मनरेगा मजदूरी को भी जाति के आधार पर बांटना कहां तक सही है आखिर गरीब तो गरीब है
बरगी बांध डूब क्षेत्र की बीजोसन पंचायत में नहीं मिल रहा पर्याप्त रोजगार
सिवनी/घंसौर। गोंडवाना समय।
मनरेगा आई घर-घर खुशहाली लाई। मनरेगा से ग्रामीण अर्थव्यवस्था ठीक होने का ख्वाब और उसका सच बयां करती बीजासेन पंचायत में मनरेगा के कार्ड में लिखी यह लाइनें शासन-प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही हैं। रोजगार की तलाश में मजदूरों का गांव से शहर की ओर पलायन रोकने व उन्हें गांव में ही 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी के तहत सरकार द्वारा शुरू की गई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना बीजासेन पंचायत में अपने उद्देश्यों से भटकती नजर आ रही है।
मांगने पर भी हर हाथ को काम नहीं मिल रहा
मनरेगा योजना के प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन ना होने के कारण जॉब कार्ड धारक मजदूरों को काम की तलाश में भटकना पड़ रहा है। हम आपको बता दे कि बरगी बांध डूब क्षेत्र के बीजासेन पंचायत की एक तरफ बरगी बांध के विस्थापन से दंश झेलने को मजबूर है। वही दूसरी तरफ जिला और जनपद प्रशासन की उदासीनता के चलते हालात और भी चिंताजनक हैं। एक तरफ बांध बनने के पहले चारों तरफ खुशियां थी अब बांध बनने से मानो विस्थापितों पर दुख का पहाड़ टूट गया है। अब इसमें मांगने पर भी हर हाथ को काम नहीं मिल रहा। मजबूरन मजदूरी के लिए ग्रामीणों को जबलपुर और नागपुर पलायन करना पड़ रहा है।
ओबीसी वालों को 2 से 3 महीने का इंतजार करना पड़ता है
बीजासेन पंचायत क्षेत्र के जागरूक युवा भुवन बर्मन बताते है कि चालू सत्र में अभी तक एक भी परिवार को 100 दिन का काम नहीं मिल पाया है। चालू वित्तीय वर्ष में 121 परिवारों में से किसी को भी 100 दिन का रोजगार नहीं मिला, चालू वित्तीय वर्ष में करीब 8 माह में सिर्फ 15 दिन ही काम मिला। काम की तलाश में ग्रामीण भटक रहे हैं। बरगी बांध डूब क्षेत्र के बीजासेन गांव के हालात बहुत बदतर हैं।
बरगी बांध डूब क्षेत्र के बीजासेन गांव में मनरेगा की हालत खराब है। यह योजना अब गांवों से पलायन नहीं रोक पा रही है। कई काम अभी भी सुस्त पड़े हैं। 100 दिन की गारंटी देने वाली मनरेगा का हाल देखिए। आगे जागरूक युवा भुवन बर्मन बताते है कि जैसे तैसे अगर रोजगार मिल भी गया तो उन्हें ओबीसी समाज होने का खामियाजा भुगतना पड़ता है। एसटी, एससी और ओबीसी के लोग साथ साथ काम करने पर एससी, एसटी के लोगों का पेमेंट हो जाता है वहीं दूसरी तरफ ओबीसी वालों को 2 से 3 महीने का इंतजार करना पड़ता है मनरेगा मजदूरी को भी जाति के आधार पर बांटना कहां तक सही है इसका फैसला शासन, प्रशासन व सत्ता के जिम्मेदारों को करना चाहिये क्योंकि गरीब तो गरीब ही है।