अमुस तिहार में खेतों में अच्छी फसल की पैदावार के लिए अपने पुरखों/ देवी -देवताओं को सेवा अर्जि किया जाता है
विश्लेषण, पूरन सिंह कश्यप
बस्तर एक आदिवासी बहुल अंचल है, बस्तर त्योहारों के कारण प्रसिद्ध है। बस्तर में लगभग 85% से अधिक आबादी आदिवासी मुरिया, माड़िया, हल्बा, गोंड, धुरवा एवं भतरा जनजाति बस्तर में प्रमुख रूप से निवासरत हैं। यहां के आदिवासियों की पर्व को मानने की अपनी एक अलग शैली होती है, जैसे की माटी तिहार में धरती माता की प्रति जहां आभार प्रकट किया जाता है, नुआ खानी में फसलों को उपयोग से पहले अपने पुरखों/ देवी-देवताओं को अर्पित कर नए फसलों को दैनिक उपयोग में लाया जाता है।
नागर, हावड़ा ,कुल्हाड़ी कुचला के साथ कृषि उपकरण सामग्री को सेवा किया जाता है
वही दियारी तिहार में नए फसलों को पैदावार की खुशी में तिहार बनाया जाता है, अमुस तिहार में खेतों में अच्छी फसल की पैदावार के लिए अपने पुरखों/ देवी -देवताओं को सेवा अर्जि किया जाता है। वर्षा ऋतु आगमन के उपरांत समस्त जीव वनस्पति क्रियाशील हो जाते हैं अर्थात समस्त वनस्पति की अंकुरण तेज गति से होता है, जो कि मृदा में उपस्थित लवण तत्व (केल्सियम ,सल्फर , मैग्निशियम, जिंक बोरॉन) इत्यादि पौधे के शीर्ष भाग पर सुरक्षित व पौधा वृद्धि एवं विकास को नियंत्रण करते हैं।
जिसे पौधा के शीर्ष पतियों में खनिज तत्व की सांद्रता अधिक हो जाती है। जिसके कारण उनके उपभोक्ता मानो अपितु वन्यपशु के पाचन तंत्र में असंतुलित प्रभावित करती है। पौधे की पत्तियों में से खनिज तत्वों की मात्रा कम हो जिसकी उपयोग में लाया जाए पाचन तंत्र प्रभावित ना हो और न ही संक्रमित हो न ही रोग उत्पन्न हो सके तथा दूसरा कारण वर्षा ऋतु आगमन के उपरांत वनस्पतियों के साथ फगन्स वेकटेरिया वायरस व इनफेक्शन तेज गति से क्रियाशील हो जाते हैं। जो कि मनुष्य के साथ-साथ पशुओं पर रोग उत्पन्न कर हानि पहुंचाते है। इन सब को ध्यान में रखते हुए सर्वपरी महाविज्ञानिक पूर्वजों ने अमुस तिहार या कुसरी पडूम जैसे महान पर्व परंपराओं का निर्माण किये जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हो रही हैं ।
अमुस तिहार खेत फसलों के देखरेख नियंत्रण व संरक्षण के लिए पूरखों की तकनीकी में विभिन्न वनस्पतियों का सक्षम यह मिश्रण का उपयोग जो फंगस बैक्टीरिया के चहकदमी से दूर रखता है। खेतों में अच्छी फसल की पैदावार तथा था कीट प्रकोप आदि की सुरक्षा के लिए खेतों में सेवा अर्जी कर अपने पीतर के समस्त जीव के साथ नागर, हावड़ा ,कुल्हाड़ी कुचला के साथ कृषि उपकरण सामग्री को सेवा किया जाता है ।
प्रकृति जल, जंगल, जमीन, पहाड़ एवं नदी की सेवा अर्जी करते हैं
गांव के समस्त बुद्धिजीवी लोगों के द्वारा जंगलों से खोजकर लगड़ा जोड़ी, रसना, भेलवा पता, जंगल अदरक, हेदावरी, भेलवा, पाताल कांदा, शिरडी एवं अनेक जड़ी-बूटी खोजकर लाते हैं। सभी जड़ी बूटियों को पीस कर मिश्रण कर जानवरों को खिलाया जाता है। दूसरे और रसना, भेलवा डगाल को खेत में गाड़ दिया जाता है जो की फसलों में किट प्रकोप को दूर करने का कार्य करता है। इन सभी जड़ी बूटियों को अपने पुरखों यानी अपने पीतर के कुल देवी-देवताओं का वास स्थान गुड़ियों पर अर्पित किया जाता है। गुड़ी पर अपने देवी- देवता की पालकी के सिंदूर से सने और रंग बिरंगी फूलों से सजाया जाता है। गुड़ियों में विभिन्न आकृति प्रकृति जल, जंगल, जमीन, पहाड़ एवं नदी की सेवा अर्जी करते हैं अमुस तिहार बना लेते हैं।
अमुस तिहार से प्रारंभ होती है गोडोदी
अमुस तिहार से बच्चों के हारा गोड़ोदी का आनंद ले लिया जाता है, बस्तर में गोडोदी बाच भी इस अमुस तिहार से प्रारंभ होती है ।लगभग गोडोदी को एक माह तक चढ़ कर आनंद लेते हैं, इसके पश्चात नयाखानी पूर्व के दूसरे दिन इसे गोडोदी देव में अर्पित किया जाता है।