धिक्कार है एक-एक दाना खरीदने वाली सरकार पर जो अन्नदाता के साथ अनाज का कर रही अपमान
खरीदी केंद्र बन रहे तालाब, अनाज सुरक्षा की खुल रही पोल, प्रतिवर्ष की भांति लापरवाही बरकरार
प्रतिवर्ष बारिश में सड़ा रहे अनाज आखिर क्यों
भाजपा किसान मोर्चा अध्यक्ष के गांव कुड़ारी, बोथिया, सुनवारा, छींदा, उगली, खापाबाजार, ड्यूटी, उड़ेपानी, तिंदुआ, बोरिया सहित खरीदी केंद्रों का देखे वीडियों
सिवनी। गोंडवाना समय।
कृषि प्रधान देश में अन्नदाता भारी बारिश में, कंपकंपाती ठण्ड में, भीषण गर्मी में अनाज का एक-एक दाना का उत्पादन करने के बाद उसे खेत की मिट्टी में से भी छानकर खरीदी केंद्रों में लाता है जहां पर मानक गुणवत्ता के नाम पर किसानों का अनाज कई बार फेल कर दिया जाता है।
खरीदी केंद्रों में छन्ना लगवाकर साफ करवाया जाता है। सरकार किसानों का एक एक दाना खरीदने की बात जिस दमदारी से करती है उतनी ही लापरवाही खरीदी केंद्रों में अनाज को सुरक्षित न रखते हुये सड़ाने के बरतती है आखिर क्यों ? बीते वर्षों का आंकलन किया जाये लगभग प्रति वर्ष गर्मी के समय में बारिश हो रही है इसके बाद भी खरीदी केंद्रों अनाज को सुरक्षित रखने का इंतजाम करने में फेल हो जाते है।
जबकि एक वर्ष के बारिश होने के कारण गेंहू खराब हो जाता है तो उसके बाद दूसरे वर्ष की खरीदी के समय सरकार को सचेत होकर, अन्नदाता व अनाज के सम्मान में खरीदे जाने वाले अनाज को सुरक्षित रखने की दिशा में कोई भी कमी नहीं छोड़ना चाहिये। सरकार अपने कार्यक्रमों के लिये वर्षा, ठण्ड, गर्मी से बचने के लिये डोम का सुरक्षित पंडाल बनाकर एक दिन में लाखो रूपये खर्च कर देती है लेकिन खरीदी केंद्रों में अनाज को सुरक्षित रखने का न तो सरकार के पास और नहीं वातानुकूलित कक्षों में बैठकर योजना बनाने वाले अफसरों के पास कोई विकल्प है।
भोजन का इंतजाम करने वाले आर्थिक रूप से कमजोर उन्हीं खरीदी केंद्रों में नीचे गिरे हुये अनाज को झाडृं से साफ करके छनाकर परिवार के भरण पोषण के लिये इंतजाम करते हुये भी आसानी से दिख सकते है। संभवतय: यही कहा जा सकता है कि सरकार का पेट भरा हुआ है इसलिये अनाज के दाने की कीमत नहीं समझ पा रही है।
सबसे दुखद पहलू यह भी है कि लापरवाही कहें या जानबूझकर अनाज को बारिश के पानी में सड़ाने के खुला छोड़ देना ये अन्नदाता के साथ अनाज का भी अपमान है।
यदि अन्नदाता की फसल अत्याधिक बारिश में सड़ जाती है तो वह खून के आंसू रोता है क्योंकि अनाज की कीमत, उसे उत्पादन करने वाले किसान ही जानते है इसका दर्द कृषि प्रधान देश की सरकार और सत्ता को चलाने वालों को समझ नहीं आयेगी क्योंकि न तो विधानसभा, न ही संसद भवन में और न ही राज्यसभा में और न ही मंत्रालयों और न सचिवालयों में अनाज का उत्पादन होता है।
हां लेकिन अनाज को सड़ाने वाले जिम्मेदारों के लिये धिक्कार शब्द का प्रयोग करना भी कम ही है।
उडेपानी और ड्यूटी खरीदी केंद्रों में पानी में भींगा अनाज
सिवनी जिले में बीते दिनों से बारिश हो रही है किसी दिन कम तो किसी दिन ज्यादा बरसात हो रही है। वहीं उपार्जन का कार्य भी जारी है किसान गेंहू लेकर खरीदी केंद्र में तुलाई के साथ खरीदी का इंतजार भी करते हुये अपने अनाज को खुले रखे हुये है तो वही खरीदी केद्रों में बोरियों में भरकर हजारों क्विटल गेंहू खुले मैदान में रखा हुआ है। बरसात होते ही खरीदी केंद्रों में अफरा तरफी का माहौल निर्मित हो जाता है। शनिवार को उड़ेपानी व ड्यूटी खरीदी केंद्र में बरसात के कारण खरीदी केंद्रे में पानी ही पानी नजर आ रहा था। किसानों का व खरीदा गया अनाज पानी में गीला हो गया है।
बीते वर्ष गनेशगंज में सड़ांध मार रहे अनाज को जेसीबी से कचरा की तरह उठाकर फिंकवाया था
हम आपको बता दे कि बरसात के कारण खरीदी केंद्रों में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होने के कारण गीला होकर सड़ जाता है। इसके बाद सड़ा हुआ अनाज खरीदी केंद्रों मेूं सड़ांध मारने लगता है जिसके कारण खरीदी केंद्रों के आसपास रहवासियों व आवागमन करने वालों को परेशानी होने लगती है।
बीते वर्ष जिस अनाज की खुशबू खेतों में आती है जिस अनाज को पेट भरने के लिये मानव उपयोग करता है उसी अनाज के सड़ जाने के कारण उसे कचरा की भांति जेसीबी मशीन से उठाकर टैक्टर व अन्य वाहनों में उठवाकर गांव के बाहर किया गया था। यह दुखदायी दृश्य को सबने देखा है इसके बाद भी अनाज को सुरक्षित रखने के इंतजाम खरीदी केंद्रों में नहीं किये जाते है। कई बार यहां तक देखा गया है कि अनाज भींगने के बाद वहींं ऊगने की स्थिति में आ गया है।
यही अनाज से आपका भी पेट भरेगा
जबकि जानबकार बताते है कि खरीदी केंद्रों में अनाज के सुरक्षित रखरखाव के लिए प्रति विक्ंटल ही अच्छी रकम दी जाती है इसके बाद भी अनाज को खरीदी केेंद्रों में सुरक्षित रखने का इंतजाम नहीं किया जाता है। अनाज को सुरक्षित रखने व अनाज खरीदी के लिये खरीदी केंद्रों में हम्माली के अलावा अनाज ढकने त्रिपाल आदि की व्यवस्थाओं के लिये तय राशि होती है।
खरीदी केंद्रों में खरीदी से लेकर परिवहन व भण्डारण तक सिर्फ रूपया कमाने का बड़ा जरिया बना हुआ है। कमाओं खूब कमाओं पर अनाज का अपमान मत होने दो उसे सड़ाने से बचाने के लिये अपना कर्तव्य निभाने का प्रयास करों क्योंकि धन दौलत कमाने वालों आपको भी भोजन करने के लिये अनाज की आवश्यकता होती होगी, इसी से आपका पेट भरेगा।
किसानों को राहत देने सरकार फेल होती आ रही है
कोरोना को लेकर जिस तरह से इंतजाम करने में फैल हुई सरकार के कारण, मरीजों को पीठ पर लादकर, गोदी में रखकर आॅक्सीजन का सिलेंडर लेकर घूमना पड़ रहा है क्योंकि स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। शहरी क्षेत्र में निजी चिकित्सालय के भरोसे और ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों के उपचार के लिये छोड़ दिये है।
इसी तरह आजादी के बाद आज तक सरकार में कोई भी किसानों से अनाज को उनके घर में ही खरीदने की नीति नहीं बना पाई है। इसके बाद अनाज को सुरक्षित रखने के लिये भण्डारण केंद्र नहीं बना पाई है। सबसे अहम बात यह है कि जहां पर भण्डारण होता है वहीं खरीदी केंद्र क्यों नहीं बनाया जाता है क्योंकि परिवहन ठेकेदारों के जरिये होने वाली कमाई बंद हो जायेगी। जितना रूपया परिवहन में खर्च किया जाता है संभवतय: उसमें यदि और राशि बढ़ा दिया जाये तो ग्राम पंचायत स्तर पर ही भण्डारण केंद्र वहां पर खेती की रकबा व उत्पादन के अनुमान के आधार पर भण्डारण केंद्र बनाया जा सकता है और वहीं पर खरीदी की जा सकती है। कृषि प्रधान देश में मेहनत करने वाले किसानों को इतनी राहत भी कोई भी सरकार आज तक राहत नहीं दे पाई है।