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भगत सिंह से जुड़ा एक किस्सा, जो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दर्द को बयां करता हैं

भगत सिंह से जुड़ा एक किस्सा, जो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दर्द को बयां करता हैं

होली भगत सिंह और होली के दिन रक्त के छींटे


आपके विचार, दैनिक गोंडवाना समय अखबार
लेखक-विचारक
राहूल इंकलाब 

बब्बर अकालियों की फांसी पर जब दिखा था भगत सिंह का दर्द, जब आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी, तब भी स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों को मजा चखाने के लिए होली का भरपूर फायदा उठाया।


दरअसल, साल 1926 के आस-पास सरदार भगत सिंह अपने घर से चले गए थे और फिर वो कुछ वक्त के लिए कानपुर में जाकर रहे। 

भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा 

आंदोलनकारी गणेशशंकर विद्यार्थी का एक साप्ताहिक अखबार निकलता था प्रताप भगत सिंह ने कुछ वक्त तक इसी में काम किया। भगत सिंह प्रताप में लगातार अपने लेख लिखते रहते थे। खास बात ये रही कि इसी दौर में भगत सिंह के क्रांतिकारी पार्टी से अच्छे रिश्ते भी कायम हुए और वो शिव वर्मा, बटुकेश्?वर दत्त, जयदेव कपूर समेत अन्य लोगों के संपर्क में आए। जब भगत सिंह प्रताप के लिए काम कर रहे थे, उसी दौर में पंजाब एक बड़ा आंदोलन चल रहा था बब्बर अकाली आंदोलन इस आंदोलन के 6 साथियों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। जिसका भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा था, इसी को उन्होंने अपनी कलम के रास्ते लोगों को बताया।

होली के दिन ही 6 बब्बर अकाली वीरों को फांसी पर लटका दिया गया

प्रताप में भगत सिंह ने पंजाबी युवक के नाम से एक लेख लिखा, जिसमे उन्होंने 6 आंदोलनकारियों को लगाई गई फांसी के दर्द को बयां किया। भगत सिंह का ये लेख 15 मार्च, 1926 को छपा था। भगत सिंह ने अपने लेख में लिखा 27 फरवरी 1926 के दिन जब हम लोग खेल-कूद में व्यस्त थे, तब प्रदेश के एक कोने में भीषण कांड किया गया। इसे सुनोगे, तो कांप उठोगे। लाहौर सेंट्रल जेल में होली के दिन ही 6 बब्बर अकाली वीरों को फांसी पर लटका दिया गया। श्री किशन सिंह गड़गज्ज, श्री संतासिंह, श्री दिलीप सिंह, श्री नंद सिंह, श्री करमसिंह और श्री धरम सिंह महीनों से अदालत के फैसले का इंतजार था।

साहस और तत्परता से उन्होंने अपने प्राण चढ़ा दिए

भगत सिंह ने लेख में लिखा, ऐलान हुआ कि पांच को फांसी दी जाएगी, बाकियों को काला पानी की सजा, लेकिन 6 को फांसी नसीब हुई। अपने लेख में भगत सिंह ने लिखा, नगर में वही धूम थी, आने-जाने वालों पर रंग डाला जा रहा था, कैसी भीषण उपेक्षा थी। यदि वे पथभ्रष्ट थे तो होने दो, उन्मत्त थे तो होने दो, निर्भीक देशभक्त तो थे। उन्होंने जो किया, इस अभागे देश के लिए ही तो किया। वे अन्याय न सहन कर सके, देश की पतित अवस्था को ना देख सके, आम जनता का शोषण वह बर्दाश्त नहीं कर सके। मृत्यु के बाद मित्र-शत्रु समान हो जाते हैं। अगर उन्होंने कोई घृणित कार्य किया भी हो, तो स्वदेश में जिस साहस और तत्परता से उन्होंने अपने प्राण चढ़ा दिए, उसे देखते हुए तो उनकी पूजा की जानी चाहिए।

शीघ्र फांसी पर चढ़ाए जाने की इच्छा प्रकट की

अपने इस लेख में भगत सिंह ने अकाली बब्बर वीरों के पूरे संघर्ष, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उनकी जंग और पकड़े जाने की पूरी कहानी को बयां किया है। लेख के अंत में भगत सिंह ने लिखा। दो वर्ष के पूरे दमन के बाद अकाली जत्थे का अंत हुआ। उधर मुकदमा चलने लगा, जिसका परिणाम ऊपर लिखा जा चुका था। अभी उस दिन इन लोगों ने शीघ्र फांसी पर चढ़ाए जाने की इच्छा प्रकट की, वह इच्छा पूरी हो गई और वो शांत हो गए।



लेखक-विचारक
राहूल इंकलाब 

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