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हीरासूका मुकासी का इस सम्पूर्ण गोंडियन समाज के लिए अमूल्य योगदान है

हीरासूका मुकासी का इस सम्पूर्ण गोंडियन समाज के लिए अमूल्य योगदान है 

हीरासूका मुकासी ने प्राकृतिक समाजवाद का सिद्धांत इस महामानव ने सर्वप्रथम दुनियां को प्रदान किया

पंचखण्ड धरती के आदि मुठवापोय अपालमंगी महान संगीतकार हीरासूका लिंगो की जयंती मनाई गई

सिवनी में मुठवापोय हीरासूका लिंगोे की जंयती कार्यक्रम धूमधाम उत्साहपूर्वक मनाया गया 


सिवनी। गोंडवाना समय। 

जिला मुख्यालय सिवनी, म.प्र. में 08 जनवरी, 2023 दिन रविवार को परधान समाज संगठन जिला सिवनी, मप्र के द्वारा इस पंचखण्ड धरती के आदि मुठवापोय अपालमंगी महान संगीतकार हीरासूका लिंगो की जयंती मनाई गई।
            


जंयती पूस माह की पूर्णिमा दिन शुक्रवार, दिनांक 06 जनवरी, 2023 को थी। कार्यक्रम की शुरूआत सर्वप्रथम मुठवापोय हीरासूका की तेलचित्र पर माल्यार्पण कर दीपक जलाकर उपस्थित सभी के द्वारा सेवापूजा कर पुष्प अर्पित किया गया।  

महान संगीतकार हीरासूका पाटालीर का योगदान हमारे गोंडियन समुदाय के लिए अविस्मरणीय है


समाज के संगठनमंत्री श्री नंदकिशोर ईनवाती ने संगठन के संरक्षक श्री बी.एल. कुमरे से आग्रह किया कि यहां कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को महान संगीतकार मुठवापोय हीरासूका पर अपने विचार रखें ताकि सभी लोग हीरासूका मुकासी के विषय में जानकर लाभांवित हो सकें। इस बात पर श्री बी एल कुमरे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आज संयोग की बात है कि हम लोग हीरासूका की जंयती एवं श्री कन्हैया लाल उइके का जन्मदिन भी मना रहे हैं।
                आगे कहा कि महान संगीतकार हीरासूका पाटालीर का योगदान हमारे गोंडियन समुदाय के लिए अविस्मरणीय है। जैसा कि हमारे सियाने बुजुर्गों की किस्से-कहानियां, हमारे सामाजिक समारोहों पर माता-बहनों के द्वारा गाये गये पाटागीत तथा हमारे साहित्यकारों ने जो रचना रची है उस आधार पर यदि हम संक्षिप्त में बात करें तो हमें हीरासूका मुकासी के बारे में मालूम होता हैं कि जब  सगादेव बच्चे जंगल में भूख से बिलख रहे थे तभी माता गवरा और शंभूमहादेवा वहां पर पंहुचते हैं, उन बच्चों को भूख से बिलखता देख माता गवरा की ममता जाग उठती है और उन्हें अपने आंचल से दूध पिलाती हैं लेकिन वे बच्चे माता गवरा के आंचल को छोड़ने नही लगे तब पंचखण्ड धरती के राजा शंभूमहादेवा ने उन गोंडी सगादेव बच्चों को एक गुफा में बंद कर दिया। 

किकरी की ऐसी धुन बजाई कि गुफा में बंद सभी सगादेव बच्चों के शरीर में उर्जा का संचार हो गया


आगे श्री कुमरे ने बताया कि राजा शंभूमहादेवा ने कहा कि इन देवबच्चों को गुफा से कोई अपालमंगी, पुन्ने पानाल, संगीतकार कवडियालीर मतलब सर्वगुण सम्पन्न महान विद्वान, गुणी व्यक्ति ही इनको इस गुफा से मुक्त करवा सकता है।
                 आगे कहा कि हीरासूका ही वो महान गुणी महापुरूष थे जिनके संगीत में अद्भुत शक्ति थी, वे अपनी किकरी लेकर उस स्थान पर गये तथा उस गुफा के मुहाने पर बैठकर किकरी की ऐसी धुन बजाई कि गुफा में बंद सभी सगादेव बच्चों के शरीर में उर्जा का संचार हो गया, उन बच्चों के शरीर में किकरी के सुर की अद्भुत शक्ति से एक ऐसी उर्जा समाहित होती है कि वे गुफा के मुहाने में रखे पत्थर को ढकेल देते हैं और बाहर निकल जाते हैं लेकिन उस पत्थर में दबकर हीरासूका मुकासी की दर्दनाक मौत हो जाती हैं। इस प्रकार सभी गोंडी सगादेव बच्चे उस गुफा से मुक्त हो जाते हैं और बाद में  लिंगों उन्हें उचित शिक्षा प्रदान कर समुदाय में सामाजिक व्यवस्था बनाई। इस प्रकार हीरासूका मुकासी का इस सम्पूर्ण गोंडियन समाज के लिए अमूल्य योगदान है। 

हीरासूका मुकासी दुनियां के प्रथम संगीतकार हैं, महामानव हैं


आगे श्री कुमरे जी ने उनके संगीत के विषय में अपने विचार रखते हुए कहा कि हीरासूका मुकासी दुनियां के प्रथम संगीतकार हैं, महामानव हैं, उनके किकरी की तुलना वीणा से करते हुए बताया कि मानव के विकास में सबसे पहले पाषाणकाल आया इसके बाद ताम्रयुग फिर लोहयुग आया, इस आधार पर यदि हम किकरी के प्राचीनता की बात करते हैं तो किकरी का ताम्रयुग में अविष्कार हो चुका था जबकि वीणा लोहयुग में आया क्योंकि उसमें लोहे के तार का उपयोग किया गया।
                आगे कहा कि प्राकृतिक न्याय, प्राकृतिक समानता एवं प्राकृतिक मयार्दा अर्थात नेचुरल जस्टिस, नेचुरल इक्वालिटी एवं नेचुरल लिमिटेशन से समाज में सहिष्णुता आती है यह सिद्धांत भी हमें हीरासूका मुकासी ने दिया, इसके आधार पर प्राकृतिक समाजवाद का सिद्धांत इस महामानव ने सर्वप्रथम दुनियां को प्रदान किया । अंत में श्री कन्हैया लाल उइके को उनके जन्मदिवस की पुन: बधाई दी तथा राष्ट््रीय अध्यक्ष परधान समाज, श्री के.पी. प्रधान जी को परधान समाज को संगठित करने एवं मार्गदर्शन करने हेतु आभार व्यक्त करते हुए उनके और भी सामर्थ्यवान होने की कामना की एवं शुभकामनाएं दी ।

आदिवासियों के लिए पूस का महिना बहुत पवित्र माना जाता रहा है


कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए संगठन के सलाहकार श्री केशरी लाल भलावी ने हीरासूका मुकासी पर अपने विचार रखते हुए सर्वप्रथम उनकी जंयती पर उपस्थित सभी सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि हमें श्री के.पी. प्रधान के शोध के कारण हीरासूका मुकासी की जंयती के विषय में जानकारी हो पाई है। आगे कहा कि निश्चित ही समाज उनके शोध से लाभांवित होगा ऐसा विश्वास है।
                आगे श्री भलावी ने पूस महिने की महत्ता को बताते हुए कहा कि आदिवासियों के लिए पूस का महिना बहुत पवित्र माना जाता रहा है क्योंकि पहले हमारे सामाजिक कार्यक्रम जैसे देवाही, शादी-विवाह, सुतुकशोभनी आदि इस पवित्र माह में सम्पन्न होते थे लेकिन हमारे समाज में जानकारी का आभाव होने के कारण इस महिना को पवित्र नही माना जाने लगा तथा दूसरे धर्म का अनुसरण करते हुए हम इस पवित्र महिने की महत्ता को भूल गये।
                अंत में श्री भलावी ने समाज को सशक्त और संगठित बनाने हेतु सभी सदस्यों से आग्रह किया तथा खासतौर पर युवाओं को संगठन में आगे आने की अपील की और कहा कि सगठन में और विस्तार करने की आवश्यकता है तथा प्रत्येक सदस्य को ईमानदारी के साथ काम करने की जरूरत है ताकि समाज उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सके। 

हीरासूका मुकासी दुनियां में प्रथम संगीतकार हैं जिन्होंने तीन तारा किकरी की रचना की


कार्यक्रम में बतौर अगले वक्ता श्री कन्हैया लाल उइके अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें बहुत खुशी हो रही है कि हम हीरासूका मुकासी की जंयती मना रहे हैं तो निश्चित रूप से उनके विषय में जानना आवश्यक है। आगे कहा कि श्री कुमरे एवं श्री भलावी ने उनके विषय में बहुत कुछ बातें हमें बता चुके हैं लेकिन उसमें कुछ बातें और जोड़ना आवश्यक हैं।
        श्री उइके ने कहा कि हीरासूका मुकासी दुनियां में प्रथम संगीतकार हैं जिन्होंने तीन तारा किकरी की रचना की तथा प्रकृति को आधार मानते हुए मनुष्य की तीन अवस्थाओं के अनुसार ही किकरी के तीन सुरों की रचना की। आगे कहा कि उनके संगीत में अद्भुत शक्ति संचारित होती थी जिससे वे पशु-पक्षियों, जीवों से वे संवाद स्थापित कर लेते थे, उनके संगीत के सुर से पेड़-पौधे एवं वनस्पति औषधीयुक्त प्राणवायु हवा में प्रवाहित करने लगते थे जिससे बांझ वनस्पति जिनमें फल व फूल नही आते थे वे फलने-फूलने लगते थे, यहां तक कि बांझ स्त्री की कोख की गड़बड़ी ठीक हो जाती थी, उनके संगीत से ऐसी सकारात्मक उर्जा निकलती थी।

पारीकुपार लिंगों ने सुर्वयमोदी हीरासूका मुकासी को अपना गुरू माना

आगे श्री उइके ने कहा कि वे दुनियां को कोकविद्या जैसी विधा प्रदान की, उन्होंने ही पारीकुपार लिंगों को संगीत की शिक्षा के साथ प्रकृति के सापेक्ष चलने का ज्ञान दिया एवं प्रकृति में जीव-निर्जीव सभी से संवाद स्थापित करने का महान ज्ञान प्रदान किया इसके अलावा कई तरह की शिक्षा ग्रहण कर पारीकुपार लिंगों ने सुर्वयमोदी हीरासूका मुकासी को अपना गुरू माना ।
            आगे श्री उइके ने गोंडी सगादेव बच्चों की चर्चा करते हुए उनकी माता कली से कंकाली एवं कलंकिनी कैसे बनी ? शंभूशेख ने इन देवबच्चों को गुफा में क्यों बंद किया? लिंगों को परीक्षा क्यों देनी पड़ी ? समाज के लिए लिंगों का योगदान, लिंगो को अपना शिष्य बनाया आदि बातें बताते हुए माता जंगों रायतार के विषय में कहा कि इनका असली नाम गांगो है तथा इनका नाम जंगो रायतार कैसे हुआ ? उनके संघर्ष के विषय में बताया। 

सर्वप्रथम गोंदोला ते जंगोम कीत अर्थात समुदाय में क्रांति की 

आगे गांगों के विषय पर संक्षिप्त में बताते हुए कहा कि गांगो ने समाज की विधवा, परित्यक्ता महिलाएं, बिन ब्याही कुंवारी माताएं, समाज से अपमानित एवं बहिष्कृत महिलाएं एवं कन्यायें तथा अनाथ, बेसहारा, कालल, मुरहटल बच्चे जिनका परवरिश करने वाला कोई न हो ऐसे महिला एवं बच्चों को करीताना रोन या मायनारोन अर्थात गोटुल, शिक्षा का केन्द्र या आश्रम बनाकर उनके लिए उचित शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास उपलब्ध करवाकर हजारों साल पहले समाज में जंगोम कर दी अर्थात क्रांति पैदा कर दी, यही कारण है कि गांगो का नाम जंगो पड़ा, वह एक विदुषी विधवा महिला थी जिन्होंने हजारों साल पहले हमारी लाचार, बेसहारा, विधवा, परित्यक्ता, बिन ब्याही कुंवारी मॉ, अनाथ बच्चे, लवारिस बच्चे आदि जो समाज से बहिष्कृत या प्रताड़ितों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास एवं भोजन की व्यवस्था की तथा गोटुल शिक्षा के केन्द्र, करीताना रोन, मॉयनारोन, आश्रम आदि बनाकर सर्वप्रथम गोंदोला ते जंगोम कीत अर्थात समुदाय में क्रांति की । 

उन्होंने अपने जीवन को समुदाय के लिए न्यौछावर किया

आगे श्री उइके ने गोंडियन फिलॉसफी पर अपनी बातें कहीं तथा कहा कि हीरासूका मुकासी भली-भांति जानते थे कि सगा देवबच्चों को मुक्ति मतलब उनके जीवन का अंत है लेकिन वे अपने समुदाय की एकता के लिए, समुदाय में सामाजिक सुबीता हो इसके लिए, गोंडियन  समुदाय के विस्तार एवं विकास के लिए उन्होंने अपने जीवन को समुदाय के लिए न्यौछावर किया।
            वे इस संसार के प्रथम बलिदानी हैं जिन्होंने अपने समुदाय, समाज एवं कौम के लिए मृत्यु तक को स्वीकार किया। अंत में कहा कि ऐसे महामानव कई सहत्राब्दियों में एकाध बार जन्म लेते हैं इस कारण समाज को इनके बारे में जानकारी नही होती । उनके इस महान बलिदान से हमें अपने जीवन में प्रेरणा लेना चाहिए।   

महामानव हीरासूका के बलिदान और शहादत के विषय में समाज के प्रत्येक नागरिक को मालूम होना चाहिए

कार्यक्रम के अंत में संगठन के अध्यक्ष श्री प्रहलाद सिंह धुर्वे ने इस जंयती के अवसर पर उपस्थित सभी सदस्यों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि हमारे समुदाय के महामानव हीरासूका का बलिदान हमारे समाज को संगठित एवं एकजुट करने के साथ ही समाज के विकास एवं उन्नति लिए कार्य करने की प्रेरणा एवं उर्जा प्रदान करता है, निश्चित रूप से महामानव हीरासूका के बलिदान और शहादत के विषय में समाज के प्रत्येक नागरिक को मालूम होना चाहिए जिससे समाज के हर व्यक्ति के मन में समाज के निर्माण एवं विकास हेतु भावना जागृत हो सके। आगे श्री धुर्वे ने कहा कि हमें संगठन को और मजबूती प्रदान करना है तथा आगामी समय में हीरासूका लिंगो की जंयती को बड़े स्तर पर मनाना है। उपस्थित सभी सदस्यों का आभार प्रदर्शन करते हुए पुन: सभी को हीरासूका की जंयती एवं नये वर्ष की बधाई एवं शुभकामनाऐं देते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।

प्रमुख रूप से ये रहे मौजूद

कार्यक्रम के दौरान श्री कन्हैयालाल उइके जी का जन्मदिन सभी सदस्यो के द्वारा मनाया गया इसके अलावा इस अवसर पर श्री प्रहलाद सिंह धुर्वे, अध्यक्ष परधान समाज का हायर सेकण्डरी स्कूल, लखनवाड़ा सिवनी, मप्र के प्राचार्य बनने पर सभी सदस्यो के द्वारा फूलमाला पहनाकर सम्मानित किया गया तथा बधाई दी गई। कार्यक्रम का सुचारू रूप से संचालन श्री नंदकिशोर इनवाती के द्वारा किया गया। उपस्थित सदस्यों में मुख्य रूप से श्री बी.एल. कुमरे, श्री केशरीलाल भलावी, श्री प्रहलाद सिंह धुर्वे, श्री कन्हैया लाल उइके, श्री गेंदलाल कुमरे, श्री संतोष मर्सकोले, श्री नंदकिशोर इनवाती, श्री सुनील परते, मीडिया प्रभारी श्री मोरेश्वर तुमराम, श्री तेकाम  पुजारी एवं श्री  राजकुमार भलावी के अलावा अन्य गणमान्य नागरिक एवं बच्चों की गरिमामयी उपस्थिति रही । 

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