बुद्ध का धम्म मानव-मानव के बीच के भेदभाव की दीवारों को गिरा देता है
''अत्तदीपो भव''
''महाकारुणिक तथागत गौतम बुध के विश्व जयंती/सम्बोधि/महापरिनिर्वाण दिवस(पूर्णमा) पर मानव मात्र को बधाईयां''
सिन्धु घाटी सभ्यता नागों की बौद्ध सभ्यता रही है, पाली भाषा में नाग का अर्थ श्रेष्ठ मानव होता है। इस सिन्धु घाटी में बड़े-बड़े स्नानगार, बीजो के संग्रहण केंद्र, स्तूपों की श्रंखला और धम्म चक्र आदि साक्ष्य के रूप में मिले हैं। यह सभ्यता नगरीय सभ्यता रही है तथागत गौतम बुध के जन्म से करीब 1500 से 2000 साल पहले व्याप्त इस सभ्यता के निशान दुनियां में अनोखे है। तथागत गौतम बुध से पहले करीब 27 बुद्ध और पहले हुए है। तथागत गौतम बुध (बुद्ध) बौद्ध परम्परा के संस्थापक नहीं है बल्कि प्रवर्तक हैं। यह सनातन सिरमण/सरमण परम्परा है।
इसलिए तथागत गौतम बुद्ध को एशिया का प्रकाश कहा जाता है
तथागत गौतम बुध ने पहले से चली आ रही पूर्व बौद्ध मान्यता को पुन: परिभाषित किया और सनातन सरमण परम्परा को सर्वौच्च पद पर स्थापित करने का कार्य किया। तथागत ने पहले से चली आ रही पशु बलि प्रथा को खत्म करने के लिए आन्दोलन किया और उसे बदलने में कामयाब हुए एवं आत्मा पर आधारित तमाम मान्यतों को तार्किक रूप से खारिज करते हुए उसे मन/मस्तिष्क आधारित/ मानसिक आधार पर स्थापित किया।
तथागत गौतम बुध के समय सामाजिक,धार्मिक व राजनीतिक व्यवस्था ''गण'' पर आधारित रही है। तथागत ने समाज को सम्यक बुद्धि, धम्म आधारित और संघ आधारित समाज को स्थापित करने का प्रयास किया। इसलिए तथागत गौतम बुद्ध को एशिया का प्रकाश कहा जाता है। अब एशिया का ही नहीं बल्कि मानवता का प्रकाश कहा जाना जायदा उचित होगा। बुद्ध के विचारों में अपने समकालीन सभी मान्यताओं को न केवल प्रभावित ही नहीं किया बल्कि उन्हें बदल दिया।
इतिहास में अशोक महान कहलायें
तथागत गौतम का वास्तविक नाम ''सुकिति'' मिलता है। यह पिपरहवा स्तूप से मिले कलश अभिलेख से जानकारी मिलती है। तथागत गौतम बुध के धार्मिक विचारों को कोई सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक असमान्यता उन्हें छू भी नहीं पाई है-उन्होंने ब्राह्मणों से लेकर, राजाओं, आम प्रजा आदि को सभी के लिए भिक्खु संघ के दरवाजें खोले।
भगवान बुद्ध ने स्वं कश्यप बंधुओं, सरिपुत्त, मोग्लायन, राजा बिम्बसार, अनाथपिन्दक, राजा प्रसेंजित्त, जीवक, रटठ्पाल, अनपढ़ ब्राह्मणों को धम्म दीक्षा, उपाली नाई, भंगी-सुनीत, सोपाक और सुप्पीय अछूतों, सुमंगल, कुष्ठ रोगी, सुप्रबुद्ध, महाप्रजापति गौतमी, यशोधरा व प्रकृति नामक चंडालिका डाकू अंगुलिमाल, अन्य अनगिनत लोगों को धम्म की दीक्षा प्रदान की। तथागत गौतम के विचारों के चलते ही अशोक ने अहिंसक राज्य की स्थापना की और इतिहास में अशोक महान कहलायें। यह मौर्य वंश का चरमोत्कर्ष रहा है।
सभी के लिए ज्ञान के द्वार खोल देना चाहिए
भगबान बुद्ध ने आत्मा पर आश्रित विश्वासों को नकारा है और इस पर आश्रित ईश्वर की पूर्व धारणा को बदल दिया है। कल्पना पर आश्रित धर्म और बलि कर्म पर आधारित धर्म को अस्वीकार कर दिया। भगवान बुद्ध का कहना था कि धम्म की पुस्तकों को गलती से परे मानना अधम्म (अधर्म) है. यानि संसार में कोई भी गलती से परे नहीं है।
भगवान बुद्ध ने बहुत ही सरल शब्दों में कहा कि- मन के मेल को दूर करें, सभी के लिए ज्ञान के द्वार खोल देना चाहिए, पंडिताऊपन से दूर रहना एवं प्रज्ञा को महत्पूर्ण माना है। प्रज्ञा के साथ मनुष्य को शीलवान होना चाहिए और शील के साथ मनुष्य के लिए करुणा का होना अनिवार्य आवश्यकता बताया।
बल्कि कर्म के आधारित स्थापित करता है
बुद्ध का धम्म मानव-मानव के बीच के भेदभाव की दीवारों को गिरा देता है। बुध का धम्म मानव को जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधारित स्थापित करता है। भगवान बुद्ध का धम्म आदमी-आदमी के बीच समानता को स्थापित किया करता है। भगवान बुद्ध का धम्म परिवर्तनशीलता को स्वीकार करता है। बुध का धम्म उसके जन्म के साथ विकास को महत्पूर्ण मानते हैं।
बुध का धम्म संसार के निर्माण पर नहीं बल्कि संसार के विकास पर आधारित है। यही भारतीय सनातन संस्कृति है, इसी धारा को मध्यकाल में गोरखनाथ, कबीर, पीपा जी, सेन, नामदेव, रैदास एवं नानक जी आगे बढाया है। आधुनिक भारत में ज्योतिवाराव फुले, साहू जी महाराज, पेरियार, डॉ. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने आगे गोरान्वित किया।
भगवान बुद्ध के मानवता के संदेश युगों युगों तक मानव का मार्ग प्रशस्त करते रहेगें
समाज में बढ़ते अपराध बुद्ध के पंचशीलों (हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना, नशा व मज्जा का पान न करना आदि) को अपनाकर ही खत्म किया जा सकता है। भगवान बुध अकेले इंसान हैं जिन्होंने इस लोक के प्रति धम्म की अपनी जिम्मदारी सुनिश्चित की। इस लोक के कल्याण के लिए धम्म को ईजाद किया।
इस लोक के प्रति मानुष को संवेदनशील बनाया है, उन्होंने कहा संसार में दु:ख है, दुख का कारण है, दुख का निरोध है और दु:ख निरोध पाने का मार्ग है। भगवन बुध ने कहा मानव अष्टांगिक मार्ग का पालन करते हुए निर्वाण को इसी जन्म में प्राप्त करता है-सम्यक द्रष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यकवाक्, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधी. आदि का पालन करते हुए किसी भी धर्म का मानने वाले व्यक्ति बुध के रास्ते पर चल कर अपने कल्याण के साथ इस लोक का कल्याण कर सकता है। भगवान बुद्ध के मानवता के संदेश युगों युगों तक मानव का मार्ग प्रशस्त करते रहेगें.