प्रधानमंत्री मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चाहे तो गोंडवाना शासनकाल की रानी फुलकुंवर के इतिहास को ऐतिहासिक बना सकते है
गोंडवाना शासनकाल की वीरांगना की शहादत को आज भी है सम्मान का इंतजार
सिवनी/मध्यप्रदेश। गोंडवाना समय।
अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजाद कराने में ऐतिहासिक शहादत का इतिहास समेटे गोंडवाना शासनकाल के वीर यौद्धा व वीरागंनाओं को इतिहासकारों के साथ साथ आजादी के बाद सत्ता शासन का सुख भोगने वालों ने भी सम्मान जनक स्थान नहीं दिया या यह कहा जाये दरकिनार करते रहे है। हालांकि बीते कुछ वर्ष में ही गोंडवाना शासनकाल और आदिवासी समाज के वीर यौद्धाआें व वीरांगनाओं को याद किया जा रहा है।
ऐसी ही गुमनाम ऐतिहासिक शहादत से हम आपको रूबरू कराते है जिससे सरकार, सत्ता, शासन-प्रशासन अक्सर अनजान रहने की कोशिश करती है क्योंकि वह शहादत गोेंडवाना शासनकाल से जुड़ी हुई है। हम गोंडवाना साम्राज्य के गढ़ मंडला रियासत की महारानी, अदम्य साहसी, 1857 की क्रांति में 65 बरस की उम्र में बलिदान देने वालीं महान योद्धा, वीरांगना रानी फूलकुँवर शाह जी के 20 मार्च के बलिदान दिवस पर शत शत नमन करते हुये आपको बताते है कि वीरांगना रानी फुलकुँवर पत्नी शहीद महाराजा शंकर शाह जी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत का प्रथम बलिदान जबलपुर कमिश्नरी से वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी और वीरांगना रानी फूलकुंवर का रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी व मुख्यमंत्री शिवराज की अगुवाई में आदिवासी वीर यौद्धाओं को किया जा रहा याद
हम आपको बता दे कि देश में केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी के बनने के बाद उन्होंने देश में अंग्रेजों के विरूद्ध शहादत देने वाले वीर यौद्धाओं व वीरांगनों को खोजकर उनका इतिहास व संग्रहालय बनाने की पहल किया था। वहीं इस वर्ष तो आजादी का अर्मत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। जिसके तहत अनेकों आजादी के महानायकों को सम्मान देने का कार्यक्रम भी सरकार व शासन पर रखा गया है। वहीं मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार की बात करें तो बिरसा मुण्डा जी के सम्मान गौरव दिवस पर स्वयं प्रधानमंत्री के शामिल होने पर कार्यक्रम किया गया। इसके साथ ही राजा शंकर शाह व कुंवर रघुनाथ के शहादत दिवस पर गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुये थे। आदिवासी टंटिया मामा के कार्यक्रम भी सरकार द्वारा मनाया गया है। यानि आदिवासी वीर यौद्धाओं को सरकार द्वारा सम्मान देने का कार्यक्रम किया जा रहा है। इसके बाद भी रानी फुलकुंवर की शहादत को वह स्थान आज भी नहीं मिल पाया है तो वास्तव में मिलना चाहिये थे। यह दुखद तो है ही साथ लाखों करोड़ों आदिवासियों की आस्था व विश्वास के साथ कुठाराघात है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान चाहे तो गोंडवाना शासनकाल की रानी फुलकुंवर के इतिहास को ऐतिहासिक बना सकते है।
महान इतिहासकारों ने उनके बारे एक पृष्ठ तो छोड़िये एक पंक्ति नहीं लिखी है
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सन 1857 की संपूर्ण भारत में प्रथम महिला शहादत (20 मार्च 1858) वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी की रही है। तदुपरांत महा महारथी श्रीयुत शंकरशाह की वीरांगना फूलकुंवर ने भी अंग्रेजों से युद्ध करते हुए प्राणोत्सर्ग किया था। हम आपको बता दे कि वीरांगना का गौरवमयी इतिहास प्रस्तुत करने में जिस तरह से जानबूझकर इतिहास लेखनकारों ने महायौद्धा राजा शंकर शाह जी और उनके सुपुत्र कुंवर रघुनाथ शाह जी के साथ अन्याय किया है। उससे भी बड़ा अन्याय वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी और गोंडवाना शासनकाल की महारानी फूलकुंवर के साथ हुआ है। राष्ट्रीय स्तर पर लिखे गए इतिहास में तथाकथित महान इतिहासकारों ने उनके बारे एक पृष्ठ तो छोड़िये एक पंक्ति नहीं लिखी है।
महारानी फूलकुंवर बाई ने मंडला आकर अंग्रेजों के विरूद्ध क्रांती को जारी रखा
18 सितम्बर, 1857 को महाराजा शंकर शाह जी और कुंवर रघुनाथ शाह जी को खुलेआम आम जनता के बीच में तोप के गोलों से उड़ा दिया गया था। सिर्फ सुनकर रूह कंपा देने वाली शहादत महारानी फूलकुंवर देवी के लिये यह असहनीय पल था। अपने पति और पुत्र को खोने के बाद भी वह वेष बदलकर अपने साथियों के साथ शहीद स्थल पर आई और यहां वहां बिखरे हुये शरीर के अंगों को एकत्रित कर रानी ने दोनों (पिता-पुत्र) का अंतिम संस्कार किया था। वहीं देश को आजाद कराने के लिये और अंगे्रजों से बदला लेने का प्रण लिया। महारानी फूलकुंवर बाई ने मंडला आकर अंग्रेजों के विरूद्ध क्रांती को जारी रखा।
विद्रोह की आग मंडला, दमोह, नरसिंहपुर, सिवनी और रामगढ़ तक फैल गई
अंग्रेजों के द्वारा इस तरह सरेआम राजा शंकर शाह जी और कुंवर रघुनाथ शाह जी को तोप से बांधकर मृत्युदंड देने का उद्देश्य लोगों और राजाओं में अंगे्रजों का डर पैदा करना था परन्तु अंग्रेजों के इस कदम से क्रांती और ज्यादा भड़क गई। लोगों द्वारा दूसरे ही दिन इस स्थान की पूजा की जाने लगी। वहीं 52 वीं रेजिमेंट के सैनिकों में विद्रोह फैल गया और इनकी टुकड़ी पाटन की ओर कूच कर गई। विद्रोह की आग मंडला, दमोह, नरसिंहपुर, सिवनी और रामगढ़ तक फैल गई। जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ सशत्र क्रांती फैल गई।
रानी फूलकुंवरी व रघुनाश शाह जी की पत्नि मनकुंवरी ने तब भी संघर्ष जारी रखा
वीरांगना रानी फूलकुंवर के पति और पुत्र के शहादत के बाद एक सेना की स्थापना करके मंडला में विद्रोह का नेतृत्व करने लगी थी। अंग्रेजों की 20 सैनिक टुकड़ियों से रानी फूलकुंवरी ने टक्कर ली। वह तथा रघुनाथ शाह की पत्नी मनकुंवरी ने तब भी संघर्ष जारी रखा। उनके सहयोग में जबलपुर, मंडला, नरसिहपुर, दमोह, सिवनी आदि जिलों के ताल्लुकेदारों की सेनाएँ लड़ रहीं थीं। महारानी फूलकुंवर देवी खम्हरिया, सोनपुर, बरेला, बीजादांडी से लड़ती हुई मंडला पहुंचकर मंडला के किले से युद्ध का संचालन करने लगी थीं। सेनापति राजा ठाकुर खुमान सिंह भी अपने दीवान फत्तेसिंह मराबी के साथ रानी से जा मिले थे। मंडला का किला क्रांतिकारियों का गढ़ बन गया था।
20 मार्च, 1858 को फूल सागर-गढ़ मण्डला की लड़ाई के अंत में स्वयं अपना बलिदान दे दिया
20 अक्टूबर के युद्ध में अंग्रेजी सेना की हार हुई थी। क्रांतिकारी पकड़ से बाहर थे। अंग्रेज अधिकारी अपना गुस्सा अपने ही अधीनस्थ भारतीय अधिकारियों पर उतार रहे थे। वहीं 5 मार्च तारीख को नारायणगंज और मंडला के मध्य विद्रोहियों के झोपड़े जलाकर उन्हें बेघर किया गया और 6 तारीख को जबलपुर की दिशा में कालपी और कुड़ामैली के झोपड़े नष्ट कर दिये गये थे। वहीं 20 मार्च, 1858 को फूल सागर - गढ़ मण्डला की लड़ाई के अंत में उन्होंने खुद को ब्रिटिश के विशाल सैन्य वाहिनी के सामने अक्षम पाया और राजवंश के गौरव की रक्षा के लिए, उन्होंने स्वयं तलवार घोंपकर अपना बलिदान दिया लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं आईं। सम्पूर्ण क्रांती में इस क्षेत्र से महाराजा शंकर शाह, कुंवर रघुनाथ शाह, रानी अवन्ती बाई, रानी फुलकुँवर जैसे कई वीर-वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दिया।
वीरांगना के सम्मान में उनकी मूर्ति व भव्य स्मारक बना, न पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने की कोशिश किया
गोंडवाना के अनगिनत शहीदों ने अपने खून से भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की अमर गाथा लिखी है। अपने अद्वितीय बलिदानों की परंपरा को कायम रखते हुए, उन्होंने पीढ़ियों को अपने देश के गौरव और महिमा के लिए मर मिटने के लिए प्रेरणा भी दिया है लेकिन विडंबना यह है कि रानी फूलकुंवर के बारे में कोई नहीं जानता, न ही बलिदान दिवस कार्यक्रम का आयोजन होता, न वीरांगना के सम्मान में उनकी मूर्ति व भव्य स्मारक बना, न पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने की कोशिश किया।