स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मध्यप्रदेश के प्रमुख जनजातीय व्यक्तित्व
शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालो की यही बाकी निशा होगी
डॉ. सुनीता पन्द्रों
भोपाल मध्य प्रदेश
अमर शहीद राजा शंकरशाह एवं कुँँवर रघुनाथ शाह
राजा शंकरशाह जी का जन्म 1783 ई. में हुआ था। गढ़मंडला के गोंड शासक-राजा शंकर शाह, निजाम शाह के प्रपौत्र तथा सुमेर शाह के एकमात्र पुत्र थे। उनके पुत्र का नाम कुंवर रघुनाथ शाह था। राजा शंकर शाह जमींदारों तथा आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। यह महारानी दुर्गावती के प्रतापी वंशज थे। जिन्होंने 1857 की क्रांति का नेतृत्व महाकौशल क्षेत्र से किया।
चारों और अनाचार और व्यभिचार का बोलबाला था
1857 की क्रांती का आगाज-जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52 वीं रेजीमेन्ट का कमांडर ले.ज. क्लार्क बड़ा अत्याचारी था। उसने छोटे-छोटे राजाओं और आम जनता को बहुत परेशान कर रखा था। चारों और अनाचार और व्यभिचार का बोलबाला था। जनता में हाहाकार मचा हुआ था। राजा शंकर शाह ने जनता और जमींदारों को साथ लेकर क्लार्क के अत्याचारों को खत्म करने के लिए संघर्ष का ऐलान किया। उधर क्लार्क ने अपने गुप्तचर भद्दसिंह को साधु के वेश में राजा शंकर शाह की तैयारी की खबर लेने गढ़पुरबा महल में भेजा। चूंकि राजा शंकर शाह धर्मप्रेमी थे, इसलिए उन्होंने साधुवेश में आए गुप्तचरों का न केवल स्वागत-सत्कार किया बल्कि उनसे निवेदन किया कि वे स्वतंत्रा संग्राम में योगदान करें। राजा ने युद्ध की योजना भी उन गुप्तचरों के सामने रख दी। खुशालचंद्र नामक गद्दार राजमहल की सभी गोंडवाना के राज थे जिन्हें अंगे्रजों ने अपने पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह सहित 18 सितम्बर 1858 को विप्लव भड़काने के अपराध में तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया था। ये दोनों गोंड समाज से थे। महाराजा शंकर शाह और राजकुमार रधुनाथ शाह वीरगती को प्राप्त हुये।स्वतंत्रता संग्राम सेनानी धीर सिंह
इनका जन्म 1820 ई. में रीवा राज्य के ग्राम कछिया टोला में हुआ। रीवा के महाराजा के आदेश पर धीर सिंह पंजाब के राजा रंजीत सिंह के यहां पर नौकरी के लिए चले गये। वहीं 1857 की क्रांति में शंकर शाह की सलाह पर धीर सिंह ने रीवा राज्य में क्रांति का आगाज किया।
जंगल सत्याग्रह टुरिया में जनजाति महिलाओं ने दिया बलिदान
शहीद मुड्डे बाई के नेतृत्व- सिवनी जिले के दुरिया ग्राम में जंगल सत्याग्रह हुआ जिसमें जंगल के अंतर्गत मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दुरिया गांव में घास काटकर जंगल सत्याग्रह चलाया गया।
अंग्रेजी हुकुमत की पुलिस ने धर पकड़ व आंतक से दुरिया ग्राम में कहर बरपाया। गोलीचान के दौरान टुरिया में जंगल सत्याग्रह में मुड्डे बाई नेतृत्व करते हुए उनके साथ में रैनो बाई, देभो बाई भिलवा, बिरजू भोई शहीद हुये।
रघुनाथ सिंह मंडलोई जी
रघुनाथ सिंह मंडलोई बड़वानी टाँडा बरूद भिलाला जनजाति के व्यक्तित्व जिन्होंने 1857 की क्रांति में सीताराम कँवर का साथ दिया। बीजागढ़ किले में मेजर कीटिंग ने धोखे से बंदी बनाया।
गंजन सिंह कोरकू-आजादी के महानायक
इनका जन्म बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी में हुआ था। घोड़ाडोंगरी जंगल सत्याग्रह-गांधी जी सविनय अवज्ञा आंदोलन के आहवान पर घोड़ाडोंगरी जिला बैतूल में वर्ष 1930 में जंगल सत्याग्रह का आंदोलन गंजन सिंह कोरकू के द्वारा किया गया। इसी जंगल सत्याग्रह में गंजन सिंह कोरकू के साथी बंजारी सिंह कोरकू ने अपने प्राणों का बलिदान किया।
बादल भोई जी के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता
छिंदवाड़ा जिले के इमरत भोई-बादल भोई एक क्रांतिकारी नेता थे। इनका जन्म 1845 में परासिया तहसील के डुंगरिया तीतरा गांव में हुआ था। इन्होंने असहयोग आंदोलन के समय 1923 में नेतृत्व करते हुए हजारों आदिवासियों के साथ कलेक्टर बंगले का घेराव किया। प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज में ये घायल हुए और इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके उपरांत इन्हें वन नियम तोड़ने के लिए गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। ऐसी मान्यता है कि सन 1940 में अंग्रेजी शासक द्वारा जहर दिए जाने के बाद उन्होंने अपनी अंतिम सांस जेल में ही ली। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
बहुत कम उम्र में बिरसा मुण्डा वीरगति को प्राप्त हो गये
बिरसा मुण्डा महानायक का जन्म -15 नवम्बर 1875 में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही अंग्रेज पुलिस, अधिकारियों, क्रिश्चियन मिशनरियों, भू-पतियों एवं महाजनों के शोषण व अत्याचारों के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा आदिवासियों के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया था। अंग्रेजों द्वारा उन्हें 3 फरवरी 1900 को इनको बंदी बनाया गया था जहां वे 9 जून 1900 को राँची जेल में वीरगति को प्राप्त हुए।
मंशु ओझा जी की बैतुल जिले में अनेक आंदोलन में रही सक्रिय भूमिका
मंशु ओझा जी जिन्होंने ग्राम घोड़ाडोंगरी (बैतूल) में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था। उनका जन्म: ग्राम राताभारी, गोंड जाति की उपजाति ओझा समाज में हुआ था। बैतूल जिले में अनेक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका रही है। वहीं 4 नवम्बर 1942 से 20 जुलाई 1944 तक नरसिंहपुर जेल में इन्हें अंग्रेजों द्वारा कई तरह की यातनायें दी गई। वहीं 28 अगस्त 1981 को घोड़ाडोंगरी (जिला बैतूल) में इनका देहावसान।
पैमा फाल्या पिथौरा चित्रकला में उस्ताद थे
पैमा फाल्या इनका जन्म जन्म चंद्रशेखर आजाद नगर, अलीराजपूर में हुआ था। अप्रैल 2020 में उनका निधन हो गया। पैमा फाल्या द्वारा भील आदिवासियों का विश्व प्रसिद्ध पिथौरा चित्रकला में उस्ताद थे। पिथौरा चित्रकला की विषेषताएँ-पिथौर पेंटिंग भील जनजाति की एक विषिष्ट कला है। यह कला भारत में एक मात्र ऐसी कला है, जिसमें विषिष्ट ध्वनि सुनना, उसे समझना और लेखन से चित्र रूप प्रदान करना प्रमुख है। इस चित्रकाला में घोड़ा पिथौर का केंद्र होता है। पैमा फाल्या को प्राप्त सम्मान-1986 में इन्हें शिखर सम्मान तथा 2007 में तुलसी सम्मान से पुरस्कृत किया गया।
प्रथम महिला उपमुख्यमंत्री थी बुआ जी
स्व. जमुना देवी, इनका जन्म-19 नवंबर 1929, सरदारपुर (धार) में हुआ था इनकी मृत्यु 24 सितंबर 2010 को हुई जिन्हें उपनाम-बुआजी से संबोधित किया जाता था। उनकी उपलब्धियाँ मध्यप्रदेश की प्रथम महिला उपमुख्यमंत्री (1998) एवं पहली महिला नेता प्रतिपक्ष (2003, 12 वीं विधानसभा की) बनने का गौरव प्राप्त है। सम्मान- इन्हें 2001 में भारत ज्योति सम्मान से सम्मानित किया गया।
पहले जनजाति वर्ग के मुख्यमंत्री
श्री नरेश सिंह (राजा) इनका जन्म 21 नवम्बर, 1908 को जन्मे राजा नरेश चंद्र सिंह छत्तीसगढ़ में स्थित रायगढ़ की सारंगढ़ रियासत के शासक थे। यह मध्यप्रदेश के पहले जनजातीय मुख्यमंत्री रहे।