भाजपा को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासियों का आंदोलन जितना उग्र व आक्रोशमय होगा उतना ही सत्ता पाना हमारे लिये आसान होगा ?
बिखरकर अपने संवधानिक अधिकारों, अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ मध्यप्रदेश में हर तरफ आंदोलन कर रहे आदिवासी संगठन
आदिवासी के हक अधिकारों के लिये कार्य करने वाले राजनैतिक व सामाजिक संगठनों का उद्देश्य आखिर क्या है ?
मध्यप्रदेश में कमल नाथ कांग्रेस की स्थिति छिंदवाड़ा को छोड़कर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कैसे करेंगे मजबूत
सिवनी। गोंडवाना समय।
आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में वर्ष 2003 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राजनैतिक आंदोलन ने जहां गोंगपा के 3 विधायक और अधिकांश सीटों पर काफी कम अंतर से गोंगपा की हार हुई थी। वहीं मध्यप्रदेश में वर्षों तक सत्ता शासन चलाने वाली कांग्रेस को उसकी जमीन दिखाकर सरकार से बेदखल कर दिया था और वहीं दूसरी ओर सत्ता पाने के लिये घसट-घसट कर वर्षों से संघर्ष कर रही भारतीय जनता पार्टी की सत्ता मध्यप्रदेश में आदिवासियों के वोट कांग्रेस से दूर होने के कारण स्थापित हो गई थी।
यदि जीजीपी नहीं होती तो बीजेपी मध्यप्रदेश में सत्ता के शिखर पर नहीं पहुंचा पाती है, अभी शायद और संघर्ष ही करते रहना पड़ता। वर्ष 2003 के बाद यही सिलसिला चलता रहा कांग्रेस से आदिवासियों का परंपरागत वोट खिसकता चला गया है वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का राजनैतिक आंदोलन में बिखराव होकर बंटता चला गया न कांगे्रस सरकार बना पाई और न ही गोंडवाना गणतंत्र पार्टी अपने विधायक जिता पाई।
आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में वर्ष 2003 के बाद आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों, अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ आंदोलन कागजों से लेकर सड़कों तक विरोध स्वरूप मुखरता के साथ अत्याधिक जनसंख्या के साथ पूरे मध्यप्रदेश में होते आ रहे है, विशेषकर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की 47 विधानसभा सीट सहित कुल 100 से अधिक सीट जहां पर आदिवासी मतदाताओं का विशेष प्रभाव चुनाव में हार जीत में निर्णायक भूमिका में होता है उन विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के लिये संघर्ष करने वाले समाजिक संगठन और राजनैतिक संगठनों के द्वारा किया जाता रहता है।
अधिकांशतय: आदिवासियों का आदंोलन सरकार, शासन, प्रशासन के खिलाफ शांतिपूर्वक तरीके से लेकर कई बार आक्रामक व उग्र स्वरूप में तक होता रहा है। भाजपाई संगठन के नेताओं व संवैधानिक पदों पर विराजमान सत्तासीन जनप्रतिनिधियों में कुछेक का अक्सर यही कहना होता है कि जितना आदिवासियों का आंदोलन और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जयस का आंदोलन तेज व मुखर होगा विपक्षी पार्टी कांग्रेस उतनी ही कमजोर होगी, उतना ही ज्यादा फायदा भाजपा को सरकार बनाने में होगा और भारतीय जनता पार्टी का सत्ता तक पहुंचने का काम आसान होगा आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है यह आदिवासियों के लिये गंभीरता से चिंतन-मंथन करने का विषय है।
कांग्रेस का खसकता गया जनाधार, भाजपा का बढ़ती गई विधानसभा सीट, गोंगपा में बढ़ता गया बिखराव
आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में यदि हम राजनैतिक परिस्थितियों को लेकर सत्ता सरकार बनाने की कवायद पर राजनैतिक दलों की स्थिति की बात करें तो कांग्रेस का जनाधार वर्ष 2003 के बाद नीचे खसकता गया इसके पीछे मुख्य कारण यह रहा कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी सहित आदिवासियों सामाजिक संगठनों का सक्रिय होकर समाज के संवैधानिक हक अधिकारों के लिये कार्य करना रहा है।
वर्ष 2003 के बाद गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 3 विधायक बनाकर 2008 के चुनाव में ही बिखरकर दो टुकड़ों में बंट गई थी नतीजा वोटों का विभाजन होकर गोंगपा बिना विधायक बनाये ही रह गई और बिखरकर बनाये गये दलों के उम्मीदवार भी अपने वोट ही गिनते रहे गये। कांग्रेस सत्ता से दूर होती चली गई और भाजपा सत्ता सरकार बनाने में सफल होती रही और यही क्रम वर्तमान में भी जारी है।
हालांकि वर्ष 2018 के चुनाव में मध्यप्रदेश में बदलाव आया वर्ष 2003 के बाद भाजपा की सरकार सत्ता के शिखर तक नहीं पहुंच पाई और कांग्रेस मध्यप्रदेश सरकार बनाने में कामयाब तो हो गई कमल नाथ मुख्यमंत्री भी लेकिन बहुमत का आंकड़ा भी बहुत मुश्किल से जुटाने वाली कांग्रेस के 28 विधायकों ने भाजपा का दामन थामकर कांग्रेस की सरकार गिरा दिया और फिर भाजपा की सरकार बनी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बन गये। आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में राजनैतिक रणनीति पर हम गंभीरता से चिंतन मंथन करें तो यही नजर आता है कि चाहे भारतीय जनता पार्टी और या कांग्रेस हो वह मध्यप्रदेश में आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिये हमेशा प्रयास करते रहते थे।
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सरकार ने आदिवासियों के शहीदों को याद करने और उनके जयंति व शहादत दिवस पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक मध्यप्रदेश की धरती में कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाकर कराया है जिसमें भाजप ने यह प्रस्तुत करने का पूरा किया है कि भारतीय जनता पार्टी आदिवासियों की हितेषी है।
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो कानून वर्ष 1996 में लगभग 25 वर्ष पहले लागू हुआ था उसे अब 25 वर्ष बाद सर्वाधिक आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में पेसा एक्ट को लागू करने का कार्य 15 नवंबर 2022 को बिरसा मुण्डा जयंति के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति जी के हाथों कराया है। पेसा एक्ट का मध्यप्रदेश के जनजातियों को कितना और कैसा लाभ मिलेगा यह तो भविष्य में पता चलेगा।
गोंगपा, जयस सहित अनेक आदिवासियों के सामाजिक संगठन का लक्ष्य आखिर क्या है ?
आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में आदिवासियों के हक अधिकार को लेकर एवं आदिवासियों के साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ में सरकार, शासन, प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने के लिये राजनैतिक संगठन के रूप में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी वर्ष 2003 से सक्रियता के साथ कार्य कर रही है।
वहीं गोंडवाना के नाम पर अन्य राजनैतिक दलों का भी उदय हुआ जो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से टूटकर या बिखरकर बने है वे भी अपनी राजनैतिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिये यहां तक सरकार में अपनी भूमिका को मजबूत बनाने के लिये प्रयासरत है। ऐसी स्थिति में बिखरकर और बंटकर कैसे आदिवासियों का विकास व भला कर पायेंगे यह गंभीर विषय है।
इसके साथ ही आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में आदिवासी सामाजिक संगठन भी अनेकों चलाये जा रहे है जो अपने आप को राजनीति से दूर तो बताते है लेकिन चुनाव के पहले उन राजनैतिक दलों को जिनकी विचारधारा दूर-दूर तक कहीं पर भी आदिवासी हितेषी नजर नहीं आती है, वे अपने मनपसंद राजनैतिक दलों को कुछ समाजिक संगठन खुलकर दिलेरी से और कुछ समाजिक संगठन चुपचाप अंदर ही अंदर चुनाव में समर्थन करते है।
वहीं आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की बात करने वाला जयस मध्यप्रदेश में दो टुकड़ों में बंटा हुआ है, जयस ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले संसद में 1 करोड़ आदिवासी के साथ घेराव करने का कार्यक्रम बनाया, मीडिया में खूब वाहवाही लूटी, दिल्ली में आंदोलन के समय गोंगपा सहित अन्य राजनैतिक दलों का समर्थन भी लिया।
इसके बाद वर्ष 2018 में 80 सीट में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करते हुये आदिवासी अधिकार रेली भी निकाली गई और जयस 1 विधानसभा सीट में अपना विधायक बनाकर अपना मिशन आगे बढ़ाते रही। इसके साथ ही विधायक बनने के साथ जयस में बिखराव हुआ बंटकर दो धड़ों में बंटकर आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों के कार्य करने लगे जो वर्तमान में भी जारी है।
आखिर में सवाल यह उठता है कि चाहे गोंडवाना गणतंत्र पार्टी हो या उससे टूटकर बिखरकर बने गोंडवाना के नाम पर राजनैतिक दलों की भूमिका व लक्ष्य क्या है, इसके साथ ही मध्यप्रदेश में आदिवासी समाज के अनेक संगठनों का उद्देश्य व लक्ष्य क्या है, वहीं जयस के दो धड़ों में बंटकर आदिवासी समाज के हित के लिये कार्य करने का मुख्य उद्देश्य व लक्ष्य क्या है ?
नतीजा एफआईआर, माननीय न्यायालय के चक्कर काटने को मजबूर तो सरकार में भागीदारी से है कोसो दूर
आदिवासी बाहुल्य मध्यप्रदेश में आदिवासियों के हित में कार्य करने वाले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और उससे बिखरकर बने दल के पदाधिकारी, आदिवासी समाज के भी अनेक संगठनों के पदाधिकारी, जयस के पदाधिकारी आदिवासी समाज के संवैधानिक हक अधिकारों सहित आदिवासियों के साथ होने वाले अन्याय, अत्याचार, शोषण के खिलाफ आवाज तो मुखर होकर उठा रहे है वहीं विरोध भी सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीके से लेकर आक्रोशित होकर भी कर रहे है।
कागजी आंदोलन के साथ धरना प्रदर्शन भी हो रहे है लेकिन नतीजा के रूप में यदि हम देखे तो अधिकांशतय: यह देखने में आ रहा है कि आदिवासी समुदाय के आंदोलन में पदाधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हो रही है, इसके बाद उन्हें माननीय न्यायालय के चक्कर काटने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है। इतनी बड़ी जनसंख्या में कार्यक्रमों व आंदोलन में आदिवासी समुदाय को एकत्र करने वाले सरकार में भागीदारी से कोसो दूर है।