आदिवासी के देवस्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज कराने के अपने आदेश को आज तक पूरा नहीं करा पाये मुख्यमंत्री
गोंडी भाषा को राज भाषा का दर्जा सहित आदिवासियों के लिये की गई शिवराज सिंह चौहान की अनेकों घोषणाएं आज भी है अधूरी
सर्वाधिक आदिवासी बाहुल्य जनसंख्या वाला मध्यप्रदेश में झूठी घोषणाएं कर वाहवाही लूट रही शिवराज सरकार
सिवनी। गोंडवाना समय।
भारत में सर्वाधिक आदिवासी बाहुल्य जनसंख्या वाला मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में आदिवासी के देवस्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज करने को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय म प्र मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल के द्वारा पत्र क्रमांक/278/सीएमएच/एसएचआर/13 भोपाल दिनांक 4 अप्रैल 2013 को सिवनी जिला प्रशासन को पत्र लिखा गया था।
इस संदर्भ में कार्यालय अधीक्षक भू अभिलेख जिला सिवनी के द्वारा सिवनी जिले के समस्त अनुविभागीय अधिकारी राजस्व, की ओर पत्र भेजा गया था, जिसमें उल्लेख किया गया था कि आदिवासियों के देवस्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज कराने हेतु मुख्यमंत्री कार्यालय मध्यप्रदेश मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल का मूल पत्र की छायाप्रति संलग्न कर भेजी जा रही है नियमानुसार राजस्व रिकार्ड में दर्ज कराया जाकर की गई कार्यवाही से कार्यालय को पालन प्रतिवेदन भेजा जावे ताकि वांछित जानकारी से शासन एवं वरिष्ठ को अवगत करायी जा सके।
आदिवासियों के देवस्थलों को राजस्व रिकार्ड मेंं दर्ज कराने जाने को लेकर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लगभग 9 वर्ष पूर्ण होने की ओर अग्रसर है लेकिन सिवनी जिले में संभवतय: एक भी आदिवासी देव स्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज नहीं कराया गया है।
आदिवासियों की आस्था, विश्वास, संस्कृति पर किया जा रहा कुठाराघात
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों के उत्थान, कल्याण, विकास के लिये अनेकों योजनाएं क्रियान्वित भी कर रहे है एवं घोषणाओं का सिलसिला भी उनका जारी है लेकिन जहां उनके द्वारा लिखे गये पत्र कि आदिवासियों के देवस्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज किया जाये इसको लेकर उनके सत्ता रहने के बावजूद भी अफसर तव्वजों नहीं दे रहे है वरन मुख्यमंत्री के दिशा निर्देशों को अंगूठा दिखाने का काम कर रहे है। इसके पीछे क्या कारण है कहीं ऐसा तो नहीं है भारतीय जनता पार्टी की सरकार एवं स्वयं मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान नहीं चाहते है कि आदिवासियों के देवस्थलों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज किया जावे। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी, मुख्यमंत्री, अफसरों का क्या विचार मंथन है ये तो वे ही जाने लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आदिवासियों की आस्था, विश्वास, संस्कृति पर जरूर कुठाराघात किया जा रहा है।
आदिवासी की धर्म, संस्कृति, रीति रिवाज, परंपरा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है
मध्यप्रदेश में आदिवासी समाजिक संगठनों की मांग पर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में गोंडी धर्म, संस्कृति, रीति रिवाज के आधार पर विवाह कराने के लिये दिशा निर्देश जारी किये गये है लेकिन इसके बाद भी अधिकांशतय: स्थानों पर मुख्यमंत्री कन्यादा विवाह कार्यक्रम में यह देखने में आता है कि मुस्लिम, बौद्ध सहित अन्य धर्मावलंबियों के विवाह उनके धर्म, संस्कृति, रीति रिवाज के आधार पर होता है लेकिन गोंडी धर्म संस्कृति रीति रिवाज के आधार पर नहीं किये जाते है जिससे आदिवासी की धर्म, संस्कृति, रीति रिवाज, परंपरा पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है क्योंकि आदिवासियों की पहचान ही उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज, पंरपरा से होती है। हालांकि कुछ कुछ स्थानों पर शासन प्रशासन मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में विवाह जरूर आदिवासियों के रीति रिवाज परंपरा के आधार पर कराने का प्रयास करते है लेकिन अधिकांशयतय: स्थानों पर नहीं हो पाता है।
पेसा कानून का कांग्रेस हो या भाजपा की सरकार में ईमानदारी से नहीं हो पाया क्रियान्वयन
पेसा कानून जो बीसबी शताब्दी का सबसे क्रांतिधर्मी कानून माना गया है पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996, पेसा कानून जो कि 24 दिसंबर 1996 को पारित हो चुका था एवं केंद्रीय अधिनिमय होने के कारण इसके सभी प्रावधान पूरे देश में एक वर्ष की अवधि बाद स्वत: ही पूर्ण रूप से लागू हो गये थे परंतु मध्यप्रदेश में यह कानून लागू तो हुआ परंतु उसका क्रियान्वयन ईमानदारी से नहीं हो पाया।
हम आपको बता दे कि पेसा कानून में अनुच्छेद 243 ड (4) (ख) के तहत संसद द्वारा कानून बनाते समय अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों की जो पारंपरिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, आर्थिक, विशेषताएं है उनका विशेष ध्यान रखा जावे।
पेसा कानून को लेकर कांग्रेस हो या भाजपा की सरकार दोनो का रवैय्या एक सा रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा महामानव बिरसा मुण्डा जी की जयंति के अवसर पर मध्यप्रदेश की धरती में पेसा कानून लागू हो जायेगा, यह मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा कहा गया है।
गोंडी भाषा को राज्य भाषा का दर्जा नहीं दिला पाये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा जिले के हर्रई में अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में लगभग 4 से 5 वर्ष पूर्व मैं हूं गोंडवाना का लाल कहते हुये बुलंद आवाज में कहा था कि मध्यप्रदेश में गोंडी भाषा को राज्य भाषा दर्जा दिया जायेगा। इसके लिये विधानसभा स्तर पर प्रस्ताव लाकर पारित कराया जायेगा लेकिन अधिवेशन होने के पूर्व में बकायदा आदिवासी संस्कृति पर आधारित गायन वादन पर नृत्य करते हुये आदिवासियों के संग मनमोहक प्रस्तुति भी मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा दी गई थी।
मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार व मुख्मयंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में उनके स्वयं के द्वारा गोंडी भाषा को राज्य भाषा का दर्जा दिये जाने के लिये की गई घोषणा के बाद भी वह आज भी अधूरी ही बनी हुई है इसके पीछे क्या कारण है। हम आपको बता दे कि छिंदवाड़ा जिले के हर्रई में आयोजित 12 फरवरी 2018 को अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के 13 वें सम्मेलन के समापन के मौके पर मुखयमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासी समाज के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी थी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि गोंडी भाषा को प्रदेश में राजभाषा का दर्जा मिलेगा।
जनजाति की संहिता तैयार की जायेगी, 8 वी अनुसूची में गोंडी भाषा शामिल करने प्रस्ताव भेजा जाएगा, गोंडी शब्दकोश प्रकाशित होगा, सीएम तीर्थ योजना के तहत गोंड प्रतीक का तीर्थ दर्शन होगा। उन्होंने यह भी बताया कि गोंडी भाषा में 1990 में पटवा जी ने 18 प्राथमिक गोंडी भाषा की शाला खोली बाद में बंद हो गई थी।
गोंड राजा दलपत शाह जी की प्रतिमा व अन्य कार्य अधर में लटके
सिवनी मुख्यालय में गोंड राजा दलपत शाह जी के नाम पर बने ऐतिहासिक तालाब जो कि शहर की शान है और पहचान भी है, उसके नामकरण को लेकर आदिवासी समाज के द्वारा अनेकों बार मांग की जा चुकी है। इसके साथ ही कांग्रेस की कमल नाथ सरकार के द्वारा उठाये गये मुद्दे के पश्चात दलसागर तालाब का सौंदर्यीकरण की पहल की गई थी।
दलसागर तालाब में गोंड राजा दलपत शाह जी की प्रतिमा स्थापना के लिये योजना भी बनी लेकिन आज तक न तो राजा दलपत शाह जी की प्रतिमा स्थापित हुई और न ही तालाब का नामकरण राजा दलपत शाह जी के नाम पर हो पाया है, इसके साथ ही दलसागर तालाब का सौंदर्यीकरण कार्य भी अधर में लटका हुआ है। इसके कारण आदिवासी समाज में सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर आक्रोश व्याप्त है।
गोंडी भाषा में वन्या रेडिया की घोषणा भी रह गई अधूरी
सिवनी जिले में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं उनके अन्य मंत्रियों द्वारा की गई घोषणाएं भी अधूरी तो रह गई है साथ में झूठी भी साबित हुई है। आदिम जाति कल्याण मंत्री जब कुंवर विजय शाह थे तब उनके द्वारा टुरिया जंगल सत्याग्रह में शहीद हुये आदिवासी मेला में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कहा गया था कि कुरई में गोंडी भाषा में वन्या रेडियों प्रारंभ किया जायेगा लेकिन इसे भी लगभग 10 वर्ष बीत गये है लेकिन आज भी गोंडी भाषा में वन्या रेडियों प्रांरभ नहीं हो पाया है।