हिंदी ने विश्व मंच पर न सिर्फ अपनी श्रेष्ठ पहचान बनाई है अपितु वह उस पर मजबूती से खड़ी भी है
शासकीय महाविद्यालय कुरई में हिंदी दिवस मनाकर आयोजित की गई निबंध प्रतियोगिता
कुरई। गोंडवाना समय।
शासकीय महाविद्यालय कुरई में 14 सितंबर 2021 को राष्ट्रीय हिन्दी दिवस मनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय प्राचार्य प्रो बी एस बघेल ने की। संस्था प्रमुख श्री बी एस बघेल ने महाविद्यालय परिवार व उपस्थित विद्यार्थियों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए कहा कि हिंदी केवल हमारी भाषा ही नही पहचान भी है।
विद्यार्थियो ने पूरे मनोयोग, ईमानदारी, निष्ठा से प्रतियोगिता में सहभागिता की
इसके साथ ही महाविद्यालय में कार्यालय निदेशक स्वामी विवेकानंद करियर मार्गदर्शन उच्च शिक्षा विभाग भोपाल मध्यप्रदेश के निदेर्शानुसार स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर हिंदी पखवाड़ा के अंतर्गत संस्था स्तर पर ''आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश में हिंदी की भूमिका'' विषय पर निबंध प्रतियोगिता आयोजित की गई। इस प्रतियोगिता में महाविद्यालय के विद्यार्थी जिनमें कुमारी दीक्षा झारिया, शिफा अंजुम, दुर्गा गिरी, रेहाना खान, शहनाज खान, निकिता नागवंशी, शैलेश भलावी, अंकित दशमेर इत्यादि विद्यार्थियो ने पूरे मनोयोग, ईमानदारी, निष्ठा से प्रतियोगिता में सहभागिता की।
एक अच्छी संपर्क भाषा होने के सारे गुण विद्यमान है
संस्था स्तर पर आयोजित इस निबंध प्रतियोगिता को सफल बनाने में श्री जयप्रकाश मेरावी, श्री पवन सोनिक, श्री अनिल कुशराम, श्रीमति भावना तिवारी, श्री सतीश सूर्यवंशी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हिंदी दिवस के इस महत्वपूर्ण अवसर पर ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट आॅफिसर श्री पंकज गहरवार ने उपस्थित समस्त स्टॉफ एवं सभी विद्यार्थियों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए कहा कि हिंदी एक अदभुत भाषा है हिंदी ने विश्व मंच पर न सिर्फ अपनी श्रेष्ठ पहचान बनाई है अपितु वह उस पर मजबूती से खड़ी भी है। एक अच्छी संपर्क भाषा होने के सारे गुण विद्यमान है। कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव पर श्री गहरवार ने निबंध प्रतियोगिता में सहभागिता करने वाले प्रतियोगियों का हौसला बढ़ाते हुए हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार जयशंकर प्रसाद कवि की पंक्तियाँ जो मानव की अदम्य जिजीविषा, अकूत आत्मविश्वाश, संघर्ष करने की अटूट क्षमता व निरन्तर विकास के जज्बे को रेखांकित करती है को मंच पर साझा की
''इस पथ का उद्देश्य नहीं है
श्रान्त भवन में टिक जाना,
किन्तु पहुँचना उस सीमा तक
जिसके आगे राह नहीं है।''