आदिवासियों की जमीन भारत में बिना ग्रामसभा के अनुमति छीनी जा रही है, सयुंक्त राष्ट्र संघ इस पर रोक लगाने निर्देश जारी करें
इंजी लोकेश मुजाल्दा जयस राष्ट्रीय प्रभारी ने नागपूर में आयोजित अंतराष्ट्रीय कांफ्रेंस में भरी हुंकार
आदिवासियों के सँस्कृति, बोली, अस्तित्व, जल-जंगल-जमीन बचाने की बात संयुक्त राष्ट्र संघ में होनी चाहिए
आदिवासी कॉन्फ्रेंस में ईरान, फ्रांस, इराक, आॅस्ट्रेलिया, नेपाल सहित 8 देशों और भारत के 22 राज्यो के आदिवासी लोग हुए शामिल
नागपूर/महाराष्ट्र। गोंडवाना समय।
महाराष्ट्र नागपुर में बिरसा ब्रिगेड, आदिवासी समन्वय मंच व समस्त भारत के आदिवासियों के नेतृत्व में आयोजित अंतराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में जयस का प्रतिनिधित्व करते हुए
जयस राष्ट्रीय प्रभारी इंजी लोकेश मुजाल्दा ने संयुक्त राष्ट्र संघ से आए प्रतिनिधि फूलमन चौधरी व पूरे भारत देश के आदिवासियों के सामने अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत के संविधान में आदिवासियों को विशेष अधिकार दिए गए है। इसके बावजूद पाँचवी अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों के बगैर मंजूरी के जमीन छीनी जा रही है जिस पर रोक लगना चाहिए।
भारत का मालिक आदिवासी है
जयस का प्रतिनिधित्व करते हुए जयस राष्ट्रीय प्रभारी इंजी लोकेश मुजाल्दा ने कहा कि लुथल से लेकर राखीगढ़ी, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो तक मिले अवशेषों में आदिवासियों का डीएनए इस बात का सबूत है कि भारत का मालिक आदिवासी है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी 5 जनवरी 2011 को दिए गए निर्णय भारत में रहने वाले 8 प्रतिशत आदिवासी इस देश के मुलमालिक है उन्हें मालिक का सम्मान और हक मिलना चाहिए कहा गया है। भारत में सबसे ज्यादा बेकसूर आदिवासी जेलों में बंद है उन्हें छुड़ाना चाहिए।
पूरे देश के आदिवासी को एकता के सूत्र में बाँधना चाहिए
जयस का प्रतिनिधित्व करते हुए जयस राष्ट्रीय प्रभारी इंजी लोकेश मुजाल्दा ने आगे कहा कि आदिवासियों के सँस्कृति, बोली, अस्तित्व, जल-जंगल-जमीन बचाने की बात संयुक्त राष्ट्र संघ में होनी चाहिए। इसके साथ ही पूरे देश के आदिवासी को एकता के सूत्र में बाँधना चाहिए। इस अंतराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में संयुक्त राष्ट्र संघ एशिया का प्रतिनिधित्व करने वाले ट्राइबल फोरम के उपाध्यक्ष फुलमन चौधरी, नेपाल, ईरान से डॉ हनी मोघानी, फ्रांस से ब्रिजलाल चौधरी, आॅस्ट्रेलिया, इराक सहित भारत देश के 22 राज्यो के आदिवासी लोग अलग-अलग संगठन के लोग एकत्रित हुए।
आदिवासियों की पारंपरिक व्यवस्था व रूढ़ि प्रथा को जिंदा रखने के लिए कार्य करने की जरूरत है
बिरसा ब्रिगेड के संस्थापक सतीश पेंदाम ने आदिवासियों के अस्तिव को बचाने और उनके संरक्षण की कानूनी व्यवस्था की गाइडलाइन व आदिवासियों की पहचान आदिवासियों के रूप में होनी चाहिए। सँयुक्त राष्ट्र संघ से जारी करने कहा, झारखंड से बबिता कश्यप ने आदिवासियों की पारंपरिक व्यवस्था व रूढ़ि प्रथा को जिंदा रखने के लिए कार्य करने की जरूरत है। राजस्थान के भंवरलाल परमार ने आदिवासियों की बोली, प्राकृत बोली को बढ़ावा देने की बात कही। वहीं राजस्थान से प्रोफेसर डॉ हीरा मीणा ने आदिवासियों की सँस्कृति को बचाने की बात कही। इस सम्मेलन में जयस संस्थापक विक्रम अच्छालिया, जयस नारीशक्ति राष्ट्रीय प्रभारी श्रीमती सीमा वास्कले, असम से जयराम, राजस्थान से प्रसून, मांगीलाल निनामा मणिपुर, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, मिजोरम सहित अनेको राज्यो के आदिवासी समुदाय के लोग एकत्रित हुए।