ट्राइब्स इंडिया जीआई महोत्सव का जनजातीय कार्य मंत्री, अर्जुन मुंडा ने किया उद्घाटन
"जीआई महोत्सव, जिसमें कई आदिवासी कलाकार और जीआई अधिकृत विक्रेता हैं मौजूद
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में जीआई महोत्सव का किया उद्घाटन किया
नई दिल्ली। गोंडवाना समय।
केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री, श्री अर्जुन मुंडा ने लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए), मसूरी में ट्राइब्स इंडिया जीआई महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर श्री भास्कर खुल्बे, भारत के प्रधानमंत्री के सलाहकार; श्री संजीव चोपड़ा, निदेशक, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए), प्रवीर कृष्णा, ट्राईफेड के प्रबंध निदेशक और पद्मश्री डॉ रजनी कांत, सलाहकार, आत्मनिर्भर भारत परियोजना, ट्राइफेड ने इस आयोजन का शोभा बढ़ाया।
ट्राइब्स इंडिया जीआई महोत्सव -
अतुल्य भारत की अमूल्य निधि, जीआई टैग उत्पादों के लिए एक प्रदर्शनी है और इस कार्यक्रम में 40 से ज्यादा जीआई पंजीकृत प्रोप्राइटर और जीआई अधिकृत उपयोगकर्ता और जनजातीय कलाकार इसमें शामिल हो रहे हैं और अपने क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं। जीआई महोत्सव का उद्देश्य अधिकारी-प्रशिक्षुओं के बीच इन उत्पादों के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना और उनके बीच भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है जिससे वे अपने क्षेत्र में जीआई उत्पादों के हितों की रक्षा करने वाली नीतियों का निर्माण कर सकें। इस प्रकार के आयोजनों से पंजीकृत उत्पादकों या निर्माताओं को विपणन करने का ज्यादा अवसर भी प्राप्त होगा। 190 से ज्यादा आईएएस अधिकारी-प्रशिक्षुओं और एलबीएसएनएए के 30 से ज्यादा संकाय सदस्यों ने इस प्रदर्शनी में हिस्सा लिया और प्रदर्शित उत्पादों की सराहना की।
आंध्र प्रदेश का अराकू कॉफी और आदिवासियों द्वारा बनाई गई जैविक स्वस्थ कुकीज
इस अवसर पर श्री मुंडा ने एलबीएसएनएए, मसूरी के मुख्य द्वारा के पास वेल्रिज बिल्डिंग में 130 वें ट्राइब्स इंडिया शोरूम और ट्राइब्स इंडिया कैफे का उद्घाटन भी किया। यह शोरूम जीआई उत्पादों और विभिन्न राज्यों और कार्बनिक उत्पादों से बने हुए उच्च गुणवत्ता वाले दस्तकारी डिजाइन को बढ़ावा देने और बाजार प्रदान करने में सहायता करेगा। इस कैफे में आंध्र प्रदेश का अराकू कॉफी और आदिवासियों द्वारा बनाई गई जैविक स्वस्थ कुकीज सहित देश भर की बेहतरीन कॉफी का नमूना प्राप्त किया जा सकता है। इस अवसर पर पोचमपल्ली के बुनकरों द्वारा प्रचलित पारंपरिक ज्यामितीय बुनकर शैली में बने हुए ट्राइफेड जैकेट भी जारी किए गए।
आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम
दोपहर के समय एक जीवंत और आकर्षक सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें प्रख्यात गणमान्य व्यक्तियोंद्वारा उनके संबोधन में अधिकारी-प्रशिक्षुओं को जानकारी प्रदान की गई। श्री अर्जुन मुंडा ने अधिकारी-प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए ऐसे आयोजनों के महत्व के संदर्भ में बताया और कहा कि जीआई द्वारा टैग किए गए उत्पादों के संवर्धन और विपणन से भारत की परंपरा, कला और शिल्प को बाजार में लाने और उनकी शानदार विरासत का प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि प्रशासन से प्राप्त समर्थन हमेशा ही इन उत्पादकों का मनोबल बढ़ाने में सहायक साबित होगा।
श्री मुंडा ने यह भी कहा कि ऐसे आयोजनों में बातचीत के माध्यम से, ये अधिकारी-प्रशिक्षु वास्तविक चुनौतियों के संदर्भ में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्राप्त करेंगे और जब कभी वे अपने-अपने राज्यों में काम करना शुरू करेंगे तो इनके प्रति वे ज्यादा संवेदनशील बनेंगें। इस आयोजन को अपने प्रकार का पहला आयोजन बताते हुए, श्री मुंडा ने कहा, "जीआई महोत्सव, जिसमें कई आदिवासी कलाकार और जीआई अधिकृत विक्रेता मौजूद हैं और वे अपने क्षेत्र में अद्वितीय उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं, यह लोकल के लिए मुखर रहने वाले प्रधानमंत्री की ‘लोकल फॉर वोकल’ वाले दृष्टिकोण को लागू करने और एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है। मैं इस अनोखे कदम के लिए ट्राइफेड और एलबीएनएए और संस्कृति मंत्रालय को बधाई देता हूं।”
इस सत्र के दौरान, पहले जीआई उत्पादों पर आत्मनिर्भर भारत परियोजना, ट्राइफेड के सलाहकार, पद्मश्री डॉ रजनी कांत ने भी पूरे भारत में जीआई उत्पादों की स्थिति और जीआई टैगिंग के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं के बारे में अधिकारी प्रशिक्षुओं का ज्ञानवर्द्धन किया।
श्री भास्कर खुल्बे ने इस अनूठे आयोजन के प्रति अपनी विशिष्ठ सराहना प्रदान करते हुए कहा कि इस प्रकार की पहल से निश्चित रूप से जनजातीय कारीगरों को व्यापक अवसर और बड़ा बाजार प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाया जा सकेगा।
ट्राइफेड आदिवासियों के विकास के लिए बना रहा रणनीतियां
श्री प्रवीर कृष्णा ने इस बात पर एक विस्तृत प्रस्तुति प्रदान किया कि किस प्रकार से ट्राइफेड आदिवासियों के विकास के लिए रणनीतियां बना रहा है। अपनी प्रस्तुति में, उन्होंने इस बारे में बताया कि किस प्रकार से जीआई टैगिंग आदिवासी समुदायों की परंपराओं और विरासत को संरक्षित करने में सहायता प्रदान कर सकती है और किस प्रकार से ट्राइफेड को इन समुदायों को वाणिज् राजस्व के साथ जोड़ने के लिए रखा गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि “भारत के पास स्वदेशी उत्पादों की एक विशाल विरासत मौजूद है, चाहे वह हस्तशिल्प हों या हथकरघा या अन्य उत्पाद। आदिवासी कारीगरों के लिए जीआई टैगिंग बहुत सहायक है और अपने व्यवसाय का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपणक करने के लिए उसे विस्तारित करने हेतु उन्हें प्रेरित करता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि ट्राइफेड जीआई टैग उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कई अन्य विभागों के साथ साझेदारी कर रहा है और यह नवीनतम प्रदर्शनी इस दिशा में आगे बढ़ता हुआ एक कदम है।”