शासन के रवैया से पेंशनरों में छाई है निराशा, पेंशनर्स जीवन और मृत्यु से संघर्ष करने को मजबूर
डी.बी. नायर ने प्रदेश के वित्तमंत्री को लिखे पत्र में बयां किये हालात
सिवनी। गोंडवाना समय।
अपने जीवन की संध्या बेला में प्रदेश के वयोवृद्ध पेंशनर्स पेंशन पुनरीक्षण ऐरियर्स और चिकित्सा हेतु पर्याप्त बजट का इंतजार करते करते न केवल मायूस हो चुके है बल्कि मानसिक यातना झेलने को मजबूर है। शासन के ऐसे रवैये से पेंशनरों में निराशा भले छाई हो किंतु अब भी उन्हें शासन की संवेदनशीलता का भरोसा है और उम्मीद है कि आने वाला बजट उनके लिए शुभ संदेश लेकर आयेगा।
वृद्ध पेंशनरों के मुख का निवाला छीन लिया है
उक्ताशय का पत्र भारतीय राज्य पेंशनर्स महासंघ के राष्ट्रीय सचिव डी.बी. नायर ने प्रदेश के वित्तमंत्री श्री जगदीश देवड़ा को पे्रषित करते हुए उनका ध्यान आकृष्ट कराया है कि माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के द्वारा 01/01/2006 से 31/08/2008 तक 32 माह का पेंशन पुनरीक्षण ऐरियर्स देने का आदेश जारी होने के बावजूद मामला आज तक ठंडे बस्ते में है। ऐसे रवैये से लगता है कि शासन ने जानबूझकर न केवल माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना की है बल्कि वृद्ध पेंशनरों के मुख का निवाला छीन लिया है। इसी तरह तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा 01/01/2016 से 31/03/2018 तक के 27 माह का पेंशन पुनरीक्षण ऐरियर्स देने का आश्वासन दिया गया था। यह मामला भी पुन: सरकार बनने के बाद प्रक्रिया में नहीं आ पाया है।
4 प्रतिशत मंहगाई राहत जो उनका अधिकार है उससे वंचित रखा गया
म.प्र. शासन के वित्तमंत्री श्री जगदीश देवड़ा को लिखे पत्र में आगे उल्लेख किया गया है कि पेंशनरों को जुलाई 2019 से 5 प्रतिशत एवं जनवरी 2020 से 4 प्रतिशत मंहगाई राहत जो उनका अधिकार है उससे वंचित रखा गया है। पर्याप्त चिकित्सा बजट भी न होने से ईलाज के अभाव में गंभीर बीमारी से ग्रसित पेंशनर्स जीवन और मृत्यु से संघर्ष करने को मजबूर है। श्री डी बी नायर ने प्रदेश के वित्तमंत्री श्री जगदीश देवड़ा से आग्रह किया है कि पेंशनरों की इन समस्यों और मांगों के प्रति संवेदनशीलता बरतते हुए आने वाले बजट में सभी बिंदुओं पर उचित प्रावधान वित्तविभाग द्वारा कर दिया जाता है तो पेंशनरों के घावों में मलहम लग जायेगा और उनकी जो शासन से उम्मीदें है वह भी पूरी हो जायेगी। श्री डी बी नायर ने कहा कि आग्रह पर किया गया निर्णय ही सिद्ध करेगा कि शासन पेंशनरों के प्रति कितना संवेदनशील है।