किरण बेदी व शेरनी के नाम से प्रख्यात सुश्री बबीता पंद्रे कौन है ?
आसान नहीं है बबीता पंद्रे जैसी मेहनती होना
महिलाओं को दी ये संदेश कि यह बात दिमाग से निकाल दे कि हम लड़की है तो कुछ नहीं कर सकते
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष खबर
सुश्री बबीता पंद्रे का जन्म 12 सितम्बर 1979 को कुरई ब्लॉक के ग्राम बिहिरिया जिला सिवनी मध्यप्रदेश में हुआ था। इनके पिता जी का नाम स्वर्गीय श्री चैतुलाल पंद्रे है इनकी माता जी का नाम हीरोबाई पंद्रे है। इनके पिता जी खेती किसानी व मजदूरी किया करते थे, घर में 1 भाई 2 बहन में जिसमें बबीता पंद्रे सबसे छोटी बेटी हैं। बबीता पंद्रे का जीवन काफी दु:ख तकलीफ एवं संघर्षों से बीता है।
इसलिए हमने कहा आसान नहीं है बबीता पंद्रे जैसी मेहनती होना। बचपन से ही इनमें समाज सेवा व परोपकार की भावना थी, इनका सपना था कि पुलिस विभाग में जाकर देश व समाज की सेवा करें लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था इनकी फॉरेस्ट विभाग में नौकरी लग गई और अब वह वनरक्षक के पद पर पदस्थ है और खुश भी हैं।
हॉस्टल से नाम कट जाने की वजह से पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिए थे, बहन की बेटी की सलाह से शुरू किए प्राइवेट पढ़ाई
सुश्री बबीता पंद्रे ने बताया कि 8 वीं पास होने के बाद मेरा एडमिशन 9 वीं कक्षा में हो गया लेकिन हॉस्टल से नाम कट जाने की वजह से मैं नहीं पढ़ पाई। उन्हें लगने लगा अब मैं पढ़ नहीं पाऊंगी और भविष्य में कुछ कर नहीं पाऊंगी लेकिन मेरी बहन की बेटी रजनी ने सलाह और हिम्मत दी तो मैंने पढ़ाई फिर से शुरू कर दी। मैंने दसवीं प्राइवेट की जिसमें सेकंड डिवीजन आई, 10 वीं 12 वीं और एम.ए. तक की पढ़ाई प्राइवेट की। वही मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा, बहन की बेटी की सलाह से मैंने पढ़ाई की और आज मैं फॉरेस्ट विभाग में वनरक्षक के पद में पदस्थ हूं।
मजदूरी, साड़ी की दुकान में काम, स्कूल में टीचर, नर्सिंग व तेल बेचने का भी काम की
बड़ी दीदी की शादी हो गई थी उनकी एक बेटी थी, दीदी का 1995 में स्वर्गवास हो गया, उसके बाद बहन की बेटी का लालन पालन पोषण नाना जी के घर में हुआ। भाई की तबीयत खराब रहती थी इसी बीच वर्ष 2009 में पिताजी का भी स्वर्गवास में हो गया, जिसके बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई। नौकरी नहीं लगने से पहले सुश्री बबीता पंद्रे ने मजदूरी की, साड़ी की दुकान में काम की, प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी की वहां पर वे हिंदी और संस्कृत सब्जेक्ट पढ़ाती थी। डॉ श्रीमती सुनीता चौधरी के पास नर्सिंग की, काम से समय निकाल कर साइड बिजनेस शुरू कर वे घर-घर जाकर राहत रूह तेल बेचने व मेडिकल में प्रचार प्रसार कर तेल बेचने का काम भी की। टाइम को भी बहुत अच्छे से मैनेज करती थी ये सुबह 7:00 बजे से 12:00 बजे तक स्कूल में बच्चों को पढ़ाना, तकरीबन 2 साल तक इन्होंने बच्चों को स्कूल में पढ़ाया है। 1:00 बजे से रात्रि के 8:00 बजे तक श्रीमती सुनीता चौधरी के नर्सिंग होम में काम करना व छुट्टी के दिन तेल बेचने का काम करती थी। संघर्ष और कड़ी मेहनत के बाद वर्ष 2003 में इन्हें नौकरी लग गई।
आपको किरण बेदी और शेरनी क्यों कहा जाता है ?
हम आपको बता दें कि सुश्री बबीता पंद्रे की पहली पोस्टिंग वर्ष 2003 में लखनादौन में हुई, वर्ष 2005 में उनका ट्रांसफर बंडोल में हो गया, फिर वर्ष 2011 में वो कान्हीवाड़ा आ गई और 5 मई 2021 को कान्हीवाड़ा के उगली बीट में आ गईं। गोंडवाना समय समाचार पत्र के उगली संवाददाता ने सुश्री बबीता पंद्रे से पूछा आपको किरण बेदी और शेरनी क्यों कहा जाता है ? तो, उन्होंने हंसते हुये कहा ये नाम भी मुझे आपके गांव में ही आकर मिला। क्यों कहते हैं किरण बेदी व शेरनी यह तो मुझे पता नहीं शायद वनों से संबंधित किसी भी प्रकार के अपराध को बेझिझक रोकती हूं, शायद इसी वजह से नई जगह में नया नाम मिला। जब गोंडवाना समय ने महिलाओं के लिए आपका क्या संदेश है तो उन्होंने कहा कि हमेशा हिम्मत और समझदारी से काम लेना चाहिए, किसी बात से डरना नहीं चाहिए, और यह बात दिमाग से निकाल दे कि हम लड़की है तो कुछ नहीं कर सकते बल्कि हम सब काम बहुत अच्छे से कर सकते हैं। सच में बहुत ताकत होती है, सच में बहुत बड़ी बात है, सच को कोई नहीं पछाड़ सकता, हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चले।