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गोण्डवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम ने अपने खून से गोंडवाना आंदोलन को सींचा है

गोण्डवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम ने अपने खून से गोंडवाना आंदोलन को सींचा है

गोड, गोंडी, गोंडवाना समुदाय के लिए अपना सर्वस्व कर दिया न्यौछावर 

ईमानदारी, वफादारी व त्याग की निस्वार्थ भावना से संपूर्ण गोंडवाना आंदोलन को एक पथिक बनकर चलने की आवश्यकता

दादा हीरासिंह मरकाम जी के सपनों को यथार्थ में बदलने का सभी युवा योद्धाओ व सामाजिक जनों को लेना होगा संकल्प


गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी के पुण्यतिथि पर विशेष
सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम जंगलीखेड़ा, गढी, बैहर जिला-बालाघाट म प्र

ऐतिहासिक गोंडवाना आंदोलन का इतिहास अपनी चुनौतियों को पार करता हुआ आज इस मुकाम पर आ पहुंचा है और अब गोंडवाना साक्षात हम सबके सामने खड़ा है, इसे आगे बढ़कर हासिल करना मात्र शेष है। लेकिन कैसे ? लड़ाई से, क्रांतिकारी संघर्ष से, संगठन के बल से, कोयापुनेम व्यवस्था से गोंडवाना वैचारिक क्रांतियुक्त साहित्यों से, गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन की अलख से,  उपरोक्त संघर्ष को यदि गोंडवाना आंदोलन की अलख जगाने में सिर्फ देशज समुदाय शिरकत करेंगी तो यह सीमित क्षेत्र या भू-भाग में इसका विस्तार होगा, इसके विपरीत हम सभी गोंडवाना आंदोलन के अनुयायी सर्वसमुदाय को ऐतिहासिक पेंजिया के विखण्डन उपरांत सृजित विशाल भू-भाग गोंडवाना लैण्ड के रूप में अस्तित्व में आने की भौगोलिक प्रक्रिया, इतिहास, निरंतर परिवर्तन, और वर्तमान स्वरूप का अध्ययन करें और कराये तो गोंडवाना आंदोलन का विस्तार संपूर्ण गोंडवाना भू-भाग व सभी समुदायों में भी होगा।

अपने जीवन भर के आंदोलन के सारांश में सभी गोंडवाना वासियों को जगा दिया है


गोंडवाना आंदोलन के प्रणेता और गोंडवाना भू-भाग के महामानव, गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम ने अपने जीवन भर के आंदोलन के सारांश में सभी गोंडवाना वासियों को जगा दिया है, अब आखिरी लड़ाई बाकी है। यह संघर्ष हर वर्ग और समुदाय के साथ हर दिशाओं से उठानी होगी। गोंडवाना आंदोलन की धुरी गोंडवाना के सच्चे सपूत कृषि व्यवस्था के जानकार नेलकी (किसान), ठेकेदारी प्रथा में संलग्न मजदूर, कारखानों में संलग्न गोण्डवाना के मेहनतकस मजदूर वर्ग, प्रकृति में जंगलों के रक्षक व व्यवस्था के जानकार, नेगी बैगा समुदाय, जल व्यवस्था के असली जानकार नेगी ढीमर समुदाय, जमी की अथाह गहराई और समझ को जानने-मानने वाले नेलकी, सभी युवा छात्र -छात्रायें, लेखक, कवि, बुद्धिजीवी पत्रकार व तमाम साहित्यकारों को इस गोंडवाना आंदोलन में शामिल करना होगा, वही सबको उस लड़ाई में शामिल भी कराना होगा।
                क्योंकि सार्वभौमिक सत्य है, गोंडवाना जातिवाचक नहीं प्रजावाचक है। हर मोर्चे पर एक साथ संघर्ष चलानी होगी. बार गोंडवाना आंदोलन की लडाई पुराने तरीको सिर्फ जन सभाओं एवं जूलूसों के साथ- साथ इस बार लडाई तरीकों से आगे बढ़ते हुए तकनीकी ज्ञान संपन्नता के साथ लड़ना होगा। संवैधानिक दायरों व संवैधानिक प्रावध (अनुच्छेद - 3 ) के साथ सदन में लड़ना होगा। यह सच है, गोण्डवाना राज्य, भीख मांगने से नहीं मिलेगा, बल्कि एकता, संगठन और क्रांतिकारी संयुक्त संघर्ष के संतुलन से ही गोण्डवाना व गोंडवाना राज्य को हासिल किया जा सकता है। 

यदि हमारा जन्म गोंडवाना लैंड में हुआ है तो गोंडी (पाना- पारसी) हमारी मातृभाषा है

गोंडवाना के महान योद्धा गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम ने गोंडवाना समग्र विकास क्रांति आंदोलन के माध्यम सामाजिक उत्तरदायित्व, सामाजिक दर्शन व कार्य योजना से ही दूर करने, जी-7-एस का लक्ष्य निर्धारित कर प्रेरित किए है। जिसमें मुख्य रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति (अपनी गोंडवाना संस्कृति, रीति- रिवाज, कोयापुनेम ज्ञान के बिना हमारे विचार विकृत हो जाते है।)  यह भी सच है कि गोंडवाना साहित्य के मर्म व कोयापुनेम को प पारसी (गोंडी) के माध्यम से ही समझा जा सकता है।
            मातृभाषा का रिस्ता माटी से होता है, व्यक्ति जिस वातावरण व भू-भाग, माटी में पैदा होता है वही भू-भाग उसकी मातृभाषा का आधार बनता है। यदि हमारा जन्म गोंडवाना लैंड में हुआ है तो गोंडी (पाना- पारसी) हमारी मातृभाषा है, मातृभाषा ही हमारे गोंडवाना आंदोलन का मुख्य आधार स्तंभ है। इसीक्रम में स्वाबलंबन (ऋण मुक्त, रोजगार युक्त) सामुदायिक जीवन दर्शन, सुरक्षा एवं सत्ता (सत्ता में सामुदायिकता निहित होती है।) पर अपना संपूर्ण समय दिये व सामाजिक बंधुता का पाठ पढ़ाया। 

गोडवाना आंदोलन को इस फौलीदी एकता, संगठन और क्रांतिकारी संघर्ष संतुलन से नवसृजित किया जा सकता है

उपरोक्त जी-7-एस के ध्येय को आत्मसात कर गोंडवाना के सभी द्वीप व समुदाय एक हो जावे एवं कोयापुनेमी व्यवस्था के नेगी एक हो जाये। गोंडवाना के समुचित उत्थान के लिए निर्मित समस्त संगठन और राजनीतिक इकाईयां एक हो जाये। सभी नेतृत्व वैचारिक रूप से एक हो जावे तो गोडवाना आंदोलन को इस फौलीदी एकता, संगठन और क्रांतिकारी संघर्ष संतुलन से नवसृजित किया जा सकता है। गोंडवाना जो आज तक एक सपना बना रहा है एक पल में हकीकत में बदलते देर नहीं लगेगी।
             गोंडवाना की उन्नति, खुशहाली व भौतिक रूप में नवसृजन का रास्ता खुल जायेगा। गोण्डवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम गोड, गोंडी, गोंडवाना समुदाय के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, गोडवाना आंदोलन को खून से सींचा है। उसे यथार्थ में बदलने का संकल्प आज हम सभी युवा योद्धाओ व सामाजिक जनों को लिया जाना है। आज जिस दौर से पूरा विश्व गुजर रहा है, वह अंधकार के तत्व, शोषण, अन्याय, हिंसा, आतंक, बरकरार है, उसे शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य, संतुलन, धैर्य व त्याग से निजात पाना है और दादा मरकाम जी के पुण्य स्मृति में आपके द्वारा प्रशस्त मार्ग में ईमानदारी, वफादारी व त्याग की निस्वार्थ भावना से संपूर्ण गोंडवाना आंदोलन को एक पथिक बनकर चलने की आवश्यकता है।




गोंडवाना रत्न दादा हीरासिंह मरकाम जी के पुण्यतिथि पर विशेष
सम्मल सिंह मरकाम
वनग्राम जंगलीखेड़ा, गढी, बैहर जिला-बालाघाट म प्र


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