दादा मोती रावण कंगाली जी ने गोंडवाना का स्वर्णिम इतिहास खोजा और संजोया, जिसे हम सबको संभालना है-तुलेश्वर सिंह मरकाम
पेनवासी दादा मोतीरावण कंगाली को गोंगपा राष्ट्रीय कार्यालय में की गई श्रद्धांजलि अर्पित
बिलासपुर। गोंडवाना समय।
गोंडवाना भू-भाग में निवासरत गोंडियजनों की धर्म, संस्कृति, राजपाठ, रीति-रिवाज, परंपरा, नदी, व ऐतिहासिक स्थलों सहित गांव के नाम रखने का वास्तविक कारण व उनका अर्थ क्या था ऐसी अनेकों इतिहास को खोजकर उसे साहित्य के रूप में लिपिबद्ध करने का ऐतिहासिक कार्य दादा मोतीरावण कंगाली जी ने किया। हमे चाहे आज का समय हो या हमारी आने वाली पीढ़ियां उन्हें गोंडवाना का इतिहास को जानने पढ़ने के लिये ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि इसके लिये उन्हें लििपबद्ध इतिहास पुस्तकों में पढ़कर जानने व याद रखने का रास्ता दादा मोतीरावण कंगाली जी ने आसान कर दिया है।
भले ही हमारे बीच में दादा मोतीरावण कंगाली जी नहीं है लेकिन उनके द्वारा गोंडियनजनों के लिये जो मेहतन गांव-गांव, जंगल, पहाड़, नदी आदि क्षेत्रों में घूम-घूमकर जो इतिहास को उन्होंने खोजकर व संजोकर हमारे लिये छोड़कर गये वह हमेशा हमारे बीच में यादगार बनकर रहेगी वहीं हम सबकी भी यह जिम्मेदारी व जवाबदारी है कि हमें इस स्वर्णिम इतिहास के एक-एक शब्द को संभालकर रखना है।
उक्त बाते गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर मरकाम ने गोंगपा के राष्ट्रीय कार्यालय बिलासपुर में दादा मोतीरावण कंगाली जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कार्यकर्ताओं को संदेश देते हुये अवगत कराया। इस दौरान उनके साथ गोंगपा के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम व अन्य पदाधिकारी व कार्यकर्तागण भी मौजूद रहे।
हीरा-मोती की जोड़ी ने गोंडवाना आंदोलन के लिये अपना जीवन कर दिया समर्पित
गोंगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर सिंह मरकाम ने दादा मोतीरावण कंगाली जी की पुण्यतिथि के अवसर पर आगे अपने संदेश में कहा कि गोंडवाना का इतिहास खोजने की बात हो या गोंडवाना समग्र क्रांति विकास आंदोलन के तहत कार्य करने के लिये दादा मोतीरावण कंगाली जी व दादा हीरा सिंह मरकाम जी की जोड़ी का स्वर्णिम इतिहास है। हमेशा एक साथ मिलकर उन्होंने गोंडवाना आंदोलन के सजग प्रहरी बनकर गोंडवाना में जनजागृति लाने के लिये मिलकर कार्य किया।
गोंडवाना साहित्य का खजाना छोड़ गये है दादा मोतीरावण कंगाली जी
वहीं इस दौरान गोंगपा के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम ने अपने संदेश में कहा कि जिस तरह बैंकों का बैंक भारतीय रिर्जव बैंक होता है, उसी बैंक में दादा मोतीरावण कंगाली जी ने अपना शासकीय सेवा का कार्यकाल जिम्मेदारी के साथ निभाया था।
वहीं दादा मोतीरावण कंगाली जी ने गोंडवाना के धार्मिक, सांस्कृतिक इतिहास को स्वर्णिम बनाने के लिये रात-दिन मेहनत करते हुये साहित्य के रूप में पुस्तकों का खजाना एकत्रित कर एक तरह साहित्य का महाबैंक के रूप में स्थापित किया, जहां पर गोंडवाना के स्वर्णिम इतिहास को जानने व खोजने के लिये किसी भी गोंडियजनों को भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
दादा मोतीरावण कंगाली जी द्वारा तैयार किये गये लिपिबद्ध साहित्य के खजाना रूपी बैंक से पुस्तक प्राप्त कर अध्ययन कर अपना इतिहास जान सकता है। वैसे भी कहा जाता है कि जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती वह अपना व समाज का विकास नहीं कर सकते है। इसलिये गोडवाना के लोगों को विकास करने से कोई नहीं रोक सकता है क्योंकि हमें हमारा इतिहास जानने के लिये दादा मोतीरावण कंगाली जी ने साहित्य का खजाना छोड़ गये है।