रविन्द्र डामोर का आर्थिक कठिनाईयों से गुजरा शैक्षणिक सफर, कांस्टेबल बने मेहनत कर आरएएस में हुये चयनित
संवाददाता/प्रभुलाल गरासिया
उदयपुर/राजस्थान। गोंडवाना समय।
आर्थिक रूप से कमजोर कृषि कार्य व श्रमवीर किसान के पुत्र रवीन्द्र डामोर ने कक्षा बारहवी तक गांव में बिजली नहीं होने के बाद भी अपनी मेहनत, लगन, निरंतर प्रयास से कांस्टेबल के पद पर भर्ती होने के बाद सब इंस्पेक्टर बनने के बाद आरएएस में चयनित होकर उन्होंने जता दिया है कि यदि लक्ष्य को पाने के प्रति यदि आपने कड़ी मेहनत करते हुये प्रयास किया तो हर मुश्किल आसान हो जाती है एवं सफलता भी आपको आसानी से मिल जाती है फिर भले ही संघर्ष का सफर कठिन क्यों न हो, सतत कोशिश के मार्ग पर चलते हुये मंजिल मिल ही जाती है।
गांव में नही थी बिजली, चिमनी में की पढ़ाई
हम आपको बता दे कि रविन्द्र डामोर जो कि कतरवास कला, तहसील खेरवाड़ा जिला उदयपुर जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर दूर राजस्थान गुजरात सीमा का अंतिम गांव के निवासी है। उनकी माता स्वर्गीय लक्ष्मी देवी पिता श्री ननजी डामोर कृषि कार्य एवं मजदूरी था। पारिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से ठीक नहीं थी फिर भी माता-पिता दोनों ने मजदूरी करके रविन्द्र डामोर को पढ़ाया है तथा कक्षा बारहवीं तक गांव में बिजली की व्यवस्था नहीं होने से चिमनी जला कर पढ़ाई पूरी किया।
रविन्द्र का शैक्षणिक सफर परिणाम में हमेशा रहा अग्रणी
रविन्द्र डामोर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा के तहत कक्षा 1 से 5 राजकीय प्राथमिक विद्यालय जडोला कातरवास कलां खेरवाड़ा में ही प्राप्त किया। वहीं कक्षा 6 से 8 राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय कातरवास कला में और माध्यमिक शिक्षा राजकीय माध्यमिक विद्यालय कानपुर कातरवास तहसील खेरवाड़ा जिला उदयपुर प्राप्त करने के बाद उच्च माध्यमिक शिक्षा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बावलवाडा खेरवाड़ा उदयपुर से प्राप्त किया। रविन्द्र डामोर जब कॉलेज शिक्षा में कक्षा बारहवीं में पढ़ते थे उस समय उनका चयन राजस्थान पुलिस कांस्टेबल के पद पर हो गया था, प्रशिक्षण के बाद नौकरी करते हुए स्वयंपाठी के रूप में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूर्ण किया। वहीं शैक्षणिक अध्ययन के दौरान विशेष उपलब्धियां में कक्षा आठवीं बोर्ड प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया, कक्षा दसवीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करते हुये कक्षा बारहवीं में भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण विद्यालय टॉपर रहे।
शैक्षणिक अध्ययन के दौरान कठिनाइयां
रविन्द्र डामोर को मंजिल ऐसे ही नहीं मिल गई, उनकी शैक्षणिक दौर का सफर अत्याधिक संघर्षमय रहा है। उन्होंने कक्षा सातवीं एवं कक्षा नवी में एक बार पढ़ाई छोड़ी लेकिन पुन: विद्यालय आ गये उसका कारण आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण बाल मजदूरी के रूप में गुजरात में जाना पड़ा उसके बाद उन्होंने कक्षा 11 वीं विज्ञान विषय लेना चाहता था परंतु वहां पर भी आर्थिक स्थिति का सामना करना पड़ा और आर्ट्स लिया जब 12 वी में कांस्टेबल के पद पर चयन हुआ था बाकी की पढ़ाई जारी रखना बहुत मुश्किल था परंतु नौकरी के दौरान प्राइवेट के रूप में स्नातक की पढ़ाई पूरी किया।
इनका रहा विशेष मार्गदर्शन
वहीं रविन्द्र डामोर को शैक्षणिक अध्ययन में मार्गदर्शन एवं सहयोग करने वालों में सबसे ज्यादा अहम भूमिका प्राथमिक शिक्षा में उनके बड़े भाई साहब स्वर्गीय कालुलाल डामोर का विशेष योगदान रहा है। जिसके कारण रविन्द्र डामोर की प्राथमिक शिक्षा की नींव मजबूत हुई, इसके अलावा उन्हें प्राथमिक शिक्षा के अध्यापक श्री नाथू सिंह गरासिया, कैलाश जी का विशेष योगदान रहा। इन्होंने रविन्द्र डामोर को अंधकारमय जिंदगी से बाहर निकाला।
यही सोचकर पढ़ते थे कि परीक्षा के परिणाम में कक्षा में टॉप आना है
रविन्द्र डामोर का पढ़ाई के दौरान लक्ष्य हमेशा यह रहता था कि जब भी वे पढ़ते थे तो यही सोचकर पढ़ते थे कि परीक्षा के परिणाम में कक्षा में टॉप आना है। उन्हें कक्षा ग्यारहवीं तक ग्रामीण परिवेश से होने के कारण सरकारी नौकरी के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी। कक्षा बारहवीं के दौरान रविन्द्र डामोर को कांस्टेबल के चयन प्रक्रिया के बारे में जानकारी मिली तथा चयन भी हो गया। इसके बाद उनकी पहली पोस्टिंग वह जब 12 वीं कक्षा में अध्ययनरत थे, उस समय उनकी उम्र 17 वर्ष 5 माह थी क्योंकि उस समय कांस्टेबल के पद पर न्यूनतम उम्र में छूट मिलने के कारण वह 18 वर्ष से पहले ही सरकारी नौकरी में आ गये थे।
कांस्टेबल के पद पर चयन होने के बाद मेरी जिंदगी की असली परीक्षा शुरू हुई
रविन्द्र डामोर बताते है कि कांस्टेबल के पद पर चयन होने के बाद मेरी जिंदगी की असली परीक्षा शुरू हुई। यहां पर आने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मुझे आगे बढ़ना चाहिए अब तक मुझे राजस्थान प्रशासनिक सेवा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी पर मुझे पहले कॉलेज की शिक्षा पूरी करनी थी तो मैंने स्वयंपाठी के रूप में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया। इसी दौरान मेरे एक सहकर्मी साथी का चयन राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर हुआ तो मैंने भी इस पद की परीक्षा सिलेबस का अध्ययन किया तथा निर्णय लिया कि मैं भी सब इंस्पेक्टर बनूंगा। मैंने स्नातक के साथ तैयारी शुरू कर दी तथा चयन हुआ और दूसरी रैंक बनी। उसके बाद मैंने 2 वर्षों का कठिन प्रशिक्षण जयपुर स्थित राजस्थान पुलिस अकादमी से पूरा किया तथा जिला चित्तौड़गढ़ में प्रथम पोस्टिंग हुई।
रविन्द्र डामोर ने ठान लिया था कि राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन होकर ही दम लुंगा
रविन्द्र डामोर बताते है कि इस दौरान मेरी जिंदगी में दो बड़ी घटनाएं घटी, जिसमें मेरी माता जी एवं मेरे बड़े भाई एवं मार्गदर्शक का आकस्मिक देहांत हो गया। पूरे परिवार की जिम्मेदारी अब मेरे पास आ गई थी परंतु एक दिन मैंने निर्णय लिया कि मैं राजस्थान प्रशासनिक सेवा की तैयारी करूंगा और यही सोच लिया कि चयन होकर ही दम लूंगा। अब परिवार की जिम्मेदारी मैंने अपने छोटे भाई एवं सिरोही जिले में कांस्टेबल के पद पर पदस्थापित प्रवीण कुमार एवं मेरी पत्नी श्रीमती मंदाकिनी डामोर को दे दी तथा नोकरी करते हुए तैयारी शुरू कर दी जब भी टाइम मिला पढ़ाई की तथा राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन हो भी गया।
संघर्ष ही जीवन है कभी हार मत मानो
रविन्द्र डामोर में अपने मेहनत भरे संघर्ष के सफर के साथ अपने संदेश में यह बताते हुये युवाओं व युवतियों को यही संदेश देते हुये कहते है कि मैं विशेष रूप से उन छात्रों को कहना चाहता हूं जो अभाव में पढ़ाई करते हैं, उठो जागो और पढ़ो, जीवन में एक लक्ष्य बनाओ और तब तक मत रुको जब तक आप को मंजिल नहीं मिल जाती तथा उन छात्रों को भी मैं कहना चाहूंगा जो सरकारी विद्यालय में पढ़ते हैं।
बड़ी परीक्षाओं के लिए केवल कोचिंग के भरोसे नहीं रहे
आगे अपने संदेश में रविन्द्र डामोर कहते है कि राजस्थान में सरकारी विद्यालय का स्तर बहुत ही शानदार है और राजकीय विद्यालय से भी राजस्थान प्रशासनिक सेवाओं की प्रतिष्ठित परीक्षाओं में चयन किया जा सकता है। रविन्द्र डामोर कहते है कि मेरे जनजातीय क्षेत्र में रहने वाले मेरे युवाओं और छात्र-छात्राओं को एक संदेश देना चाहता हूं कि शिक्षा ही आगे बढ़ने का एकमात्र साधन हैं। बड़ी परीक्षाओं के लिए केवल कोचिंग के भरोसे नहीं रहे स्वयं मेहनत करें खुद का विश्लेषण करें और हर एक टॉपिक का टारगेट तय करे।