासी करेंगे तरह तरह की बाते कहीं गई थी।
                    जय आदिवासी युवा शक्ति के द्वारा मध्यप्रदेश में आदिवासी को हक अधिकार दिलाने के लिये आदिवासी अधिकार यात्रा भी निकाली गई थी। वर्ष 2018 में जय आदिवासी युवा शक्ति ने मध्यप्रदेश में 80 विधानसभा सीट में चुनाव लड़ाने का एलान किया था। इसके बाद डॉ हीरालाल अलावा को कांग्रेस पार्टी से 1 विधानसभा सीट मिली तो 80 सीट में चुनाव लड़ने की योजना जयस की धरी की धरी रह गई।
                 हालांकि डॉ हीरालाल अलावा कांग्रेस पार्टी से विधायक बनने में सफल भी हुये। विधायक बनने के बाद डॉ हीरालाल अलावा ने विधानसभा के सदन में आदिवासियों की आवाज भी मुखर होकर उठाई भी है। इसके साथ साथ आदिवासी के गंभीर मामलों में राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाने का भी प्रयास किया है।
                वर्ष 2018 में जयस संरक्षक डॉ हीरालाल अलावा के विधायक बनने के बाद मध्यप्रदेश में जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कहें या गोंडवाना के राजनैतिक आंदोलन की तरह स्वार्थ की भेंट चढ़कर आपसी विवाद व फूट के कारण दो टुकड़ों में बंट गया। जयस में स्वार्थ के साथ वर्चस्व की लड़ाई सोशल मीडिया से लेकर सड़कों में दिखाई देती है। जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन में बुद्धिजीवि वर्ग ही आपस में लड़कर टुकड़ों में बंट गये है।
                जयस की ये स्थिति है कि जयस की ए टीम जिसमें डॉ हीरालाल अलावा संरक्षक है वह मध्यप्रदेश में 80 विधानसभा सीट में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। जयस गोंडवाना के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी उम्मीदवार उतारेगी ऐसी स्थिति में कैसे चुनाव जीतेंगे यह बहुत गंभीर विषय चिंतन के लिये है। 

अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी 100 सीट पर लड़ेगी विधानसभा चुनाव 


अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी भी मध्यप्रदेश में 100 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है। इसके लिये पिछले दिनों हुई बैठक् में निर्णय भी ले लिया गया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जिन जिन विधानसभा सीटों में चुनाव लड़ेगी उसमें से अधिकांश सीटों पर अखिल भारतीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी चुनाव लड़ायेगी। ऐसी स्थिति में कैसे विधायक बनायेंगे यह दोनो दलों के पदाधिकारियों पर ही निर्भर करता है।
                हम आपको बता दे कि अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी के संस्थापक लिंगोवासी मनमोहन शाह बट्टी वर्ष 2003 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से अमरवाड़ा विधानसभा से विधायक बने थे। इसके बाद उनका वर्चस्व छिंदवाड़ा जिला सहित मध्यप्रदेश में भी बना रहा। सबसे अहम बात यह रही है पूरी जिंदगी भर जय लंकेश का संदेश देने वाले लिंगोवासी मनमोहन शाह बट्टी जी को उनके कुछ सलाहकारों की सलाह पर लोकसभा की टिकिट के लिये गदा यात्रा में भी शामिल होना पड़ा।
                दबंगई के साथ जिंदगी भर राजनीति करने वाले लिंगोवासी मनमोहन शाह बट्टी भी वर्ष 2008, 2013, 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुत कम अंतर से क्यों चुनाव हार गये इस पर विचार क्यों नहीं किया गया आपसी फूट और गोंडवाना के राजनैतिक आंदोलन के आपसी फूट के कारण ही उन्हें हार का मुंह बहुत कम वोटों से देखना पड़ा। अब अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी की कमान उनकी बेटी मोनिका शाह बट्टी संभाल रही है,उन्हीं के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में 100 सीट में विधानसभा चुनाव लड़ाया जायेगा।
                सोचने की बात यह है कि अमरवाड़ा विधानसभा में जब उनके पिता को ही आपसी फूट विभाजन के कारण हार का मुंह देखना पड़ा था। वहीं अब तो राजनीति की शुरूआत ही मोनिका शाह बट्टी कर रही है विधानसभा में क्या परिणाम आयेंगे। इस पर विचार आखिर क्यों नहीं किया जा रहा है, क्या गोंडवाना के राजनैतिक आंदोलन में कार्य कर रहे सभी बुद्धिजीवियों की एकता के बिना लिंगोवासी मनमोहन शाह बट्टी जी का सपना पूरा हो पायेगा। 

जयस बी टीम भी 80 सीटों पर विधानसभा में आदिवासी सरकान बनाने उतारेगी उम्मीदवार 


जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन हालांकि राजनैतिक संगठन नहीं है। आदिवासी के संवैधानिक अधिकार व आदिवासियों के विकास कल्याण के लिये जय आदिवासी युवा श्ािक्त का गठन सामाजिक रूप में किया गया था और आज भी सामाजिक मिशन के रूप में जारी है। वर्ष 2018 में जयस के पदाधिकारी डॉ हीरा अलावा के विधायक बनने के बाद स्वार्थ व वर्चस्व की लड़ाई में बढ़ी आपसी फूट ने जय आदिवासी युवा शक्ति जयस संगठन को दो टुकड़ों में बांटकर विभाजन कर दिया है।
                

जयस बी टीम के रूप में कार्य करने वाले लोकेश मुजाल्दा, विक्रम अच्छालिया, महेन्द्र कन्नोज, डॉ आनंद राय, डॉ अभय ओहरी सहित अन्य युवा पदाधिकारी जय आदिवासी युवा शक्ति जयस के माध्यम से मध्यप्रदेश में 80 सीट में चुनाव लड़ाने का दावा कर रहे है। जयस भी यदि दो टुकड़ों में बंटकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी तो कैसे विधायक बनायेगी इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है क्योंकि स्वार्थ व वर्चस्व की भूख पदाधिकारियों में समाप्त नहीं हो रही है।
                    जय आदिवासी युवा शक्ति जयस संगठन ही जब आपस में बंटा हुआ है टुकड़ों में विभाजित है तो यह कैसे आदिवासी समाज का भला कर पायेगा, यह विचारणीय प्रश्न है। इसका जवाब बुद्धिजीवि पदाधिकारी भी जानते है लेकिन स्वार्थ व वर्चस्व की लड़ाई चलते एकता के बंधन में मजबूत नहीं होना चाहते है जो आदिवासी समाज के लिये धोखा देने से कम नहीं है। 

राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी 125 विधानसभा सीटों में लड़ेगी चुनाव


सर्वाधिक आदिवासी की जनसंख्या वाला मध्यप्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी वर्ष 1991 से राजनैतिक आंदोलन चला रही है लेकिन वर्ष 2003 के बाद से मध्यप्रदेश में गोंडवाना राजनैतिक दलों के उदय बढ़ता ही जा रहा है। मध्यप्रदेश में वर्ष 2023 के चुनाव में राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी जिसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष उर्मिला मार्कों है एवं मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय गोंडी चित्रकार कलाकार आनंद श्याम है।
                

राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी ने भी 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में 125 विधानसभा सीटों में उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी सहित अन्य आदिवासी हितेषी राजनैतिक दल चुनाव लड़ेंगे वहीं पर राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी भी चुनाव लड़ेगी। ऐसी स्थिति में बिना एकता के राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी कितने विधायक बना पाती है यह परिणाम आने के बाद ही समझ आयेगा। 

गोंडवाना गणराज्य पार्टी 10 प्रतिशत सीटों पर लड़ेगी चुनाव 


मध्यप्रदेश में गोंडवाना गणराज्य पार्टी भी गोंडवाना राजनैतिक आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रही है। गोंडवाना गणराज्य पार्टी के प्रमुख गुलराज सिंह मरकाम जो कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी कहें या गोंडवाना राजनैतिक आंदोलन के आधार स्तंभ के रूप में अपनी पहचान रखते है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के मध्यप्रदेश अध्यक्ष सहित महत्वपूर्ण पदों पर भी अपनी जिम्मेदारी निभाया है।
                वर्ष 2008 के बाद से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से अलग होने के बाद एक बार जरूर लोकसभा चुनाव के लिये नैनपुर में एकता सम्मेलन में एक हुये थे। इसके बाद अब गुलजार सिंह मरकाम ने भी गोंडवाना गणराज्य पार्टी बना लिया है जिसका संचालन मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों में कर रहे है।
                    वर्ष 2023 का गोंडवाना गणराज्य पार्टी का पहला चुनाव होगा, इसलिये मध्यप्रदेश में 10 प्रतिशत सीट में वे विधानसभा में गोंडवाना गणराज्य के उम्मीदवार उतारेंगे। इस आधार लगभग 23 विधानसभा सीट में उम्मीदवार उतारेंगे ही लेकिन यह आंकड़ा 50 सीट तक भी हो सकता है जो कि चुनिंदा सीटों में होगा।
                हालांकि आगामी कुछ ही दिनों में वे सभी राजनैतिक दलों को एक करने के लिये भोपाल में बैठक करने का प्रयास कर रहे है अब इसमें कहां तक सफल हो पाते है यह भविष्य के गर्त में छिपा हुआ है। 

बिरसा ब्रिगेड का सामाजिक आंदोलन किस राजनैतिक दल को करेगा सपोर्ट 

बिरसा ब्रिगेड की शुरूआत सामाजिक आंदोलन के रूप में की गई थी जो आज भी सामाजिक मिशन के रूप में ही संचालित है। सामाजिक जनजागरूकता के लिये अंतराष्ट्रीय स्तर पर कार्य रहा है। बिरसा ब्रिगेड के पदाधिकारी वर्ष 2018 के पहले से ही सामाजिक मिशन में स्पष्ट रूप से राजनैतिक रूप से कार्य करने के लिये मना करते रहे है लेकिन वर्ष 2018 के चुनाव में अपना मुवमेंट में कार्य करने वाले उम्मीदवार को विधानसभा का चुनाव लड़ाने के लिये फार्म भरवाने के बाद फिर वापस भी कराया था।
                वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार के समर्थन में खुलकर चुनाव के दौरान ही सभा सम्मेलन का आयोजन किया था। बिरसा ब्रिगेड का मुवमेंट सामाजिक आंदोलन में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस पार्टी के नेताओं व पदाधिकारियों का शामिल होना संदेश देने के साथ संदेह पैदा कर रहा है कि कहीं न कहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस को सपोर्ट करने का ईशारा है। इससे आदिवासी समाज का कितना भला होगा यह मिशन चलाने वाले ही जानते है। 

अन्य सामाजिक संगठनों की आखिर क्या है मानसिकता 

मध्यप्रदेश में सामाजिक संगठनों के रूप में आदिवासी समाज की धर्म, भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपरा, शैक्षणिक, आर्थिक व अन्य क्षेत्रों में विकास के लिये कार्य कर रहे है। सभी जानते है राजनैतिक सत्ता की चाबी से हर समस्या का ताला खुल सकता है।
                आदिवासी समाज का सभी क्षेत्रों में विकास हो सकता है। इसके बाद भी यदि आदिवासी सामाजिक संगठनों के द्वारा राजनैतिक दिशा में अपने ही वर्ग का सपोर्ट सहयोग नहीं किया जा रहा है या वे किसका सपोर्ट करना चाहते है।
                सबसे विशेष बात यह भी है कि आदिवासी के नाम पर राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों के द्वारा भी आदिवासी समाज के विभिन्न संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों को तव्वजों नहीं दिया जाता है उनसे सलाह, सुझाव नहीं लिया जाता है, उनके मार्गदर्शन में राजनैतिक आंदोलन को नहीं चलाया जाता है। यही कारण है कि आदिवासी समाज के संगठन भी चुनाव के दौरान अपने ही लोगों से दूरी बना लेते है। 

भाजपा का सत्ता का रास्ता होगा आसान कांग्रेस के लिये और बढ़ेगी मुसीबत


सर्वाधिक आदिवासी की जनसंख्या वाला मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी वर्ष 2003 से सत्ता में कब्जा जमाते आ रही है। वर्ष 2018 में अति उत्साह में कांग्रेस ने सत्ता से उखाड़ दिया था लेकिन कांग्रेस के अपनों ने ही फिर भाजपा को सत्ता तक पहुंचा दिया। वर्ष 2023 के विधानसभा की बिसात बिछ चुकी है। भाजपा ओर कांग्रेस दोनों सरकार बनाने का दावा कर रही है।
                    मध्यप्रदेश में आदिवासी की बाहुल्या है और सरकार बनाने या बिगाड़ने में आदिवासी मतदाता विशेष भूमिका निभाते है। मध्यप्रदेश आदिवासी आरक्षित विधानसभा के अतिरिक्त अन्य आदिवासी मतदाता बाहुल्य वाली विधानसभा सीटों में आदिवासी हित की बात रकने वाले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, अखिल भारतीय गोंडवाना पार्टी, जयस ए टीम, राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी, जयस बी टीम, गोंडवाना गणराज्य पार्टी, बीटीपी सहित अन्य आदिवासी के नाम पर बने राजनैतिक दलों के मैदान में उतरने से वोटों का विभाजन होने से कांग्रेस को नुकसान होने की संभावना रहेगी। इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलने की संभावना है मतलब भाजपा का सत्ता तक पहुंचना आसान होगा। 



विवेक डेहरिया, संपादक

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