जैविक खेती करने से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है-प्रदीप राहंगडाले
महाविद्यालय कुरई में जैविक खेती उसकी आवश्यकता व वैश्विक संभावनाएं पर प्रशिक्षण आयोजित
रोजगार स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना ही प्रशिक्षण का उद्देश्य है
अजय नागेश्वर, विशेष संवाददाता
कुरई। गोंडवाना समय।
शासकीय महाविद्यालय कुरई, सिवनी (म.प्र.) में कार्यालय निदेशक, स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन योजना के निदेर्शानुसार जैविक खेती क्या,क्यों और कैसे पर युवाओं के लिए 15 दिवसीय अल्पावधि रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण 7 मार्च 2023 से आयोजित की गई है।इस प्रशिक्षण में विद्यार्थी पूर्ण मनोयोग से हिस्सा ले रहे हैं। प्रशिक्षण के उपरांत विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।
जल,भूमि और वायु में कोई प्रदूषण नहीं होता था
इस अवसर पर प्राचार्य बीएस बघेल ने कहा की जैविक खेती हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाया गया एक प्राकृतिक खेती का तरीका था जिसके अनुसार खेती करने से पदार्थों की गुणवत्ता बरकरार रहती थी और हमारे खेती के तत्व जैसे - जल,भूमि और वायु में कोई प्रदूषण नहीं होता था। टीपीओ प्रो. पंकज गहरवार ने कहा की प्रशिक्षण का उद्देश्य महाविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों को रोजगार/स्वरोजगार के प्रति प्रेरित करना हैं।
जल ,जमीन और वायु का गुण धर्म भी सुधरने लगता है
मुख्य प्रशिक्षणकर्ता श्री प्रदीप राहंगडाले ने बताया की प्राकृतिक खेती, जैविक खेती और वर्मी कंपोस्टिंग के क्षेत्र में रोजगार सृजन तथा उद्यमिता विकास की अपार सभावनाएँ हैं। यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप है और इससे पर्यावरण संरक्षण, की अवधारणा को बल मिलता है। आम आदमी भी छोटे स्तर पर जैविक और वर्मी खाद का निर्माण कर पर्यावरण और राष्ट्र हित के महत्वपूर्ण कार्य में अपना योगदान देकर अपने आप को गौरवांवित महसूस कर सकते हैं।
जैविक खेती से उत्पन्न फसल की गुणवत्ता अच्छी होती, जैविक खेती से मिट्टी की सेहत सुधरने लगती है, लाभकारी सूक्ष्म जीवों की भी संख्या बढ़ने लगती है। इसके कारण पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। जल ,जमीन और वायु का गुण धर्म भी सुधरने लगता है। जैविक उत्पादों के सेवन से स्वास्थ्य सुधरने लगता है। उन्होंने आगे बताया कि जैविक खेती करने से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है। इससे खेती की लागत में कमी आ जाती है।
आवश्यक सामग्री
जैविक खेती के लिए आवश्यक सामग्री पोर्टेबल वमीर्बेड, ग्रीन सेड नेट, गोबर खाद, केंचुआ, मही, पत्ती, गौ मूत्र, नीम, करंज, खली व फसलों के अवशेष की जरूरत पड़ती है।
प्रशिक्षण को सफल बनाने में इनका योगदान रहा
प्रशिक्षण को सफल बनाने में तीजेश्वरी पारधी, डॉ रविन्द्र अहिरवाल, सारंग लाडविकर, डॉ राजेन्द्र कटरे, आकाश देशभरतार, नागेश पंद्रे, उमा सोनेश्वरी, निहाल गेढ़ाम, निलिमा इत्यादि का योगदान रहा।प्रशिक्षण के दौरान शुभम पांडे, विवेक वर्मा, अभिषेक नागवंशी, संदीप नेताम, शिवम शिव, विशाल नागोत्रा, दर्शना, कल्याणी , अर्चना इत्यादि की उपस्थिति रही।