विश्व आदिवासी दिवस पर अवकाश घोषित करने, घंसौर ब्लॉक की क्षेत्रिय समस्याओं व सरपंच के अधिकारों व लंबित मांगों को लेकर सौंपा ज्ञापन
घंसौर सरपंच संघ ने महामहिम राज्यपाल व मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन
घंसौर/कहानी। गोंडवाना समय।
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर 9 अगस्त को शासकीय अवकाश घोषित करवाने, विधानसभा सत्र विश्व आदिवासी दिवस के दिन आगे बढ़ाये जाने के साथ ही सरपंच के अधिकारों व लंबित मांगों को लेकर सरपंच संघ ब्लॉक घंसौर के द्वारा जनपद पंचायत घंसौर के अंतर्गत ग्राम पंचायतों के सरपंच गणों की मौजूदगी में 23 जुलाई को ग्राम पंचायत छीतापार में बैठक आयोजित की गई जहां पर विचार-विमर्श व निर्णय लेने के पश्चात ज्ञापन सौंपा गया।
जिसमें तहसीलदार के माध्यम से महामहिम राज्यपाल के नाम से और मुख्यमंत्री के नाम जनपद पंचायत सीईओ के माध्यम से ज्ञापन दिया गया है। ज्ञापन सौंपते समय घंसौर ब्लॉक सरपंच संघ के अध्यक्ष सुखदेव पंद्रे, भजन भलावी सचिव, कोमल नेताम मनोनीत सदस्य, दीनदयाल काकोड़िया मीडिया प्रभारी, अंनत मरकाम उपाध्यक्ष शामिल रहे।
उत्सव के रूप में मनाता है आदिवासी समाज
विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त 2021 को शासकीय अवकाश घोषित करवाने एवं 9 अगस्त 2022 से आयोजित विधानसभा सत्र की तिथि आगे बढ़ाने मध्य प्रदेश एक आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है। आदिवासी समाज अनादि काल से ही अपने विभिन्न सांस्कृतिक, परंपराओं और रीति-रिवाजों को सर्वाधिक एवं सुरक्षित करने के लिए जाना जाता है। जिससे संवैधानिक तौर पर भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति एसटी के रूप में एक अलग एवं विशिष्ट पहचान मिली है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पूरे विश्व के आदिवासियों की संस्कृति, रीति रिवाज, परंपराओं समस्त अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए प्रति वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाए जाने की घोषणा दिसंबर 1994 में की गई थी। इस दिवस को संपूर्ण देश में आदिवासी समाज उत्सव के रूप में अपने अस्तित्व पहचान को सुरक्षित व संरक्षित करने के लिए अत्यंत हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाता है।
पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ शासकीय अवकाश किया था घोषित
पूर्व में कांग्रेस की सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने वर्ष 2019 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के शुभारंभ अवसर पर सरकारी अवकाश घोषित कर प्रदेश के दो करोड़ आदिवासियों को अपनी अनूठी संस्कृति, परंपरा, रीति रिवाजों को सुरक्षित करने के लिए एक सकारात्मक पहल की थी लेकिन वर्ष 2020 में भाजपा की सरकार में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को घोषित अवकाश को समाप्त कर दिया गया है। जो कि मध्य प्रदेश के बाहुल्य आदिवासियों की संवैधानिक संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज, पहचान के खिलाफ फैसला लिया गया है। मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले से प्रदेश के करोड़ों आदिवासियों में नकारात्मक संदेश भी गया है।
विश्व आदिवासी दिवस के दिन भी लगेगा विधानसभा सत्र
इसी क्रम में आगामी विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मध्यप्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र आयोजित किया गया है। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि मध्य प्रदेश के आदिवासियों की मूल भावना पर प्रत्यक्ष रूप से कुठाराघात किया जा रहा है। वर्तमान में मध्यप्रदेश विधानसभा में आदिवासी समाज से सरपंच, उप सरपंच, वार्ड पंच प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उन्हें पूर्ण विश्वास है कि आगामी 9 अगस्त 2021 से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र के निर्णय पर असहमत होंगे।
ग्राम पंचायत सचिव पासवर्ड को सरपंच प्रधान को दिया जावे
वर्ष 2016-2017 पूर्व में मध्य प्रदेश सरकार ने सरपंचों के पद उप सरपंचों को देने के निर्देश जारी किये गये थे जैसा कि आपका ध्यान विषयतर्गत आकर्षित सचिव संगठन, रोजगार सहायक संगठन सभी 17 घटकों के प्रदेश व्यापी संगठन अनिश्चितकालीन हड़ताल अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा संघ प्रदेश व्यापी हड़ताल आंदोलन में है। पूर्व की भांति मध्य प्रदेश सरकार से ज्ञापन के माध्यम से निवेदन किया गया हैं कि ग्राम पंचायत सचिव पासवर्ड को सरपंच प्रधान को दिया जावे एवं ग्राम पंचायत रोजगार सहायक का पंचायत का कार्यभार ग्राम सभा मोबिलाइजर को दिया जाए।
ग्राम स्वराज तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था का हनन है
ग्राम पंचायतों में प्रतिनिधित्व के आधार पर सरकार से पंचायत के सरपंचों द्वारा अनेको बार मांग की जाती रही है जो कि लबित है। ज्ञापन के माध्यम से लंबित मांगों को 7 बिंदुओं के आधार पर प्रेषित कर उचित कार्यवाही की मांग की गई है। जिसमें ग्राम पंचायत सचिव के सीआर व स्थानांतरण का अधिकार मुख्य कार्यपालन अधिकारी को दिया गया है, ग्राम स्वराज व्यवस्था के अनुसार अनुचित है, रोजगार सहायक के अनुबंध का अधिकार ग्राम पंचायत से छीन कर एएओ अधिकारी जनपद को दे दिया गया है ना कि ग्राम स्वराज व्यवस्था के अनुसार अनुचित है, बिंदु 1 और 2 में दर्शाए अधिकार पहले ग्राम पंचायत अधिनस्थ थे जिनको ग्राम पंचायत से छीन कर ग्राम पंचायत को अधिकार विहीन संस्था बना दिया गया है। ग्राम सभा तथा सरपंच को सचिव के हाथ के नीचे काम करना पड़ता है जो कि ग्राम स्वराज तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था का हनन है।
पहले कार्य एजेंसी को किया जाये भुगतान
वहीं लंबित मांगों में निराकरण हेतु मांग करते हुये कहा गया है कि मनरेगा योजना के अंतर्गत निर्माण कार्य के लिए 60:40 के अनुपात से जो राशी शासन द्वारा जनपद स्तर में आती है। एएओ तथा एपीओ द्वारा भुगतान पहले वेंडर (ठेकेदार) को तथा शेष बची राशि ग्राम पंचायत को दिया जाता है जो कि अनुचित है। पहले कार्य एजेंसी का भुगतान किया जाना चाहिए बाद में वेंडर (ठेकेदार) को भुगतान किया जाना चाहिये, रोजगार गारंटी मनरेगा योजना के अंतर्गत काम करने वाले मजदूर की मजदूरी भुगतान में विलंब हो रहा है इसके कारण मजदूर पलायन के लिए विवश है।
पुरानी दर व आज की दर में अन्तर के आधार पर लिया जाये निर्णय
वहीं लंबित मांगों में निराकरण हेतु मांग करते हुये कहा गया है कि शासकीय निर्माण कार्य हेतु पुरानी तारीख के अनुसार राशि स्वीकृत की जाती है और कार्य आज करना होता है निर्माण कार्य में उपयोगी सभी सामग्री आज की दर पर प्राप्त होते हैं और निर्माण उपरांत तकनीकी विभाग पुरानी मेजरमेंट बनाकर गण दशार्ता है जो कि आज की दर से बिल्कुल भी मिल नहीं पाता है। इसके कारण निर्माण एजेंसी फंस कर रह जाती है, इसलिये पुरानी दर तथा आज की तारीख में जो अंतर है उस आधार पर निर्णय लिया जावे।
कोल वेस थर्मल झाबुआ पावर प्लांट बरेला घंसौर में मिले रोजगार
नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा जनसंवाद कार्यक्रम 24/12/2016 कार्यक्रम स्थल उत्कृष्ट विद्यालय मैदान घंसौर जिला सिवनी में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा संपन्न किया गया था। जिसमें प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान क्षेत्र के नौजवान बेरोजगार युवाओं को रोजगार (कोल वेस थर्मल झाबुआ पावर प्लांट बरेला घंसौर) उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया गया जो कि आज तक पूरा नहीं किया गया आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण शासन प्रशासन के द्वारा किसी तरह का जवाबदारी नहीं ली जाती है। इससे बेरोजगार युवा आज भी भटक रहे हैं। इसलिये मुख्यमंत्री आदिवासी बहुल क्षेत्र में संवैधाकिन व्यवस्था अनुसार आरक्षण के आधार पर बाहुल्यता के आधार पर जनजाति वर्ग के युवक-युवतियों को उचित रोजगार दिलाने की कार्यवाही करे।
सरपंचों को नहीं मिला मानदेय
घंसौर सरपंच संघ द्वारा सौंपे गये ज्ञापन में यह भी मांग किया है कि सरपंच पंच सदस्यों को मानदेय मध्यप्रदेश शासन को तत्काल कार्रवाई हेतु अग्रेषित करने की कार्रवाई सुनिश्चित करने की दया करें पूर्वर्ती मध्य प्रदेश सरकार कमलनाथ सरकार के द्वारा सरपंचों का कार्यकाल 6 माह बढ़ाया था जिसका मानदेय सरपंचों को नहीं दिया गया। वर्तमान मध्यप्रदेश सरकार सरपंच प्रधान का कार्यकाल 6 माह शिवराज सिंह चौहान कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा मानदेय नहीं दिए गए। इस संबंध में महामहिम राज्यपाल मध्य प्रदेश शासन को तत्काल कार्रवाई हेतु अग्रेषित करने की कार्रवाई सुनिश्चित करने की कार्यवाही करें।
सीसी जारी करने में मांगते है कमीशन तो शासकीय भूमि से हटाया जाये अतिक्रमण
जनपद पंचायत घंसौर की अधीनस्थ 77 पंचायत में भू माफिया के द्वारा शासकीय भूमि में अतिक्रमण किया गया है। जिससे शासकीय कार्य में करने में असमर्थता एवं ग्राम रहवासियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। आवागमन पशु चारा जैसी अन्य कार्य में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस संबंध में तत्काल सीमांकन कर कार्रवाई कलेक्टर की निगरानी में करने की कार्रवाई करने की मांग की गई है। जनपद पंचायत घंसौर एक आदिवासी बहुल क्षेत्र के अधिनस्थ 77 ग्राम पंचायतों में शासकीय निर्माण कार्य एवं मूल्यांकन कार्य उपयंत्री, सीसी जारी करने में सहायक यंत्री के द्वारा कमीशन मांगा जाता है।
पांचवी अनुसूची व छटी अनुसूची का नहीं हो रहा पालन
इसके साथ ही ज्ञापन में अनुसूचित जनजातियों के लिए संविधान की अनुसूची 244 (अ) पांचवी अनुसूची और 244 (ब) छठी अनुसूची पर अमल करने के लिए राज्यपाल कार्यालय से अध्यादेश जारी किया जाए। आजादी के बाद से जनजाति मतदान परिषद का गठन नहीं किया गया और जिन राज्य में मंत्रणा परिषद बनाई गई है। उसके अध्यक्ष गैर आदिवासी संविधान निमार्ताओं को पहले से एहसास था कि पांचवी और छठी अनुसूचियों को अमल पर नहीं लाएगी। इसीलिए इन्होंने मंत्रणा परिषद को अलग से स्थापित कर प्रशासन और नियंत्रण की व्यवस्था की है परंतु राज्य सरकारें मिलजुल कर असंवैधानिक फैसले ले रही है। यही मूल कारण है कि आदिवासी की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है।
आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को खरीदने भू-माफिया ले रहे अनुमति
ज्ञापन में यह भी मांग की गई है कि कोरोना की वजह से हुई लॉकडाउन के कारण आदिवासियों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है क्योंकि विकास के नाम पर जिन आदिवासियों की जमीन छीनी गई है उनके पास रोजी रोटी की व्यवस्था की जाए। वहीं विभिन्न राज्यों में आदिवासियों की निजी जमीन को भू-माफिया एवं दलालों के माध्यम से ओने पौने दाम में गैर आदिवासियों के नाम पर खरीद कर उसे ऊंचे दामों में बेचने की साजिश हो रही है, मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 (6 ) का दुरुपयोग करके अधिकांश कलेक्टर एवं कमिश्नर आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासियों को बेचने की अनुमति देते हैं यह सब फजीर्वाड़ा पूरे देश में चल रहा है उन पर तत्काल कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। वहीं ज्ञापन में यह भी मांग की गई है कि 13 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्य के लगभग 11/12 लाख आदिवासियों के जमीन के दावे निरस्त करके उनकी जमीन छीनने का जो आदेश पारित हुआ था उस आदेश के तहत विभिन्न राज्यों के आदिवासियों से जमीन छीनने उन पर अत्याचार करने की कई घटनाएं घट रही है उन पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाए।
नेमावर की घटना की सीबीआई जांच कराई जाये
मध्य प्रदेश के मूलनिवासी आदिवासी समाज के साथ जैसे देवास जिले के अधीनस्थ नेमावर थाना गांव में आदिवासी समाज के साथ जो जघन्य अपराध किया गया है। उसका पूरा समाज घोर निंदा एवं विरोध मध्यप्रदेश शासन के प्रति 2 करोड़ आदिवासी की संवेदना मध्य प्रदेश की मुखिया का चरित्र आदिवासियों के प्रति उजागर दिख रहा है। मध्यप्रदेश के मूल निवासी की संवैधानिक व्यवस्था को अमल में लेते हुए आदिवासी समाज को संरक्षण दिया जावे और नेमावर में जो 5 आदिवासियों की हत्या की गई है, उनके हत्यारों को फांसी की सजा दिया जाए, इसके साथ ही घटना की जांच सीबीआई के द्वारा कराई जावे।
एट्रोसिटी एक्ट के मामले में आरोपियों का मिलता है संरक्षण
वहीं ज्ञापन में मध्य प्रदेश के समस्त थाने में एससी, एसटी एक्ट के तहत जो भी मामले दर्ज किए जाते हैं उस में कहीं न कहीं पुलिस सारक्षण देकर आरोपियों को बचाने का कार्य करती है। जिससे आदिवासी समाज के लोगों को डरा धमका कर राजीनामा करा कर या काऊंटर केस बनाने का कार्य किया जाता है, जो कि संविधान व्यवस्था के खिलाफ पुलिस विपरीत कार्य कर रही है जिससे आदिवासी समाज को न्याय नहीं मिल पाता है। जिससे आरोपियों के हौसले बुलंद होते है।
घंसौर स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों की कमी से मरीजों को नहीं मिलता उपचार
आदिवासी बहुल क्षेत्र घंसौर स्थित 100 बिस्तर स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्र लोगों से स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने के कारण लोगों को इलाज के लिए बड़े-बड़े शहरों में जाना पड़ता है जैसे कि जबलपुर की दूरी लगभग 100 किलोमीटर, वहीं मंडला की दूरी लगभग 100 किलोमीटर, सिवनी की दूरी लगभग 100 किलोमीटर तो वहीं नैनपुर की दूरी भी लगभग 100 किलोमीटर से अधिक होने के बाद भी गंभीर स्थिति में मरीजों को उपचार हेतु मजबूरी में जाना पड़ता है। वहीं इस दौरान कभी-कभी तो मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते है।