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केंद्र सरकार और अडानी ने मिलकर सरगुजा का परसा-केते कोल ब्लॉक को बनाया कुरूक्षेत्र

केंद्र सरकार और अडानी ने मिलकर सरगुजा का परसा-केते कोल ब्लॉक को बनाया कुरूक्षेत्र

अडानी कंपनी शंकुनी की भूमिका में आदिवासियों का बांटने के तरीकों पर कर रहा कार्य 

हसदेव अरण्य आंदोलन का विश्लेषण


अजय सिंह पोर्ते, संवाददाता
सरगुजा व बिलासपुर संभाग
उदयपुर-सरगुजा/छत्तीसगढ़। गोंडवाना समय। 

वर्ष 2008 के आस-पास छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के ब्लाक उदयपुर में अचानक अदानी कंपनी के अधिकारियों का आना जाना शुरू हो गया था‌‌। तब तक लोगों के पास इस बात की आधी-अधूरी जानकारी था कि केन्द्र सरकार द्वारा इस सरगुजा जिले के ग्राम परसा-केते कोल ब्लॉक को राजस्थान कोल विद्यूत परियोजना के लिए आबंटित किया गया है।
        


चूंकि छत्तीसगढ़ का सरगुजा सहित अधिकांश जिले भारतीय संविधान के पांचवी अनुसूची में शामिल क्षेत्र है, भूमि अधिग्रहण से पूर्व विधिनुसार खुली जन सुनवाई के प्रक्रिया को शासन प्रशासन को पारदर्शिता के साथ किया जाना था लेकिन उत्खनन और परिवहन के ठेके की जिम्मेदारी जिस अदानी कंपनी के पास था। अदानी कंपनी के अधिकारियों और उनके कार्यशैली पर विरोध की आवाज उठने लगी थी फिर भी भूमि अधिग्रहण से प्रभावित और विस्थापित होने वाले भूमि-स्वामियों का एक बड़ा समूह कोल ब्लॉक परियोजना के पक्ष में आकर मुआवजा का चेक लेने लगे और यहीं से परसा-केते सहित हरिहरपुर, साल्ही, फतेहपुर, जनार्दनपुर, घाटबर्रा में लोगों में दो गुट नजर आने लगा था।
                एक गुट कोल ब्लॉक के समर्थन में चुपचाप मुआवजा लेकर रोजगार मिलने का प्रतिक्षा करने लगे, वहीं दूसरा गुट भूमि अधिग्रहण जन सुनवाई को विधि-विरूध बताते हुए सड़कों पर उतरने लगे और जिला मुख्यालय में धरना प्रदर्शन करने लगे और यही आंदोलन आज 14 वर्ष बाद उस क्षेत्र के लोगों को आमने सामने इस तरह से खड़ा कर दिया है, मानो भाईयों के बीच महाभारत होना तय है और कोल ब्लॉक परियोजना कुरूक्षेत्र का मैदान हो।

शासन-प्रशासन धृतराष्ट्र और अदानी कंपनी शकुनी की भूमिका में आ रहे नजर


सरगुजा जिले के घाटबर्रा, परसा-केते, बार्बी, हरिहरपुर, फतेहपुर सहित दर्जनों ग्राम पंचायत के ग्रामीण अब दो भागों में बटे नजर आते हैं। एक धड़ा कोल खदान परियोजना के साथ खड़ा है तो दूसरा पक्ष कोल परियोजना के विरोध में खड़ा हुआ है। दशकों पहले सरगुजा का यह आदिवासी बाहुल्य अंचल आदिवासियों के सांस्कृतिक, पारंपरिक प्रथाओं का श्रृंगार किये अपने  सहजता के साथ एक साथ एकत्रित रह कर जीवन जीने के सिद्धांत के लिए जाना जाता था।
            सभी लोग एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल रहते थे किंतु राजस्थान कोल ब्लॉक परियोजना के आगमन के साथ ही लोगों के बीच ऐसी खाई तैयार हो गई है कि विभिन्न अवसरों में लोग एक दूसरे के घरों में आना जाना छोड़ दिए हैं और कई बार समर्थक और विरोधियों के बीच आपसी झड़प की स्थिति भी बन चुकी है। वहीं इस जल, जंगल, जमीन के महाभारत में स्थानीय व्यक्ति को समूल नष्ट करने के साजिशें साफ नजर आती हैं।
        आखिर क्या वजह है कि इतनी विस्फोटक परिस्थिति बनने के बावजूद स्थानीय विधायक, मंत्री और शासन प्रशासन आंखों में पट्टी बांधे धृतराष्ट्र की भूमिका में है, वही दूसरी ओर अदानी कंपनी शंकुनी की भूमिका में लोगों को बांटने के तरीकों पर काम कर रहा है। समय रहते नहीं चेते तो, आदिवासियों के रूमाल को कुदाल (कुदारी) होने से नहीं रोका जा सकता।

आखिर आजादी के 70 सालों के बाद आदिवासियों के पास क्या विकल्प है

राजस्थान कोल विद्यूत परियोजना का विरोध करने वालों में प्रदेश और अन्य प्रदेशों के नामचीन आंदोलनकारी एवं नेतृत्व प्रमुख लगातार सरगुजा पहुंच रहे हैं और विरोध दर्ज करा रहे हैं और उन्होंने यह आरोप लगाया कि सरकार और कापोर्रेट कंपनी आदिवासियों के गांव का विस्थापन कर उन्हें सांस्कृतिक, आजीविका के क्षेत्र में कमजोर कर रहा है।
            आदिवासी समाज विगत करोड़ों साल से जंगलों में निवास करते हैं और वनोपज, लकड़ी, जंगली फल-फूल आदि से अपने आजीविका चलाते है जिसे सरकार और कंपनी कोल परियोजना के बहाने लूटना चाहता है। वही दूसरी ओर कोल परियोजना के समर्थन में खड़े लोगों का कहना है कि आदिवासियों के पास आज इसके अलावा क्या विकल्प है, कुछ गैर आदिवासी नेताओं के इशारों पर कोल परियोजना को इसलिए रोका जा रहा है कि आगामी हजारों साल तक आदिवासी समाज जंगलों में रहकर कंद मूल खाये, लकड़ी और पत्ते बेच कर अपने जीवकोपार्जन करे।
        आखिर आजादी के 70 सालों के बाद आदिवासियों के पास क्या विकल्प है। सरगुजा ही नही पूरे छत्तीसगढ़ में अन्य प्रदेशों के आये लोग आदिवासियों के मुद्दों पर अपनी रोजी-रोटी सेंक कर करोड़ों के मालिक बन बैठे हैं और स्थानीय छत्तीसगढ़िया आज शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर कमजोर होता जा रहा है। परियोजना के समर्थन में खड़े लोगों ने आरोप लगाया कि दो वर्ष पूर्व जब बिलासपुर से अम्बिकापुर के सड़कें चौड़ीकरण के नाम से 130 किलोमीटर सड़क के किनारे के लाखों पेड़ों को काटा जा रहा था तब ये लोग कहां थे।
            हसदेव अरण्य क्षेत्र में एस.ई.सी.एल., सहित अन्य खदानों का विरोध क्यों नही है। राजस्थान कोल विद्यूत परियोजना में जिनकी जमीन अधिग्रहित हो चुके हैं परियोजना के बंद होने पर वे कहां रोजगार पायेंगे।

तो क्या आदिवासी समाज आगामी हजारों साल तक वनोपज, लकड़ी,और पत्तों पर गुजारा करे

यह सच है कि आदिवासी प्रकृति के पूजक है और जल जंगल जमीन की आराधना करते हैं, उनका संरक्षण का संकल्प आदिवासियों के जीवन सिद्धांत में शामिल हैं‌। बावजूद एक सवाल जो बवाल खड़ा कर रहा है कि जिन आदिवासियों के भूमि के नीचे कोयला है और देश को अपने हर सुविधाओं के धरातल पर कोयले की आवश्यकता है। क्या बिजली के वगैर वर्तमान जीवन का परिकल्पना किया जा सकता है। क्या प्रभावित होने वाले भूमि-स्वामियों को 10 के जगह 20 गुना मुआवजा, कंपनी के लाभांश में शेयर, बेहतर शिक्षा -स्वास्थ्य के लिए आंदोलन नही किया जा सकता है।

राजस्थान कोल विद्यूत परियोजना का दावा

राजस्थान कोल विद्युत परियोजना और उत्खनन की ठेकेदारी में लगे अदानी कंपनी की माने तो वर्ष 2010 से अब तक 8 हजार पेड़ों के बदले लगभग 40 लाख रोपणी कर शासन प्रशासन को सौंपा जा चुका है वही पुर्नवासित गांवों में मूलभूत सुविधाओं के साथ एक बेहतर शैक्षणिक विद्यालय दिया जा चुका है। सौ बिस्तर वाला एक चिकित्सालय अपने प्रारंभ के तैयार है। राजस्थान कोल विद्यूत परियोजना में सरगुजा क्षेत्र के लगभग 2 हजार लोग नौकरी कर रहै हैं। परियोजना के बंद होने से हजारों लोगों के सामने रोजगार की समस्या पैदा हो जायेगा।

निर्णायक आंदोलनकर्ता की खामोशी समझ से परे क्यों ?


सरगुजा संभाग में भूमि आंदोलन के प्रणेता और निर्णायक आंदोलन के नेतृत्वकर्ता के रूप पहचान रखने वाले गोंगपा नेता जयनाथ सिंह केराम की खामोशी भी समझ से परे है। पिछले दो दशकों से सरगुजा में स्थानीय मूलनिवासियों के पक्ष में डटकर संघर्ष करने वाले जयनाथ सिंह केराम के नेतृत्व में सैकड़ों एकड़ भूमि खाली हुए और वही अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट उदयपुर, इस्को पावर प्लांट प्रेमनगर, सहित आधा दर्जन पावर प्लांटों सरगुजा के भूमि से खदड़ने वाले नेतृत्व की कमी उदयपुरवासी साफ-साफ महसूस करते हैं। सूत्रों की मानें तो विगत दो माह पूर्व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयनाथ सिंह केराम प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर दोनों ही पक्ष से मुलाकात कर आर-पार की अंतिम निर्णायक आंदोलन की बात रखे थे।

जन सुनवाई पर असंवैधानिकता का आरोप 

राजस्थान कोल विद्यूत परियोजना के शुरू होने के समय जितने भी जनसुनवाई हुए हैं, उन सभी जन सुनवाई पर विधिविरुद्ध और बाहरी लोगों को लालच देकर परियोजना के पक्ष में सहमति से संबंधित कार्यवाही कराये जाने का आरोप है।


अजय सिंह पोर्ते, संवाददाता
सरगुजा व बिलासपुर संभाग
मो.नं.-9406451959

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