हृदय नगर जत्रा का नाम बदलकर क्यों कर दिये मचलेश्वर मेला ?
गोंगपा के संभागीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष देवेन्द्र मरावी ने उठाये सवाल
मंडला। गोंडवाना समय।
हम आपको बता दे कि देश के मूलवासी आदिवासी समाज की ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित व संरक्षित रखने का कार्य भले ही नहीं किया जा रहा हो लेकिन आदिवासी समाज के शासन काल एवं उनके ऐितहासक पहचान को मिटाने या उनके नाम को बदलने का कार्य वर्षो से किया जा रहा है ताकि उनकी मूल पहचान उनकी आने वाली पीढ़ि न जान सके परंतु जागरूक आदिवासी अपने समाज की पहचान को लिपिबद्ध करने के साथ साथ उन्हें सहेजकर उसके इतिहास से आदिवासी समाज के आने वाली पीढ़ि व वर्तमान आदिवासी समाज को प्रमाण के साथ अवगत कराने का कार्य जरूर कर रहे है।
हृदय नगर का जत्रा जो कि वर्ष 1670 से 1890 तक रहा
गोंगपा के संभागीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष तिरू देवेन्द्र मरानी ने हृद्य नगर जत्रा के नाम को बदलकर मचलेश्वर मेला नाम रखे जाने पर सवाल उठाने के साथ आपत्ति जताते हुये वास्तविकता से अवगत कराने का प्रयास किया है। उन्होंने बताया कि मण्डला जिले में गोंडवाना शासनकाल के अनेक ऐसे किला महल है और ऐतिहासिक स्थल है जिनका नाम बदल दिया गया है। वहीं मण्डला जिले के हृदय नगर में लगभग 300 वर्ष से भी अधिक समय पहले ऐतिहासिक हृदय नगर का जत्रा जो कि वर्ष 1670 से 1890 तक रहा है। वर्ष 1891 से 2001 तक हृदय नगर मेला रहा इसके बाद वर्ष 2002 से मंडला जिले के कुछ जनप्रतिनिधियों ने मिलकर गोंडवाना के इतिहासों का चीरहरण करते हुऐ मचलेश्वर मेला के नाम पर परिवर्तित कर दिया है।
हृद्य नगर मेला में सवा एक पैसे की वर्ष 1950 में काटी गई है रसीद
इस संबंध में कुछ बुद्धिजीवियों से चर्चा भी किया तो कुछ ने उन्हें बताया कि वर्ष 1911 से 1970 तक इस मेले का नाम मचल मेला मौजा था। वहीं वर्ष 1971 के बाद मेले का नाम अपभ्रंश होकर हृदय नगर मेला पड़ा। जबकि गोगपा के संभागीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने वर्ष 1950 में हृदय नगर मेला मंडला तहसील का रसीद प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया है जिसमें लिखा है कि रहीम खान जाति मुसलमान पता महाराजपुर कपड़े की दुकान हेतु सवा एक पैसे की रसीद वर्ष 1950 को काटी गई है। इस संबंध में देवेन्द्र मरावी का कहना है कि रसीद में बकायदा हृदय नगर मेला ही लिखा गया है यही सत्य है बाकी सब गोलमाल और गोंडवाना शासनकाल के इतिहास के साथ छेड़छाड़ है।