आजादी के अमृत महोत्सव के 75 वर्ष बाद भी आदिवासी महापुरुषों का सम्मान नहीं हुआ
विकास के नाम में पेड़ पौधे काटे जाते हैं जिसके कारण आदिवासियों को विस्थापित कर दिया जाता है
आप जल जंगल जमीन में जो लीडरशिप कर रहे हैं उस पर का आपको बहुत से संग्राम करना होगा
ट्राइबल लीडरशिप प्रोग्राम सेमिनार का मुंबई में सुमरनी पाठा व पौधारोपण के साथ हुआ भव्य शुभारम्भ
पंचगनी मुम्बई टाटा स्टील फाउंडेशन के द्वारा ट्राईबल लीडरशिप प्रोग्राम का सेमिनार का आयोजन एशिया प्लॉटों पंचगनी मुंबई में दिनांक 8 मई 2022 से 15 मई 2022 तक किया गया है। जिस का भव्य शुभारंभ 8 मई को किया गया। जिसमें भारत के अलग अलग प्रांत से 550 युवा लीडरो के द्वारा फार्म भरा गया था। जिसमें 100 युवा लीडरो को चयनित किया गया था। जिसमें 96 युवा लीडरों ने भाग लिया गया। कार्यक्रम का प्रथम सेशन सुबह हुआ जिसमें श्रीमती लीना जी ने अंतरात्मा को प्रयोगिक तरीके से समझाने के लिए हर प्रतिभागी को नेचर के बीच महसूस अपनी अन्तर आत्मा को महसुस करने के लिए सभी प्रितभागियों को कहा जिसमें सभी प्रतिभागी प्रक्टिकल करके अपने-अपने नोटबुक पर अपनी अंतरात्मा के बात लिखी फिर कार्यक्रम का दूसरा सेशन शुभारंभ किया गया। जिसमें पेन शक्तियों एवं प्रकृति शक्तियों स्मरण करते हुए जनजातिके द्वारा प्रार्थना किया गया।
सभी प्रांतों की मिट्टी को एक गुलदस्ते बाकेट में डालकर उसमें पौधा रोपण किया गया
इसके बाद मध्य प्रदेश से सुमरनी पाठा वैशाली धुर्वे, लता सैयाम, अनुभा तेकाम, सतलुज आर्मो, उर्मिला एवं साथियों के द्वारा सुमरनी पाठा किया गया। इसके बाद हर प्रतिभागीयों द्वारा अपने क्षेत्र से मिट्टी लाया गया था। जिसमें सभी प्रांतों की मिट्टी को एक गुलदस्ते बाकेट में डालकर उसमें पौधा रोपण के साथ कार्यक्रम में सभी समुदाय के लोगों ने अनेकता में एकता का परिचय देते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। जिसमें ट्राईबल लीडरशिप प्रोग्राम के आयोजकों द्वारा सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया गया।
अगर मैं खुद के लिए खड़ा ना हो तो कौन होगा ?
श्री सिध्दार्थ सिह (एसिया प्लेटो डायरेक्टर द्वारा बताया गया की 1972 में जब इसका स्थापना की जा रही थी तब मात्र यहां एक पेड़ मात्र था परन्तु इसे सवारने के लिए 30 हजार लोग आगें आये वही श्री राज मोहन ने अपनी बात रखते हुए कहा आज के भारत को मिट इंडिया की जरूरत है। इसके बाद टाटा स्टील के चीफ एक्जीटीव आॅफिसर श्री सौरव रॉय अपनी वक्तव्य रखते हुए कहां आप क्यों आए हैं साथ ही कहा आप बहुत विश्वास से आए हैं हमें उस उद्देश्य को बरकरार रखना हमारा कर्तव्य है, उन्होंने 3 क्वेश्चन रखा जिसकी चर्चा पूरा सेशन में होगी, जिसमें 1. अगर मैं खुद के लिए खड़ा ना हो तो कौन होगा ? 2. अगर सिर्फ मैं अपने लिए खड़ा होऊंगा तो मैं कौन हूं ? 3. अगर अब नहीं तो कब ?
हमें भारत जोड़ो अभियान को सशक्त बनाना है
वहीं डॉक्टर अमित मुखर्जी ने अपने वक्तव्य ने कहा हमें नेतृत्व एवं नेतागिरी में अंतर समझने की जरूरत है। लीडरशिप के ढांचा अंतरात्मा से आए और हम उसी को अपनाएं तो हम कभी धोखा नहीं खा सकते हैं। लीडरशिप में अक्सर हम छोटा सोचते हैं हम कभी नहीं सोचा कि हमारे अंदर आत्मा अपार थिंकस हम सोच नहीं सकते है, अगर हम ठान ले तो वह कभी असफल नहीं हो सकता। संकीर्ण आत्मा में ना सोचिए उसे विस्तार से सोचिए उसे जुनून के साथ करिए हम अपने विचारों से विचारधारा के लिए आए हैं। हम परिवर्तन नहीं होना चाहते तो हम कभी समाज को परिवर्तन नहीं कर सकते हैं इसलिए हमें भारत जोड़ो अभियान को सशक्त बनाना है।
68 एकड़ पर फैला है 1972-73 में केवल एक वृक्ष था
इसके बाद संजय लीलाम जी (प्रोग्राम को कोआॅर्डिनेटर) के द्वारा। सेंटर का इंफॉर्मेशन दिया गया जिसमें बताया कि आॅडिटोरियम की स्थापना 1972-73 में किया गया है जो 68 एकड़ पर फैला है। जिसमें हमें बहुत सी जैव विविधता देखने को मिली एवं इस एशिया प्लॉटो को सहयोग के लिए देश विदेश से लोगों ने सहयोग किया गया। जब इस जगह में आॅडिटोरियम बन रहा था तब यह जमीन पूरी तरह से बंजर थी केवल एक वृक्ष था परंतु अभी की स्थिति में देखें तो यहां के बायोडायवर्सिटी को देखकर बहुत से लोग इंस्पायर भी होते हैं ।
गांव छोड़ब नहीं जंगल छोड़ब नहीं ,माय माटी छोडब नहीं
बजरंगी सचिन भाई (फिल्मकार) बजरंगी सचिन भाई अपनी बात रखते हुए घुमक्कड़, अर्ध घुमक्कड़ जनजातियों के बारे में बताया जिन्हें अंग्रेज लोग एक क्रिमिनल ट्राइब्स कहते थे परंतु स्वतंत्र संग्राम आंदोलन में उनका बहुत बड़ा योगदान था। जिन्हें 1952 में आजाद माना गया। मेरी कहानी सेशन अपना वक्त अब रखते हुए पद्म श्री विजेता मधु मंसूरी हंसमुख जी क्यों उनका नाम मधु मंसूरी हसमुख क्यों पड़ा क्योंकि बचपन में उनका मां के छाया ना मिलने के कारण उनको दूध की जगह दारू पीना पड़ा था जिसकी लत लगने के कारण उनका नाम मधु मंसूरी हंसमुख पड़ा वह झारखंड के उरांव आदिवासी से बिलॉन्ग करते हैं जिन्होंने 300 से अधिक गीत लिखें जो पर्यावरण एवं संविधानिक और महापुरुषों पर आधारित है जिन की प्रसिद्ध गीत - गांव छोड़ब नहीं जंगल छोड़ब नहीं ,माय माटी छोडब नही .... थी। इस सॉन्ग को मधु मंसूरी हंसमुख जी ने उनके साथी मेघनाथ महतो के साथ लिखा था।
जो सबसे पहले आजादी के लिए संघर्ष किए उनको पीछे छोड़ दिया गया
पी सांईनाथ (रैमन मेगसेस पुरुस्कार) पी सांईनाथ जी ने ट्राईबल लीडरशिप प्रोग्राम के सेशन में अपनी बात रखते हुए कहा की आजादी के अमृत महोत्सव के 75 वर्ष बाद भी आदिवासी महापुरुषों का सम्मान नहीं हुआ जो सबसे पहले आजादी के लिए संघर्ष किए उनको पीछे छोड़ दिया गया । उन्होंने बताया 2 माह पहले जब वह उड़ीसा गये तो वहां सलीहन करके गांव हैं जब 1930 में एक रेगुलेशन के खिलाफ वहां के आदिवासियों की द्वारा विरोध किया गया जिसकी नेतृत्व 16 साल की महिला ब्रिटिश शोकेस सामने डटकर संग्रह कर रही थी परंतु उनको गोली लगने से निधन हो गया उन्हें मिला था उस गांव में 1930 में केवल आदिवासी थे परंतु अभी मात्र दो घर ट्राइबल के बचे हैं। अदर कास्ट लोग उस कहां से आ गए उनका पता नहीं और जो आदिवासी थे वे विस्थापित हुए उनका कोई पता नही है।
1780 से पहले से जो संघर्ष कर रहे हैं वह आदिवासी है
आगे पी साईनाथ जी मेरे साथ दो साथी तेलगाना से आए हैं जो खोया की बात कर रहे । अल्लूरी सीतारामा खोया जो गोंड ट्राइब से आते हैं अंग्रेजों ने अपने स्थान से भगा दिया था और साथी उनके गांव वालों को जिनका पता है अभी तक नहीं चला वह कहां विस्थापित हुए। लड़ाई में जितने भी होते थे वे ट्राइब थे 1780 से पहले से जो संघर्ष कर रहे हैं वह आदिवासी है। वहीं 1827 सिपाही विद्रोह से हम सब वाकिफ हैं उससे पहले भी संग्राम हुए यह सब सीजी से थे उन्होंने अंग्रेजों से पहले गेहूं बेचकर उनको देव परंतु और अंग्रेजों ने नहीं दिया तो अंग्रेजों को लूट कर वहां के जनता को खाद्य उपलब्ध कराते थे।
15000 आदिवासियों को गोली लगी थी
उन्होंने संथाल विद्रोह के भी जिक्र किया जिसमें 16000 आदिवासियों में से 15000 आदिवासियों को गोली लगी थी और वह तीर कमान से लड़ रहे थे जबकि अंग्रेजो के पास आधुनिक हथियार थे उनकी ऐसी संघर्स अंग्रेज देखकर मेजर स्ट्रीम कंपनी भी रो पड़े थे उनके हाथों में तलवार थे तीर कमान से लड़ रहे थे और हम गोली से परंतु वह नहीं डर रहे थे। तब लोकतंत्र फिर भी आदिवासी लोग ब्रिटिश सरकार से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने साथी एक चैलेंज के रूप में प्रश्न रखा वह केवल आदिवासियों के लिए नहीं वह सभी कम्युनिटी के लिए कारगर सिद्ध होगा।
सबसे ज्यादा कोविड-19 मां मारी का इफेक्ट आदिवासियों पर पड़ा है
उन्होने प्रश्न रखा कि इंडिया में असमानता बढ़ रही है पेरिस रिपोर्ट को जिक्र करते हुए उन्होंने बताया 1870 में जो आसमानता देख रहे थे वह आसमान था आज भी देख रहे हैं। वहीं 8.10 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है लेकिन गरीबी रेखा के नीचे केवल 15 परसेंट से 16 प्रतिशत हैं जो आदिवासियों की मूल संख्या के 8 प्रतिशत हैं। 8.10 प्रतिशत आदिवासियों में 45% आदिवासी विस्थापित हुए हैं उन्होंने कॉन्टिनेंटल महामारी के 2 साल का जिक्र करते हुए उन्हें बताया की सबसे ज्यादा कोविड-19 मां मारी का इफेक्ट आदिवासियों पर पड़ा है हमारे जीडीपी का 7% घट गया है।
140 ऐसे लोग हैं जिनके पास 540 बिलियन पैसा बढ़ गया है
हमारी 125 करोड़ लोगों में 140 ऐसे लोग हैं जिनके पास 540 बिलियन पैसा बढ़ गया है जो 596 बिलियन 140 लोगों के पास रह गया है। हमारे 1.4 बिलियन लोग हैं जीडीपी का 23% हिस्सा 140 लोगों के पास रह गया है । हमारा पैसा कैपिटल लोगों के पास गया है चाहे वह इंडस्ट्रियल क्षेत्र हो क्या यह कॉमर्स का क्षैत्र एवं अन्य क्षेत्र हो । सरकारी स्कूल बंद होने के कारण सबसे ज्यादा इफेक्ट आदिवासियों पर पड़ा है क्योंकि सरकारी स्कूलों में 77 प्रतिशत बच्चे आदिवासी बच्चे पढ़ने जाते हैं । जिनमें से 6:00 से लेकर 8:00 है वर्ष के बच्चे पढ़ना ही भूल गए हैं क्योंकि टेक्नोलॉजी से आदिवासी लोग अभी दूर है।
ट्राईबल एरिया में पब्लिक हेल्प की कमी है एजुकेशन में भी समानता होना चाहिए
पी साईनाथ जी आगे कहते हैं की हम लोग सर्वे करने हमारे दो रिपोर्टरों के साथ किया और हम उन आदिवासियों से क्वेश्चन किया तो हमें पता चला कि कितनों लोंगो पास मोबाइल है। हमने पाया पी 1 के पास भी मोबाइल नहीं है जिसके पास तो स्मार्टफोन मिला तो उसके भाई या उसके बड़े भाई के पास मिला परंतु संडे को जब पिताजी घर आते थे तब कुछ स्टडी मैटेरियल डाउनलोड करते थे हमारे यहां यूपी बिहार से माइग्रेन मुंबई में काम करते हैं उनके पास मोबाइल है परंतु घर में नहीं है तो पढ़ाई कैसे होगी। ट्राईबल एरिया में पब्लिक हेल्प की कमी है एजुकेशन में भी समानता होना चाहिए कि डी एम का बच्चा और गरीब का बच्चा एक ही स्कूल में पढेÞ तो समानता आयेगी।
4 लाख लोग ऐसे ही मर जाते हैं जो केवल आदिवासी और दलित होते हैं
इंडिया में इलाज न होने के कारन लगभग 4 लाख लोग ऐसे ही मर जाते हैं जो केवल आदिवासी और दलित होते हैं। उन्होंने बताया की सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे आदिवासी हैं उन्होंने एक रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिसमें महाराष्ट्र गवर्नमेंट को बताया गया 17000 लोग कुपोषित के कारण मर गए हैं उन्होंने आगे कहा कि हमें आसामानता को बदलना है। चाहे वह आर्थिक क्षेत्र में हो या किसी भी क्षेत्र में हो। उन्होने बताया कि आदिवासियों का की आमदनी जंगल है जो सर्वाधिक लाख आदिवासी क्षेत्र में होता है विकास के नाम में पेड़ पौधे काटे जाते हैं जिसके कारण आदिवासियों को विस्थापित कर दिया जाता है जिसके कारण बायोडायवर्सिटी में इफेक्ट पड़ता है, जिसके कारण चीता विलुप्त हो चुके हैं।
हम विलुप्त भाषा को सुरक्षित करने की कोशिश करेंगे
बहुत सारे घुमंतू आदिवासी प्रभावित हुये हैं हरित क्रांति का जिक्र करते हुए बताया कि एम एस स्वामी नाथन ने कहा था कि उड़ीसा के कोरा पेटा क्षेत्र है जहां 20000 साल पहले चावल की खेती की गई थी जो आदिवासियों के द्वारा किया गया था । इसमें विविधता पाई जाती थी कई कलर के चावल उगाया जाता था परंतु अब ज्यादातर एक ही कलर के चावल पाई जाती है इसलिए उन्होंने कहा कि हमें आसमान तक को चैलेंज करना है और आसमान तक को हटाना है उन्होंने कहा कि हम विलुप्त भाषा को सुरक्षित करने की कोशिश करेंगे जितने भी विलुप्त भाषा है उन्हें हम संग्रहित कर रहे हैं। आगे कहते हैं की आपके कल्चर को बचाने के लिए आपको आगे आना पड़ेगा हम आपका सपोर्ट करेंगे जिस प्रकार आप जल जंगल जमीन में जो लीडरशिप कर रहे हैं उस पर का आपको बहुत से संग्राम करना होगा । फिर अंतिम सेशन फैमिली डिस्कशन का हुआ जिस पर 12-12 प्रतिभागियों को एक फैमिली में बाटा गया था जिसमें हर प्रांत से 1-1 प्रतिभा रोगी को रखा गया था।