बड़वानी जिले के मटली में होने वाले सरकारी तीन दिवसीय इंदल महोत्सव का विरोध, ग्राम सभा ने दिखाया असली पावर
कथित प्रथम इंदल मूर्ति स्थापना का आदिवासी संगठनो ने 2011 से किया है विरोध
क्योंकि इंदल मूर्ति की अवधारणा हैं ही नहीं, आदिवासी सिर्फ प्रकृति पूजक है
सरकार से 11 साल की लंबी लड़ाई के बाद अब आदिवासियों ने पारंपरिक ग्राम सभा का दिखाया पॉवर
बड़वानी जिले का ग्राम मटली अब प्रदेश भर में सुर्खियां बटोर रहा है क्योंकि कई वर्षो से विवादित मुद्दा कथित इंदल पूजन पद्धति और इंदल पूर्ति स्थापना के संबंध में हाल ही में ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित हुआ है क्योंकि गांव में जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा प्रतिवर्ष 23 से 25 दिसंबर तक तीन दिवसीय इंदल महोत्सव मनाया जाता है। जिसका संबंधित विभाग द्वारा बजट भी तय कर लिया है।
मगर हाल ही में 15 नवंबर 2022 को पेसा एक्ट लागू होने के बाद ग्राम सभा ने प्रस्ताव पारित कर इस प्रत्येक वर्ष आयोजन को नहीं मानने का निर्णय लिया, जिसे जनपद सीईओ कापी सोपकर अवगत भीं कराया गया है। शासन स्तर पर कई बार ज्ञापन देकर जानकारी भी दी जा चुकी है।
प्रदेश सरकार मना रही हर वर्ष इंदल उत्सव, जबकि यह प्रकृति पूजन पद्धति के विरूद्ध है
प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा विगत 2011 से कथित इंदल पूजन और विवादित मूर्ति स्थापना को लेकर आदिवासी संगठनों द्वारा विरोध के बाद भी प्रतिवर्ष ग्राम मटली में इंदल देव की पूजा का आयोजन कर रही है। इसी क्रम में 23 से 25 दिसंबर तक मटली में विभिन्न सरकारी स्तर पर कार्यक्रमों के आयोजन किए गए है।
वहीं आदिवासियों के चर्चित संगठन जयस के अजय कन्नोजे ने बताया कि सरकार द्वारा आयोजित प्रत्येक वर्ष कथित तीन दिवसीय इंदल उत्सव का मटली में आयोजन आदिवासियों की प्राकृतिक पूजन पद्धति के विरूद्ध है। वर्ष 2011 से 2022 तक लगातार स्थानीय आदिवासियों व समस्त आदिवासी संगठनों ने बड़े पैमाने इसका विरोध किया है।
आदिवासियों का इंदल 5 वर्ष या 7 वर्ष से अधिक वर्ष में मन्नत के लिए पारंपरिक पूजन स्वरूप होता है। कथित यह आयोजन आदिवासियों की भावनाओं के खिलाफ होकर आदिवासी मूल संस्कृति पर अप्रत्यक्ष रूप प्रहार है। शिवराज सरकार आदिवासियों से वोट बैंक की राजनीति कर रही है, जो आदिवासियो मूल संस्कृति से छेड़खानी करेगा।
कथित इंदल मूर्ति स्थापित करने पर भी आदिवासी संगठनो ने किया था विरोध
आदिवासी मुक्ति संगठन, जयस तथा समस्त आदिवासी संगठनों ने 10 से अधिक वर्षों (2011 से 2022) से लगातार विरोध किया है। इंद्र मूर्ति जिसे सरकार द्वारा कथित इंदल दिखाया गया था, जिसका पूरे देश के आदिवासियों ने विरोध दर्ज कराया था क्योंकि इंदल की मूर्ति की कोई अवधारणा नहीं है। उनका कहना है कि इंदल देव की पूजा हर वर्ष नहीं की जाती है जबकि आदिवासी समाज के द्वारा 5 वर्ष, 7 वर्ष के अंतराल में मन्नत पूरी होने पर की जाती है, प्रकृति की पूजा की जाती है।
सरकार हठधर्मिता पूर्वक आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक पुजन पद्धति के विपरीत इंदल उत्सव कार्यक्रम हर साल कर रही है। बड़वानी जिले के राजपुर तहसील के ग्राम मटली में कथित इंदल मूर्ति सरकार द्धारा लगाई गई है, जिसे आदिवासियों ने कहा, यह आदिवासियों को प्राकृतिक इंदल पूजन पद्धति को हिंदूकरण करने का असफल प्रयास है, मूर्ति आदिवासी संस्कृति के विरुद्ध है।
क्या है आदिवासियों का इंदल ?
आदिवासी अपने समाज व सुख समृद्धि की कामना से अनेक धार्मिक अनुष्ठान करते है। सामान्यत: जंगल में निवास करने वाली आदिवासी प्रकृति की उपासक रही है। इसी क्रम में निमाड़ क्षेत्र के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में ग्रामीणों की मनोकामना पूर्ण होने पर अर्थात मन्नत पूरी होने के उपरांत प्राकृतिक इंदल पुजन किया जाता है। इंदल शब्द का प्रयोग स्वयं घटना के साथ-साथ प्रकृति या कुदरत के लिए भी किया जाता है।
इंदल या तो एक परिवार या पूरे गांव ( घरेलू इंदल और गांव इंदल ) द्वारा मनाया जा सकता है। संकट में पड़ा एक व्यक्ति त्योहार की पेशकश कर सकता है यदि उनकी समस्याओं का समाधान हो गया हो या एक गांव शांति, समृद्धि और सद्भाव के समय की प्रतीक्षा कर सकता है और एक बार जब यह पूरा हो जाए, तो उत्सव शुरू करें। यह किसी गांव में 5 वर्ष, 7 वर्ष, 9 वर्ष के अंतराल में हो सकता है। पूरे गांव या पड़ोस को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
कलम (कदम्ब) और साल (सागौन) के स्तंभों के साथ-साथ अनाज की प्रकृति पूजा शामिल है
पूजारा उन प्रार्थनाओं (मान) का नेतृत्व करते हैं जिनमें कलम (कदम्ब) और साल (सागौन) के स्तंभों के साथ-साथ अनाज की प्रकृति पूजा शामिल है। ऐसे कई गीत भी हैं जो इंदल उत्सव के उत्सव के भाग के रूप में रात भर गाए जाते हैं। उनमें से एक घोषणा करता है कि 'इंदल बकरे के मांस का भूखा है'। जैसे दीवाली या होली के संदर्भ में जहां पूरे समुदाय में भोजन और मटन बांटना परंपरा का हिस्सा है। कोई निश्चित तारीख या बाध्यता नहीं है कि हर गांव को ऐसा करने की जरूरत है।
एक मूर्ति (मूर्ति) या एक स्थापना की कोई अवधारणा नहीं है जिसकी पूजा की जाती है। मंदिर जैसी कोई निश्चित संरचना या स्थान नहीं है जहां पूजा की जाती है। यह किसी भी व्यक्ति के घर या उससे सटे खेत में किया जा सकता है। इंदल के लिए समारोह या पूजा तभी की जाती है जब किसी की मन्नत हो तृप्त किया गया है। यह इच्छाओं या ' मन्नत ' को पूरा करने के लिए भगवान को दी जाने वाली वापसी या भेंट है।
यदि मन्नत पूरी नहीं हुई है और फसल भरपूर नहीं है तो वह व्यक्ति या गाँव भेंट चढ़ाने में देर करता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे समय-समय पर/बार-बार याद और उसके आसपास की घटनाओं के साथ होली या दिवाली आदि के संदर्भ में एक त्योहार कहा जा सकता है।