महान क्रांतिकारी राजा भभूतसिंह कोरकू आज भी हमारे जनजातीय लोकगीतों, लोकभजनों में विद्यमान हैं
1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने आदिवासी कोरकू राजा भभूतसिंह के चित्र का विमोचन
पचमढ़ी/होशंगाबाद। गोंडवाना समय।
1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला वीर सपूत सतपुड़ा के माटी पुत्र आदिवासी कोरकू राजा भभूत सिंह का चित्र 167 वर्षों के बाद पचमढ़ी के जय स्तंभ चौक कोरकू समाज के गुरूगाथा देव स्थान से विमोचन किया गया।
इस मौके पर युवाशक्ति कोरकू समाज मध्यप्रदेश संस्थापक श्री दिलीप बनदर्शमा, प्रदेश संयोजक प्रकाश बोसम, श्री अर्जुनसिंह दर्शमा, शिवलाल बेठे, फागराम शीलू, श्री जय सिंह दर्शिमा, पूर्व सदस्य श्री शंकर काजले, धर्म सिंह उइके, श्री राकेश दर्शिमा, बाबूलाल भोपा, रोहित काजले, लखन कलमें, हेमराज सीलू, लक्षमण बैठे, एन. के धुर्वे (अध्यक्ष सर्व आदिवासी समाज पचमढ़ी), नंदकिशोर उइके, सुशील कुमार भलावी की मुख्य उपस्थिति में नर्मदापुरम और जिला छिन्दवाड़ा के मवासी/कोरकू समाज एवं सर्वआदिवासी समाज संगठन के सामाजिक कार्यकर्ता वरिष्ठ पदाधिकारी, राज भभूत सिंह समिति पचमढ़ी के प्रमुख की उपस्थिति में विधि विधान से गुरूगाथा देव पूजन पश्चात राजा भभूतसिंह कोरकू अमर रहे के जयघोष के साथ चित्र अनावरण किया गया।
आदिवासी कोरकू राजा ने तात्या टोपे और उनके सैनिकों को शरण दी
सभा संबोधित करते हुए राजा भभूतसिंह के स्केच पेंटिंग तैयार करने वाले युवाशक्ति प्रमुख श्री दिलीप बनदर्शमा ने कहा कि प्राचीन समय में मध्य भारत के अवंतिका महाजनपद के अंतर्गत मालवा क्षेत्र के सतपुड़ा पर्वतमाला, महादेव पहाड़ियॉ, नर्मदा घाटी और ताप्ती नदी के आसपास के क्षेत्रों में कोरकू आदिवासियों का एकछत्र राज्य चलता था, जो लगभग 18 वीं सदी तक चलता रहा। विंध्याचल पर्वत श्रेणी के अंतर्गत नर्मदा घाटी ताप्ती नदी सतपुड़ा पर्वतमाला में बसे महादेव पहाड़ियां और उज्जैनी क्षेत्र देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ और उनके अनुयायियों उनके भक्तों की तपस्थली रही है।
बड़े बुजुर्गों के अनुसार कोरकू आदिवासी भगवान भोलेनाथ को अपना आराध्य और कुल देवता के रूप में पूजते है। कहां जाता है कोरकु समुदाय भोलेनाथ के गण और इस क्षेत्र में निवास करने वाले तपस्विओ के वंशज हो सकते हैं। अंग्रेज शासनकाल के दौरान 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश के महान वीरों ने क्रांति का बिगुल बजाया। उन वीरों में तात्या टोपे एक ऐसा नायक था जो अंग्रेजों से मात खाने के बावजूद क्रांति के ध्वज को झुकने नहीं दिया और संघर्ष करते रहे।
अक्टूबर 1858 के अंत में लगभग 2500 सैनिकों के साथ होशंगाबाद नरसिंहपुर के बीच फतेहपुर के निकट सरैया घाट से नर्मदा नदी को पार किया। उस समय सतपुड़ा पर्वतमाला के पचमढ़ी और महादेव पहाड़ी के आसपास कोरकु आदिवासी आराम से गुजर-बसर करते थे। एक कोरकू आदिवासी इनका राजा हुआ करता था, जिसका नाम था राजा भभूतसिंह कोरकू था।
राजा भभूतसिंह का शासन पचमढ़ी, हरार्कोट, पातालकोट तामिया, हरियागढ़, बोरी, मढ़ई, केसला और बैतूल व हरदा तक डंका बजता था। निडर और साहसी जागीरदार राजा भभूतसिंह के बारे के बारे में कहां जाता है कि राजा भभूतसिंह सिद्ध पुरुष थे तंत्र-मंत्र की बहुत जानकारी रखते थे। आदिवासी कोरकू राजा ने तात्या टोपे और उनके सैनिकों को शरण दी। यह बात होशंगाबाद में ब्रिटिश सेना के कप्तान जेम्स फोर्सिथ को नागवार गुजरी।
भभूत सिंह और सहयोगी हुल्ली भोई के साथ अंग्रेजों की मुठभेड़ देनवा घाटी में हुई
कहां जाता है अंग्रेजों की नजर पचमढ़ी क्षेत्र में मौजूद जड़ी-बूटी प्राकृतिक वन संपदा के साथ भभूत सिंह के पास मौजूद हीरे जवाहरात और पारस मणि पर थी। अंग्रेज कप्तान ने फतेहपुर के नवाब आदिल मोहम्मद खान को लालच देकर राजा भभूतसिंह से तात्या टोपे और सैनिकों को उन्हें सौंपने हेतु बातचीत के लिए भेजा किंतु आदिवासी जागीरदार अंग्रेजों के समक्ष झुकने के लिए तैयार नहीं हुआ।
चतुर राजा भभूत सिंह ने महादेव पहाड़ी के गुफाओं के रास्ते से तात्या टोपे और उसकी सेना को हरियागढ़ बोरदई के रास्ते मुलताई क्षेत्र में रवाना कर दिया। जुलाई 1859 में राजा भभूत सिंह ने खुला विद्रोह कर दिया। बौखलाए अंग्रेजों ने मिलिट्री पुलिस और मद्रास इन्फेंट्री को भेजा। भभूत सिंह और सहयोगी हुल्ली भोई के साथ अंग्रेजों की मुठभेड़ देनवा घाटी में हुई। बताया जाता है लगभग 6 माह तक यह लड़ाई चली।
राजा भभूत सिंह ने इच्छा मृत्यु प्राप्त कर लिया था
महादेव का भक्त राजा भभूत सिंह सहासी और निडर होने के साथ-साथ अत्यंत चतुर भी थे। वह मंत्रों और जड़ी बूटियों की जानकारी रखता थे। पचमढ़ी क्षेत्र के बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि राजा अपनी बाजुओ के अंदरूनी हिस्से में अभिमंत्रित बूटी रखता थे, बुजुर्गों से प्राप्त जानकारी के आधार पर बांस का बांदा जो कभी मिलता नहीं है और मिलता है तो वह बड़े काम की चीज होती है। तांत्रिक लोग ऐसी बूटियों को अभिमंत्रित करते हैं सिद्ध करने के पश्चात उनमें शक्तियां आ जाती है।
राजा भभूतसिंह ने बूटी को अभिमंत्रित करके अपने शरीर के अंदरूनी हिस्से में जड़ लिया था। इस कारण लोहे के अस्त्र-शस्त्रों का राजा के शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। एक तरह से राजा भभूत सिंह ने इच्छा मृत्यु प्राप्त कर लिया था अर्थात राजा की मृत्यु केवल हरे बांस की लकड़ी मारने से ही हो सकती थी यह रहस्य राजा के अलावा उसका एक खास मित्र जानता था ऐसा बड़े बुजुर्गों के द्वारा बताए जाता हैं।
वीर राजा भभूत सिंह का जीवन चमत्कारिक तिलिस्म से भरा था। चिरौठा के दानों को मंत्रों से अभिमंत्रित करके अपने दुश्मनों को परास्त करने के लिए युद्ध के दौरान मधुमख्यिों के रूप में अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल करते थे। इसलिए अंग्रेज राजा को हराने में सक्षम नहीं थे। तमाम कोशिशों के बावजूद भी अंग्रेज राजा को पकड़ने में सक्षम नहीं थे।
भगवान भोलेनाथ की चढ़ोत्री भभूतसिंह के खजाने में ही रखा जाता था
भभूत सिंह का इतिहास खोजने के दौरान एक किस्सा हमें सुनाया गया। राजा भभूतसिंह का एक वफादार कुत्ता हुआ करता था, निराश अंग्रेजों ने उस कुत्ते को निशाना बनाया। कुत्ते को पकड़कर कुत्ते के गले में राख की एक थैली बांध कर उसमें छेद किया और कुत्ते को छोड़ दिया गया। गिरते हुए राख का पीछा करते-करते अंग्रेज गुफा के अंदर पहुंच गए जहां राजा भभूतसिंह आराम फरमा रहा था।
अंग्रेजों ने चारों तरफ से घेरकर राजा पर आक्रमण कर दिया। इतनी सेनाओं के बावजूद भी अंग्रेज राजा भभूतसिंह का कुछ नहीं उखाड़ पाए और वहां पर भी अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी। कहा जाता है राजा भभूतसिंह अंग्रेज सैनिकों को गेंद की तरह उछाल दिया करता था। सत्य है जड़ी-बूटी में दिव्य शक्ति होती है। ऐसे ही एक किस्सा फिर हमें सुनाया गया।
बुजुर्गों के द्वारा कहा जाता है कि राजा भभूतसिंह की मुंह बोली बहन मोहगांव पंचायत के खारी गांव में रहती थी। राखी के त्यौहार में भभूतसिंह हर साल राखी बंधवाने के लिए खारी गांव में जाया करते थे। कहां जाता है राजा भभूतसिंह सिद्ध पुरुष के साथ-साथ बेशुमार कीमती हीरे जवाहरात के मालिक भी हुआ करते थे। क्योंकि भगवान भोलेनाथ का दिव्य चौरागढ़ धाम तीर्थ स्थल पचमढ़ी क्षेत्र में ही है। धर्मं में आस्था रखने वाले साधू संत और भक्तजन के द्वारा भगवान भोलेनाथ की चढ़ोत्री भभूतसिंह के खजाने में ही रखा जाता था। इसलिए आसपास के जागीरदार, अंग्रेज और मुगल शासक राजा भभूतसिंह से ईर्ष्या रखते थे।
भभूतसिंह को अंग्रेजों की कैद में खूब शारीरिक यातनाएं दी गई
भभूतसिंह राखी बंधवाने के लिए खारी गांव में पहुंचे तो भभूतसिंह से ईर्ष्या रखने वाले लोगों ने अंग्रेजों को इसकी गुप्त सूचना दे दी। इसी के चलते लोगों ने राखी के त्यौहार में भभूतसिंह को अंग्रेजों के हाथ पकड़वा दिया। कशमकश भयंकर लड़ाई होने के बाद भी भभूतसिंह अंग्रेजों के वश में नहीं आ रहा था । लोग कहते हैं राजा का एक वफादार साथी पहले ही अंग्रेजों से मिला हुआ था, जो भभूतसिंह के सारे राज जानता था, जिसकी गद्दारी के चलते भभूतसिंह को जंजीरों से जकड़कर जमानेभर की यातनाएं दी।
भभूतसिंह से धन दौलत का राज उगलवाने के लिए तमाम कोशिशें की गई,जो काम ना आया। भभूतसिंह को अंग्रेजों की कैद में खूब शारीरिक यातनाएं दी गई। फिर भी महान क्रांतिकारी भभूतसिंह का बाल बांका तक ना हो सका। सभी अंग्रेज अंग्रेज सोच में पड़ गए कि यह कैसा शख्स है जिसे ना बंदूक से मारा जाता है ना तलवार से मारा जाता है ना ही किसी मार का असर इसके शरीर पर होता है। तब उन्होंने सोचा कि इसे अन्न जल से वंचित किया जाए और अन्नजल से भी वंचित रखा। इंसान सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है किंतु अन्न और जल का ना मिलना परेशानी का सबब बन जाता है।
इस कारण भभूतसिंह ने सोच लिया कि अब यह लोग मुझे छोड़ने वाले नहीं है। अन्न-जल के अभाव में धीरे-धीरे शरीर कमजोर होने लगा। राजा भभूतसिंह की व्याकुलता बढ़ती गई किंतु महाभारत के भीष्म पितामह की तरह विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहें। पचमढ़ी क्षेत्र के आसपास भ्रमण के दौरान बुजुर्ग लोगों से जानकारी प्राप्त हुई है कि राजा भभूतसिंह के बल का रहस्य उसका एक वफादार मित्र जानता था, उसी मित्र की धोखेबाजी के कारण राजा भभूतसिंह शहीद हुए ऐसी जानकारी हमें मिली। राजा भभूतसिंह कैसे शहीद हुए इस मामले में कुछ कह पाना कठिन है।
1857 की क्रांति की लौ को जीवित रखने के जुर्म में अंग्रेजों का गुस्सा कोरकू समुदाय पर टूट पड़ा
राजा भभूतसिंह ऐसा वीर पुरूष था जिससे आसपास के सभी जागीरदार डरते थे। भभूतसिंह की वजह से अंग्रेजो को भारी क्षति हुई थी, इस वजह से अंग्रेजों ने राजा से संबंधित सभी निशानियों को ध्वस्त कर दिया था और 1857 की क्रांति की लौ को जीवित रखने के जुर्म में अंग्रेजों का गुस्सा कोरकू समुदाय पर टूट पड़ा। राजा भभूत सिंह के शहीद होते ही कोरकूओं को ढूंढ ढूंढकर मारा जाने लगा।
अपने राजा के शहीद होते ही उसकी प्रजा में हाहाकार मच गया। मैदानी क्षेत्रों से कोरकू समुदाय के लोग पहाड़ों में शरण लिए, कुछ आसपास के गोंड जागीरदारों के पास शरण लिए और कुछ लोग तात्या टोपे के पीछे पीछे महाराष्ट्र पहुंच गए। जिन्होंने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण किया वह लोग गुलाम बन गए और जो डर के मारे आसपास के क्षेत्र में शरण लिए वह अपनी पहचान छिपाकर रहने लगे। परिणाम आज भी आजाद भारत में और कोरकू समुदाय के लोग अपनी मूल पहचान को छुपाए हुए हैं। कोरकू समुदाय के गोत्र उपनाम/सरनेम क्षेत्रों के आधार पर बदल गये हैं।
राजा भभूतसिंह के शहीद होने के बाद 1862 में उनका राज्य वनक्षेत्र वन विभाग को दे दिया गया
राजा भभूतसिंह के शहीद होने के बाद 1862 में उनका राज्य वनक्षेत्र वन विभाग को दे दिया गया। यह भारत के इतिहास में पहला वन्य क्षेत्र था, जो किसी आदिवासी की शहादत के बाद अंग्रेजों द्वारा कब्जे में लिया गया था। आज भी राजा भभूतसिंह का गार्डन देनवा नदी के तट पर मौजूद है। भभूतकुण्ड के नाम से मशहूर एक कुआँ जिसमें बारहमासी पानी ऊपर ही भरा रहता है देखने को मिलता है।
राजा भभूतसिंह कोरकू के हाथों से बने हुए पत्थर के त्रिशूल चौरागढ़ में चढ़ाए हुए हैं। पचमढी के बीच में आम के वृक्ष के नीचे अपने पितरों की याद में प्राचीन समय से ही पंचकोण पाटिया में सुंदर कलाकृतियों के साथ गुरूगाता देवस्थान है। जंगलों के पहाड़ी क्षेत्र अंग्रेजों के कुछ काम के नहीं थे,अंग्रेज छावनी मैदानी इलाकों में अपने आधुनिक उपकरणों और हथियारों के साथ आराम करती थी।
क्रांतिकारी राजा भभूतसिंह कोरकू को गुमनामी की अंधेरे से बाहर लाकर नई पहचान दी गई
कोरकू समाज के लोगों ने अपने वीर योद्धा की यादों को लोकगीत के माध्यम से संजोए रखा है। महान क्रांतिकारी राजा भभूतसिंह कोरकू आज भी हमारे जनजातीय लोकगीतों, लोकभजनों में विद्यमान हैं, न केवल कोरकू मवासी आदिवासी समाज अपित सम्पूर्ण महादेव पहाड़ी क्षेत्र का सम्पूर्ण आदिवासी समाज उनके जीवन से देश प्रेम की प्रेरणा लेता आ रहा है और लोकगीत गाते आ रहा है।
संयोजक श्री प्रकाश बोसम ने बताया बुजुर्गों से सुनी इसी कहानी के आधार पर युवाशक्ति कोरकू समाज मध्यप्रदेश के कार्यकतार्ओं ने दिन-रात एक कर भविष्य की आने वाली नवयुवा पीढ़ी को जागरूक करने के लिए स्केच पेंटिंग तैयार करके नर्मदापुरम् और जिला छिन्दवाडा के वरिष्ठ बुजुर्गों से अप्रूवल के पश्चात चित्र विमोचन कार्यक्रम के माध्यम से क्रांतिकारी राजा भभूतसिंह कोरकू को गुमनामी की अंधेरे से बाहर लाकर नई पहचान दी गई।