आरक्षण को अब 50 % में सीमित किया तो ओबीसी समाज विद्रोही हो जायेगा-लोकेश साहू
सिवनी। गोंडवाना समय।
आरक्षण की सीमा बढ़ाने या न बढ़ाने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी राज्यों से विचार देने की पहल ने ओबीसी आरक्षण को ठीक-ठाक करने का रास्ता प्रशस्त किया है। उम्मीद है कि अपने को ओबीसी हितैषी होने का दावा करने वाली सरकारें आरक्षण पर लगी इस सीमा को खत्म करने का मत देकर मेहनतकश, ईमानदार, राष्ट्रभक्त और धर्मनिष्ठ ओबीसी समाज को देश गढ़ने के उनके हक को बहाल करेंगी।
आरक्षण की 50 फीसदी सीमा अन्यायपूर्ण है, इसका कहर केवल ओबीसी समाज पर टूटा
उक्ताशय की प्रतिक्रिया मराठा आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों से हाल ही में आरक्षण की सीमा पर विचार माँगे जाने पर व्यक्त करते हुए ओबीसी महासभा प्रदेश प्रवक्ता लोकेश साहू द्वारा प्रेस को जारी एक विज्ञप्ति में व्यक्त किए गए। श्री लोकेश साहू ने कहा कि आरक्षण की 50 फीसदी सीमा अन्यायपूर्ण है, इसका कहर केवल ओबीसी समाज पर टूटा है। इस नीति के कारण वह विकास के ट्रैक से लगभग बाहर सा हो गया है। फिर भी वह सरकारों पर भरोसा करके चुपचाप अन्याय सहते आ रहा। अब गेंद जब सरकारों के पाले में है तो उसकी उम्मीदें जागी हैं। वह अपने आरक्षण को ठीक-ठाक होने की उम्मीद कर रहा है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के मुखिया श्री शिवराज सिंह चौहान ने एक टीवी चैनल से कहा था कि सरकार ओबीसी वर्ग को आबादी के हिसाब से आरक्षण देना चाहती है। श्री लोकेश साहू ने कहा कि अब इसे फलीभूत करने का समय है।
52 फीसदी जनसंख्या वाले ओबीसी वर्ग को मात्र 14 फीसद ही आरक्षण
प्रदेश प्रवक्ता श्री लोकेश साहू ने बताया कि मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में एस.सी-एस.टी. वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण है। वहीं 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण उनकी जनसंख्या (7 प्रतिशत) से कहीं ज्यादा है। जबकि 52 फीसदी जनसंख्या वाले ओबीसी वर्ग को मात्र 14 फीसद ही आरक्षण है। इस 14 में भूतपूर्व सैनिक, विकलांग, धर्म परिवर्तित आदि अनेक आरक्षण भी शामिल हैं। इस प्रकार ऊंट के मुंह में जीरा के समान आरक्षण होने के चलते ओबीसी वर्ग के युवा अनारक्षित याने जनरल सीटों पर कड़ा संघर्ष करते हैं। अत: आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक बढ़ाने पर किसी को नुकसान नहीं होने वाला है क्योंकि अनारक्षित कोटा में भी एक प्रकार से ओबीसी वर्ग का हिस्सा है।
वहाँ आरक्षण में लगी सीमा हटानी ही चाहिए
श्री लोकेश साहू ने बताया हरियाणा में आरक्षण 70 फीसदी है, जबकि तमिलनाडु में 68, झारखंड में 60, राजस्थान में 54 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम आदि पूर्वोत्तर राज्यों में में 80 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। यदि सरकारें आरक्षण को 50 प्रतिशत की सीमा में बाँधने के पक्ष में राय देते हैं तो ओबीसी समाज के सब्र का बाँध टूट जायेगा और वह विद्रोही हो जायेगा फलस्वरूप राजनैतिक समीकरण बदल भी सकते हैं। अत: जिन राज्यों में ओबीसी वर्ग की आबादी ज्यादा है वहाँ आरक्षण में लगी सीमा हटानी ही चाहिए।