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महिलाओं को शराबी पतियों से पिटता देखकर पुलिस बनने की ठानी, आर्थिक स्थिति को दरकिनार कर बन गई एसआई

महिलाओं को शराबी पतियों से पिटता देखकर पुलिस बनने की ठानी, आर्थिक स्थिति को दरकिनार कर बन गई एसआई

10 रूपये नहीं थे पड़ोसी की मदद से स्कूल में लिया प्रवेश, चिमनी में की पढ़ाई

नवोदय व महाविद्यालय में प्रवेश के लिये भी करना पड़ा आर्थिक समस्या का सामना 

लाच्छो कुमारी भील को लगन, मेहनत, योग्यता के बल पर मिली सफलता 


सुनील चौहान भील, निम्बाहेड़ा
जैसलमेर/राजस्थान। गोंडवाना समय। 

राजस्थान के जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील के रामदेवरा गांव की आदिवासी बेटी लाच्छो कुमारी भील अपने लक्ष्य के प्रति लगनशीलता, मेहनत, योग्यता के दम पर आज निर्धन व आर्थिक रूप से कमजोर व मध्यम वर्गीय ही नहीं धनवान लड़कियों के लिये मील का पत्थर बन गई है जो भविष्य में कुछ अच्छा कार्य करते हुये माता-पिता, परिवार, समाज, गांव, जिला, प्रदेश व देश का नाम गौरावांवित करना चाहती है।


निर्धनता का सामना करते हुये लाच्छो कुमारी भील ने प्राथमिक शिक्षा से लेकर एसआई बनने तक संघर्ष का सफर को पार किया है। जहां उनके घर परिवार में प्राथमिक स्कूल में प्रवेश के लिये 10 रूपये की भी व्यवस्था नहीं थी ऐसी स्थिति में स्कूल में दाखिला लेकर एसआई बनना प्रेरणादायक संघर्ष है।

वहीं अहम बात तो यह कि वे लाच्छो कुमारी भील ने बचपन में जब शराबी पतियों के द्वारा शराब पीकर आये दिन पत्नि यानि महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार, मारपीट करते हुये देखा तो पुलिस बनने की ठान ली थी। यही लक्ष्य ने लाच्छो भील को एसआई की पोस्ट तक पहुंचा दिया।    

जैसलमेर जिले के पोकरण तहसील क रामदेवरा गांव में हुआ था जन्म 


लाच्छो कुमारी भील का जन्म 10 फरवरी 1995 को जैसलमेर जिले की पोकरण तहसील के रामदेवरा गांव में हुआ था। लाच्छो कुमारी भील की माता नाम श्रीमती पेंपो देवी और पिता नाम श्री पोकर राम है जो पेशे से एक श्रमवीर है। लाच्छो कुमारी भील की प्रारंभिक शिक्षा कक्षा 5 वीं तक रामदेवरा गांव में ही हुई वहीं कक्षा 6 वीं से 12 वीं वी तक जवाहर नवोदय विद्यालय मोहनगढ़ जैसलमेर शिक्षा अध्ययन किया। इसके बाद बी ए कमला नेहरू महिला महाविधालय जोधपुर से और एम ए (अर्थशास्त्र) जयनारायण विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की है।

पड़ोस की आंटी ने 10 रूपये देकर स्कूल में दिलवाया था प्रवेश 

लाच्छो कुमारी बताती है कि बचपन के दिनों में जब पड़ोसी की लड़की को स्कूल जाते देखा तो स्कूल जाने की इच्छा जागृत हुई लेकिन एडमिशन के लिए परिवार से 10 रुपये मांगे तो परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण 10 रूपये स्कूल में एडमिशन के लिये देने से मना कर दिया वहीं परिवारजन लाच्छो कुमारी के स्कूल जाने के खिलाफ भी थे। वहीं लाच्छो कुमारी की पढ़ने की इच्छा को देखकर पड़ोस में निवास करने वाली आंटी ने लाच्छो कुमारी का एडमिशन स्कूल में करवाया। उसके बाद परिवार वालों को शिक्षा का महत्व समझाकर 5 वीं कक्षा तक लाच्छो कुमारी ने रामदेवरा ग्राम में ही पढ़ाई किया।

चिमनी के सहारे की पढ़ाई, नवोदय में प्रवेश के लिये 90 प्रतिशत बनाई 


लाच्छो कुमारी भील बताती है कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण घर में बिजली कनेक्शन नही था। जिसके कारण लाच्छो कुमारी को चिमनी के सहारे पढ़ाई करनी पड़ती थी रात में चिमनी में पढ़ाई करने के कारण चिमनी के धुंए से सांस लेने में काफी दिक्कत होती थी। कक्षा 5 वीं उर्त्तीण होने के बाद विद्यालय की शिक्षिका के द्वारा लाच्छो कुमारी को जवाहर नवोदय विद्यालय के बारे में जानकारी दी गई। जानकारी मिलने के बाद लाच्छो कुमारी ने मन बना लिया था कि जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला लेना है लेकिन जवाहर नवोदय की राह इतनी भी आसान नहीं थी क्योंकि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण लाच्छो कुमारी के लिए यह सब संभव नहीं था। इसी दौरान लाच्छो कुमारी की शिक्षिका ने अपने पैसों से लाच्छो कुमारी को पुस्तकें दिलवाई और साथ ही दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा की भी तैयारी करवाई। नवोदय विद्यालय की परीक्षा में लाच्छो कुमारी ने 90 % अंक लाकर विद्यालय में दाखिले की राह आसान कर ली।

आगे का लक्ष्य और पढ़ने की इच्छा के चलते करने पड़े पिता के हस्ताक्षर 

नवोदय विद्यालय में दाखिले के लिए अंतिम रूप से दस्तावेज जमा करवाने होते और साथ ही कुछ दस्तावेजों पर पिता के हस्ताक्षर की भी आवश्यकता होती है तो लाच्छो कुमारी के पिताजी ने दस्तावेजो पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तब लाच्छो कुमारी ने बड़ी चालाकी से अपने पिताजी के हस्ताक्षर खुद कर दिए। कुछ दस्तावेजो कि कमी थी जिसके कारण विद्यालय में दाखिला नहीं हो सकता था तब लाच्छो कुमारी के रिश्तेदार ने अपने पैसों से वो दस्तावेज बनवाए। इस प्रकार लाच्छो कुमारी ने सभी दस्तावेज जमा करवा कर जवाहर नवोद विद्यालय में दाखिला लिया।

भाषा प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल प्राप्त किया 

लाच्छो कुमारी बताती है कि कक्षा 9 वीं के दौरान उनका माइग्रेशन हेतु 1 वर्ष के लिए आंधप्रदेश के रंगारेड्डी जिले के जवाहर नवोदय विद्यालय में सलेक्शन हुआ। इस दौरान उन्होंने 1 वर्ष वहीं रहकर पढ़ाई की इस दौरान उन्होंने विद्यालय में होने वाली हिंदी प्रतियोगिता के 7 भागों में भाग लिया था। इन 7 प्रतियोगिताआें में वह 5 प्रतियोगिता पर प्रथम स्थान पर आई एवं शेष 2 प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। आंधप्रदेश राज्य की राज्यस्तरीय विद्यालय के लिए आयोजित प्रतियोगिता में महात्मा गांधी राष्ट्रीय भाषा प्रतियोगिता में लाच्छो कुमारी ने उस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया था।

दौड़ प्रतियोगित में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला

वहीं लाच्छो कुमारी भील कक्षा 10 वीं के दौरान वह पुन: अपने राज्य के जवाहर नवोदय विद्यालय आ गयी थी और कक्षा 12 वी तक यही पढ़ाई की। कक्षा 12 वी के दौरान लाच्छो कुमारी ने 3 किलोमीटर दौड़ की प्रतियोगिता में भाग लिया जिसमे उसे राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया।

200 बालिकाओं में से लाच्छो कुमारी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था


इसके साथ ही कक्षा 12 वीं कक्षा उर्तीण करने के बाद भी परिवार वालो की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इस कारण परिवार वालो ने पढ़ाई छोड़ देने को कहा क्योंकि परिवार के पास महाविद्यालय के छात्रावास की मासिक फीस देने के लिये पैसे नही थे। इस दौरान लाच्छो कुमारी के दोनों छोटे भाइयों ने फीस भरने की जिम्मेदारी ली और इस प्रकार आर्थिक संकट के दौरान भी कमला नेहरू महिला महाविद्यालय से बी ए की डिग्री प्राप्त की। एम ए की पढ़ाई के दौरान महाविद्यालय की तरफ से एनएसएस का राष्ट्रीय स्तर का केम्प किया। इसके साथ एनयूएसएसडी (नेशनल यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स स्किल डेवलोपमेन्ट प्रोग्राम) जो कि 3 वर्ष का डिप्लोमा होता है, जो टाटा इंस्टिट्यूट सोशल साइंस मुंबई की तरफ विशेषकर बालिकाओं को करवाया जाता है। जिसमें 200 बालिकाओं में से लाच्छो कुमारी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इस प्रकार लाच्छो कुमारी ने बी ए में अध्ययन के दौरान ही कई प्रकार के कोर्स कर बी ए की डिग्री प्राप्त की ।

बेटी के लक्ष्य पूरा करने माता-पिता ने सयानी अवस्था में किया मजदूरी 

एम ए की डिग्री प्राप्त कर लाच्छो कुमारी ने एम ए (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई के लिए के लिए जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में दाखिला लिया। दाखिला लेने के बाद लाच्छो कुमारी के सामने 2 प्रकार की विकट स्थिति बनी प्रथम होस्टल की फीस भरनी थी। द्वितीय एस आई की तैयारी के लिए कोचिंग ज्वाईन करना था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति को वह भली-भांति जानती थी। ऐसे समय में उसके पिता ने उसे विश्वास दिलवाया कि तुम एस आई की तैयारी करों हम पैसे का इंतेजाम करेंगे। बेटी के सपनों को साकार करने के लिए 65 वर्षीय पिता ने पुन: श्रमवीर के रूप में श्रम करना शुरू कर दिया माता ने भी बेटी के सहयोग के लिए नरेगा में कार्य करना शुरू कर दिया था ताकि वह अपनी लाड़ली की फीस भर सके माता-पिता दोनो की आय को मिलाकर सिर्फ होस्टल की फीस ही भरी जा सकती थी। इस दौरान  लाच्छो कुमारी की माता ने अपने पुश्तेनी कुछ गहने थे उन्हें बेचकर कोचिंग की फीस जमा करवाई।

एसआई की कोचिंग छात्रावास से 8 कि.मी थी दूर 

एसआई की कोचिंग छात्रावास से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर थी लाच्छो कुमारी के पास स्वयं का अपना कोई आवागमन का कोई साधन नही था। जिसके कारण लाच्छो कुमारी को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता था तब उनकी शिक्षिका रेणु कल्ला ने आर्थिक रूप से लाच्छो कुमारी की काफी सहायता किया।

26 जनवरी 2016 को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया


एसआई की तैयारी के दौरान लाच्छो कुमारी की बड़ी बहन अरुणा कुमारी ओर जीजा जी सुरेश जी भील ने भी उन्हें आर्थिक, मानसिक रूप से हर संभव प्रयास में सहयोग किया। एसआई की पढ़ाई के दौरान लाच्छो कुमारी ने स्काउट गाइड ज्वाईन किया। इसी दौरान रेंजर सिस्टर हुडस के खिताब को प्राप्त किया। इस दौरान लाच्छो कुमारी को 26 जनवरी 2016 को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। इस प्रकार लाच्छो कुमारी का एसआई के दौरान पढ़ाई का वर्ष भी अनेक उपलब्धियों से पूर्ण रहा।

एसआई की परीक्षा में हुई उत्तीर्ण, फिजीकल में 100 में से 100 अंक मिले 

1 अक्टूबर 2018 को लाच्छो कुमारी ने एसआई की परीक्षा दिया और परिणाम से पूर्व ही लाच्छो कुमारी ने फिजिकल एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी थी। वर्ष 2019 में एसआई परीक्षा के परिणाम में लाच्छो कुमारी उर्तीण हुई ओर 20 दिन बाद ही फिजिकल का एग्जाम हुआ, जिमसें लाच्छो कुमारी ने 100 में से 100 अंक प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके 1 वर्ष बाद लाच्छो कुमारी ने इंटरव्यू दिया, जिसमें एसआई की अंतिम सूची में चयनित के रूप में स्थान प्राप्त किया।

10 आदिवासी भील बालिकाओं को पढ़ाने में करूंगी मदद 

लाच्छो कुमारी भील का लक्ष्य है कि हर साल वह 10 निर्धन आदिवासी भील बालिकाओं को शिक्षा के क्षेत्र में उनकी आर्थिक रूप से मदद करेंगी, जिससे वे शिक्षा के क्षेत्र में आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं। गोंडवाना समय समाचार पत्र आशा करते हुये उन्हें शुभकामनायें देता है कि लाच्छो कुमारी भील अपने लक्ष्य के प्रति समाज हित की नीति पर वह जरूर कामयाब होंवे।

लगन, लक्ष्य, मेहनत के आगे हार जाती है निर्धनता 

लाच्छो कुमारी भील अपनी सफलता और लक्ष्य के प्रति बताकर संदेश देते हुये कहती है कि आर्थिक रूप से कमजोर होना एक अलग बात है लेकिन आपका परिवार आपके साथ है और यदि आपके अंदर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का जुनून जज्बा है तो आप बड़ी आसानी से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है। इसके लिये आपको लगन, मेहनत, लक्ष्य के साथ प्रयास करना चाहिये ऐसी स्थिति में निर्धनता और आर्थिक समस्या हार जाती है और जीत लक्ष्य की होती है। 

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