भारत में ''विश्व के इंडीजेनस लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस'' को विफल करने का षणयंत्र-डॉ. सूरज धुर्वे
मीडिया और शिक्षा व्यवस्था ने एक सोची समझी साजिश के तहत इनकी छवि को नकारात्मक ढंग से पेश किया है
देश का युवा इन्ही आयोजनों का हिस्सा बनकर संयुक्त राष्ट्र के अभियान को नष्ट करने के प्रयास में न चाह कर भी शामिल हो रहा है
इस महत्त्वपूर्ण और गौरवशाली दिन को भी स्थानीय मुद्दों में लपेटकर खत्म कर दिया जा रहा है
आज विश्व के इंडीजेनस लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस है और इस पावन अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ और सादर सेवा जोहार प्रेषित करते हुए मुझे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है। विश्व के इंडीजेनस लोगों के बारे में जानना बहुत जरूरी है क्यूंकि भारत या विश्व के ज्यादार आबादी इनके बारे में बहुत कम जानकारी रखती है और जो जानकारी रखती है वह भी आधी अधूरी, गलत, भ्रामक और द्वेषपूर्ण होती है।
यहाँ तक की इन समुदायों से संबंध रखने का दावा करने वाले लोगों को भी अपनी वास्तविक पहचान को लेकर भ्रम और शंका बनी रहती है। तथाकथित मुख्य धारा और सभ्य समाज के लोगों के दिलो दिमाग में कोइतूरों यानि इंडिजेनस लोगों की एक नकारात्मक छवि बनी हुई है और यह छवि यहाँ के लोगों की उपनिवेशवादी सोच, सामंतशाही सोच और यहाँ की शिक्षा व्यवस्था कि देन हैं।
मीडिया और शिक्षा व्यवस्था ने एक सोची समझी साजिश के तहत इनकी छवि को नकारात्मक ढंग से पेश किया है। यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले दिनों में इन इंडीजेनस लोगों की पीढ़ियों को और भी अनगिनत समस्याएँ झेलनी पड़ सकती हैं और उन्हे समानता, शिक्षा, स्वतन्त्रता, गरिमा और सम्मान के लिए तरसना पड़ सकता है।
आइये पहले जान लेते हैं हैं कि इंडीजेनस लोग कौन होते है
इस दिवस को मनाने के पीछे ऐसे कोइतूरों के प्रति लोगों की पारंपरिक सोच को बदलना होगा और उनके हितो अधिकारों सुरक्षित करने वाले सामाजिक अनुबंधों/ संधियों का नवीनीकरण करना होगा। संयुक्त राष्ट्र ने पूरे विश्व के लगभग 90 देशों में बिखरे वहाँ के लगभग 46.7 करोड़ इंडीजेनस लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम किया है और उनमें एक दूसरे के प्रति संवेदना और सदभावना विकसित करने की जरूरतों पर बल दिया है। तो आइये पहले जान लेते हैं हैं कि इंडीजेनस लोग कौन होते हैं और कैसे इन्हे विश्व के अलग अलग देशों में जाना और पहचाना जाता है।
इंडीजेनस या कोइतूर लोग ऐसी प्राचीन या मूल आबादी के बंशज हैं जो किसी विजय, उपनिवेश या वर्तमान राज्य की सीमाओं की स्थापना के पहले से ही उस भौगोलिक क्षेत्र में रहते आए हैं। वे आज भी अपनी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीितक संस्थाओं को बनाए रखना चाहते हैं, चाहे उनकी कानूनी स्थिति कुछ भी हो। (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन 2021)
कोयतूर का सीधा-सीधा अर्थ वही है जो इंडीजेनस शब्द का है
इंडीजेनस लोगों को लोगों को अक्सर प्रचलित और स्थानीय शब्दों से भी जाना जाता है जैसे कि कोइतूर लोग, आदिम, अबोर्जिनल लोग, ट्राइब, देशी लोग, स्वदेसी लोग, आदिवासी लोग, प्रथम राष्ट्र, मूलनिवासी, आदिवासी, वनवासी, गिरिजन, जनजाति, अनुसूचित जनजाति, शिकारी-संग्रहकर्ता, पहाड़ी जनजाति, जंगली जनजाति इत्यादि। विश्व के इंडीजेनस लोगों के लिए प्रयोग किए जाने वाले उपरोक्त सभी शब्दों में कोयतूर या कोइतूर शब्द सबसे उचित और सबसे करीबी अर्थ देता है।
कोयतूर या कोइतूर शब्द प्राचीन भारत के गोंडी भाषा (द्रविड़ भाषा समूह) का शब्द है जिसका अर्थ बिलकुल वही होता है जो इंडीजेनस शब्द का होता है। कोयतूर( कोया+ नत्तूर) शब्द दो अन्य शब्दों से मिलकर बना है जिसमें से पहले शब्द है ''कोया'' ( कोया मूरी द्वीप यानि प्राचीन भारत की भूमि पर पैदा हुए सर्व प्रथम मानव) से और दूसरा शब्द है नत्तूर जिसका अर्थ होता है खून, वंश या औलाद। यानि कोयतूर का सीधा-सीधा अर्थ वही है जो इंडीजेनस शब्द का है।
जिसका सम्पूर्ण अर्थ होता है भारत की प्राचीन धरती (आर्यों, मुगलों और अंग्रेजों के आगमान से पूर्व) पर जन्म लेने वाले मूल मानव के वंशज। इसलिए भारत में इंडीजेनस शब्द का सबसे उचित समानार्थी और उचित प्रतिनिधित्व करने वाला शब्द कोइतूर या कोयतूर है। ठीक इसी तरह आॅस्ट्रेलिया में अबोरीजिनल्स, अमेरिका में नेटिव अमेरिकन (रेड इंडियन), कनाडा में प्रथम नागरिक कहते हैं।
कोइतूर का सीमित अर्थों में प्रयोग किया जाना एक सोची समझी साजिश है
कोइतूर एक संज्ञा है जो आपके नाम, आपकी पहचान और आपकी गरिमामयी उपस्थिती की व्याख्या करता है। जैसे आपका अपना खूबसूरत नाम लेकिन आदिवासी, वनवासी, गिरिजन, जंगली, पहाड़ी, इत्यादि विशेषण हैं जो कोइतूरों की विशेषता बतलाते हैं न कि उनकी वास्तविक पहचान। जैसे किसी को उसके वास्तविक नाम से न बुलाकर उसे नाटे, मोटे, छोटे, कल्लू इत्यादि नाम से बुलाया जाये तो कैसा लगेगा ?
इस बात पर आप खुद विचार कर के देखिये। दुर्भाग्य देखिये कि अंग्रेजों के साथ-साथ भारत के ज्यादातर लेखक और साहित्यकार कोइतूर शब्द को सीमित अर्थों में प्रयोग करते हुए उसकी गरिमा और उसके विस्तृत अर्थ को सीमित कर दिये और और कोइतूर शब्द को भारत की एक विशेष इंडिजेनस समूह ''गोंड'' से जोड़ दिये और बता दिये कि कोयतूर या कोइतूर का मतलब गोंड होता है जब कि कोइतूर इंडीजेनस शब्द की तरह एक विस्तृत आयाम वाला शब्द है, जिसका सीमित अर्थों में प्रयोग किया जाना एक सोची समझी साजिश है।
अंग्रेजों द्वारा दिये गए शब्द अबोर्जिनल्स, एनिमिस्ट, ट्राइब्स पर बात करते हैं
आइये अब जरा उन अन्य शब्दों को भी देख लेते हैं जो भारत में इस शब्द का प्रतिनिधित्व करने की गलत कोशिश करते हैं। सबसे पहले अंग्रेजों द्वारा दिये गए शब्द अबोर्जिनल्स, एनिमिस्ट, ट्राइब्स पर बात करते हैं। अबोर्जिनल्स का मतलब किसी क्षेत्र में मौजूद अपनी तरह का पहला या सबसे पुराना ज्ञात व्यक्ति और उसके वंशज।
यह शब्द भी आॅस्ट्रेलिया जैसे देशों में इंडीजेनस शब्द का समानार्थी है और कोइतूर शब्द से मिलता जुलता है। एनिमिस्ट ऐसे लोगों को कहते हैं जो सभी प्राकृतिक चीजों पर विश्वास करता है, जैसे कि पौधे, जानवर, चट्टानें, और गड़गड़ाहट, आत्माएं हैं और मानव घटनाओं को प्रभावित कर सकती हैं और एमिनिस्ट कोई भी हो सकता है यह एक मान्यता का मामला है। जब कि इंडीजेनस एक पहचान का मामला है।
ट्राइब या जनजाति इसे भारत सरकार का संवैधानिक आधार मिला हुआ है
ट्राइब या जनजाति, नृविज्ञान में, छोटे समूहों (बैंड के रूप में जाना जाता है) के एक समूह के आधार पर मानव सामाजिक संगठन का एक काल्पनिक रूप है, जिसमें अस्थायी या स्थायी राजनीतिक एकीकरण होता है, और सामान्य वंश, भाषा, संस्कृति और विचारधारा की परंपराओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।
यह शब्द भी कोइतूरों के वास्तविक पहचान को प्रदर्शित नहीं करता लेकिन बड़े अर्थों में स्वीकार्य है। इसे भारत सरकार का संवैधानिक आधार मिला हुआ है और अनुसूची के रूप में ट्राइब्स को एकत्रित करता है लेकिन भारत सरकार के कई महकमें इस शब्द को भी छोडकर गैर संवधानिक शब्दों जैसे आदिवासी, आदिम और वनवासी शब्दों का प्रयोग करते हुए देखे जा सकते हैं।
जिससे लोग आदिवासी और वनवासी में उलझ जाएँ और इंडीजेनस की तरफ ध्यान न दे
भारत सरकार ने 2007 में ''इंडीजेनस लोगों के अधिकारों की संयुक्त राष्ट्र घोषणा'' पर हस्ताक्षर किए लेकिन इस प्रावधान/सटीकता के साथ कि भारत के सभी निवासियों को यूरोपीय उपनिवेशवादियों के विपरीत इंडीजेनस माना जाना चाहिए यानि की इसका मतलब हुआ कि सभी भारतीय इंडीजेनस हैं (रफेल रसेल 2013)। जबकि भारत के कोइतूरों की सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, शैक्षिक, राजनीतिक, भाषाई और अन्य रहन-सहन बाहर से आई आबादी से पूर्णतया भिन्न है।
अब इसको अलग रंग देने के लिए आदिवासी और वनवासी शब्दों की बाइनरी (द्वय) खड़ी की गयी, जिससे लोग आदिवासी और वनवासी में उलझ जाएँ और इंडीजेनस की तरफ ध्यान न दें लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के इंडीजेनस लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस की संकल्पना देकर इस दबे हुए मुद्दे को फिर से उभार दिया है। जिससे भारत में खलबली होना लाजमी है।
अब कुछ राजनैतिक दल और सरकारें इंडीजेनस मुद्दे को दबाने के लिए (संयुक्त राष्ट्र के मंशा के विपरीत) आदिवासी सम्मान दिवस, आदिवासी दिवस, वनवासी अधिकार दिवस आदि का आयोजन कर और करवा रही हैं और इस देश का युवा इन्ही आयोजनों का हिस्सा बनकर संयुक्त राष्ट्र के अभियान को नष्ट करने के प्रयाश में न चाह कर भी शामिल हो रहा है।
अखबारों और टी वी में हमेशा इसी शब्द को रात दिन तोते कि तरह रटते रहते हैं
भारत सरकार के अलावा भी कई दक्षिण एशियाई देशों ने इंडीजेनस शब्द को अपने संविधान और राजनैतिक प्रपत्रों में जगह नहीं दी है और इन समूहों को अन्य कई नामों से जानते पहचानते हैं। जैसे भारत में अनुसूचित
जनजाति(Scheduled Tribes), लंका
में वेद्दा (Vedda),
नेपाल में खस (Khas), बांग्लादेश में चकमा (Chakma)
के नाम से जानते हैं वास्तव में ये सभी कोइतूर ही हैं। भारत में गजब का खेल हो रहा है एक पूरी लाबी है जो अरबों रुपये लगाकर पत्र पत्रिकाएँ, जर्नल, किताबें, प्रकाशन, साहित्य और मीडिया द्वारा एक खास शब्द ''आदिवासी'' का प्रचार प्रसार करते रहते हैं।
आपको अखबारों और टी वी में हमेशा इसी शब्द को रात दिन तोते कि तरह रटते रहते हैं। इस देश के भोली भाली कोइतूर जनता मात्र 100-125 वर्षों में ही अपने प्राचीन पहचान को भूल गयी और मात्र पाँच पीढ़ियों के बाद आज इसी शब्द को सच मानकर अपने दुश्मनों के जाल में फंस गयी है।
अपनी सारी समस्याओं के लिए मिलजुल कर आवाज उठाएँ और सरकारों पर दबाव बनाएँ
आज इसी दिन की ही देन है जिसके कारण विश्व के 90 से ज्यादा देश इस मुहिम का हिस्सा बन चुके हैं और भारत जैसी सरकारों पर एक अंतराष्ट्रीय दबाव बनाने में सफल होते दिखाई दे रहे हैं। प्रत्येक वर्षों की भांति इस वर्ष भी संयुक्त राष्ट्र ने कोविड-19 के कारण पैदा हुई विषम परिस्थियों का अध्ययन किया और इस दशा में पूरे विश्व के इंडीजेनस लोगों के सामने आई कई समस्याओं की तरफ पूरी दुनिया का ध्यानाकर्षण किया और इस विश्वव्यापी महामारी में इंडीजेनस लोगों के साथ हुए भेदभाव, असमानता और अनैतिक व्यवहारों की तरफ लोगों को जागरूक करने का निर्णय किया और बताया कि इस महामारी के दौरान कोई पीछे न छूट जाये और इसलिए सामाजिक अनुबंधों और संधियों को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत पर बल दिया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने पूरे विश्व के इंडीजेनस लोगों के पिछड़ेपन को गंभेराता से लिया है और नए सामाजिक अनुबंधों द्वारा विश्व के इंडीजेनस लोगों को मुख्य धारा के साथ खड़ा करने का सपना देखा है। आइये 9 अगस्त 201 दिन सोमवार को हम सभी दुनिया के सभी इंडीजेनस लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलकर खड़े हो जाएँ और अपनी सारी समस्याओं के लिए मिलजुल कर आवाज उठाएँ और सरकारों पर दबाव बनाएँ। जिससे विश्व भर की सरकारें इंडीजेनस लोगों के अधिकारों और हितों की सुरक्षा के लिए नए सामाजिक अनुबंधों का गठन करें और उन्हे इंडीजेनस लोगों के अनुकूल बनाएँ।
संदर्भ
1.
Office
of the Registrar General and Census Commissioner, Inisa, Government of India
(Census India 2011, 2001)https://censusindia.gov.in/DigitalLibrary/reports.aspx
2.
Ministry
of Tribal affairs, Government of India
https://tribal.nic.in/
3. International Labour Organization (ILO 2021)-Who
are the indigenous and tribal peoples?
https://www.ilo.org/global/topics/indigenous-tribal/WCMS_503321/lang--en/index.htm
4. RaphelRousseleau. Claiming Indigenousness in India. 7
February 2021. Available athttps://booksandideas.net/Claiming-Indigenousness-in-India.html#nb2
5.
United
Nations: International
Day of the World's Indigenous Peoples, 9 August
https://www.un.org/en/observances/indigenous-day
सर आपने सही कहा है।
ReplyDeleteप्रवीण जी आप गोंडी भाषा सीखना चाहते तो आपको संजू वाड़ीवा सर से क्लास करनी होगी
ReplyDeleteThanks sir जानकारी के लिए
ReplyDelete✍✍✍👍👍👍सेवाजोहार सर जानकारी देने के लिए
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